Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

4.5  

Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

रज्जो

रज्जो

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"यह क्या है ?बोलो ? दौलत का चेहरा ग़ुस्से से काला पड़ गया । उसने रज्जो के तेरह साल के लड़के जजु को भी बुला लिया ।

" देख जजु तेरी माँ क्या करती है , दौलत ने रज्जो को घूरा । 

जजु को कुछ भी समझ नहीं आया । उसने कातर नज़रों से रज्जो की तरफ़ देखा । रज्जो आँखें फाड़े उस पोटली को देखे जा रही थी , जिसको दौलत ने खोल कर भीड़ के सामने रख दिया । पोटली में लाल सिन्दूर में लिपटे लौंग , छोटी इलाइची और सूखे काग़ज़ी नीबूँ दिखाई दे रहे थे । 

" अब कुछ बोलती क्यों नहीं ? दौलत की पत्नी शान्ति ने चिल्ला कर पूछा । क्या जादू टोना कर रही थी । जीना हराम कर दिया इस औरत ने, न जाने कौन से कर्म फूटे कि ऐसी बहू मिली । एक बात कान खोल कर सुन लो रज्जो अगर मेरे आदमी या बच्चों का बाल भी बाँका हुआ तो तेरी ख़ैर नहीं ।उठा इसको , बेशर्म कहीं की , डायन भी सात घर छोड़ देती है , तू तो अपने पड़ोस को खाने में तुली है " शान्ति रोने लगी । रज्जो दौलत के बड़े भाई बिशन के बड़े लड़के गोपाल की पत्नी ।

" मैंने जान बूझकर नहीं किया , गलती से छूट गयी पोटली " रज्जो गिड़गिड़ाई ।

 "भाभी , पोटली तुम्हारी ही है ना ?" शांति के बड़े लड़के कमल ने पूछा ।कमल की शादी को अभी दो महीने ही हुए हैं ।

"तू ज़्यादा भाभी भाभी न कर इस चुड़ैल को , तुझे और बहू को बर्बाद करने के लिए ही यह सब कर रही है ।" शांति ने हाथ नचा कर बोला ।

"भाभी तुम्हारी है क्या पोटली?" कमल ने शांति की बात को अनसुना कर दिया ।

" मेरी ही है " रज्जो मुश्किल से बोली । यह पंडित जी ने दी थी गाड़ने के लिए । 

"देखा !! इसी कुलछनी की है , कौन पंडित देता है ऐसी पोटली , कोई तांत्रिक दिया होगा ? और हमारी खिड़की पर गाड़ने के लिए बोला था ? बड़ी आई पंडित वाली । नाम बता पंडित का ?" शांति ने रज्जो को चबा जाने वाली नज़रों से देखा ।

जजु ने दौलत की तरफ़ कातर नज़रों से देखा । दौलत को जजु पर दया आ गई । बेचारे का बाप मुंबई गया है , कितना दुखी हो रहा है ।दौलत ने आँखों आँखों में जजु को दिलासा दिया । 

"कोलर वाले पंडित जी जब पिछली बार आये थे , तब उन्होंने ही दिया था । जजु की क़सम ।" रज्जो रोते हुए बोली ।

"देख बहू ! जजु की क़सम मत खा और अपना सामान सम्भाल कर रखा कर ।" दौलत ने नर्म आवाज़ में कहा ।शांति ने दौलत को खा जाने वाली नज़रों से देखा ।पर बोली कुछ नहीं । 

" जा जजु ,भाभी के लिए एक गिलास पानी ले आ ।" कमल जजु की पीठ पर हाथ रखते हुए बोला । 

" पर ऐसा नहीं करना चाहिए रज्जो को" , बग़ल वाली कमला बोली ।

"रहने दो कमला भाभी , गलती सभी से हो जाती है । घर का मामला है , अब और आग न लगाओ ।" कमल धीरे से बोला ।

रज्जो ने सुबकते हुए दौलत के फिर शान्ति के पैर छुए । " ससुर जी मैं आगे से ध्यान रखूँगी "। जजु ने स्टील का पानी भरा गिलास रज्जो को पकड़ाया । 

रज्जो ने एक हाथ से गिलास और दूसरे हाथ से जजु का हाथ पकड़ा । " चल बेटा " । 

तथाकथित तन्त्र विज्ञान की विशेषज्ञ अपने नाबालिग सहारे के साथ धीरे धीरे अपने घर चली गयी । कुछ न भरने वाले ज़ख्मों का दर्द सीने में दबाये । यह समाज पल भर में किसी को क्या से क्या बना सकता है ? किसी को नहीं पता ।



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