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Deepika Raj Solanki

Abstract

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Deepika Raj Solanki

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रिश्तो का मकड़जाल भाग 1

रिश्तो का मकड़जाल भाग 1

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नवंबर के महीने की धूप अम्माजी के आंगन तक आ चुकी थी और घड़ी की सुई भी सुबह के 9:00 बजा रही थी। अम्मा जी की बड़ी बहू कंचन दूसरी बार अम्माजी के कमरे में जा सुबह से दो बार चाय के लिए पूछ चुकी थी पर अम्मा जी दोनों बार चाय के लिए मना कर अपनी छोटी बहू के बारे में बार-बार पूछ रही थी-

"अरे कंचन अभी तक छोटी बहू नहीं उठी क्या, वह तो सुबह ही उठकर आ जाती है, जरा देख तो उसकी तबीयत ठीक है कि नहीं, मेरा मन आज बहुत घबरा रहा है"

कंचन भाभी अम्मा के पास बैठते हुए बोली "आप घबराओ मत, आज आपने सुबह से चाय नहीं पी है और ना ही बीपी की गोली खाई है इसलिए आपको घबराहट हो रही है रोज तो आप नीतू के हाथ की चाय पीती हो ,आज मेरे हाथ की चाय पी लो, मैं अभी सब के लिए चाय बनाती हूं और नीतू को चाय भी दे आऊंगी और उसे देख भी आऊंगी"।

ऐसा बोल कंचन भाभी रसोई में चाय बनाने लगी, कुछ देर बाद एक कप चाय और कुछ बिस्कुटअम्मा जी को दे अपनी और नीतू की चाय ले उसके कमरे में पहुंची ,कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और कमरा साफ सुथरा पड़ा हुआ था,कमरे को देखकर ऐसा लग रहा था मानो रात में यहां कोई सोया ही नहीं, नीतू का रात का खाना भी स्टूल पर ढका हुआ रखा हुआ था। चाय की ट्रे वहीं पलंग पर रख,कंचन भाभी नीतू को आवाज लगाती हुई  वॉशरूम में भी देख चुकी , नीतू उस कमरे में नहीं थी उन्हे लगा नीतू छोटे कमरे में होगी और शायद अपनी डायरी लिख रही होगी उसे डायरी लिखने का बहुत शौक था,वह पूरे दिन का हाल उस डायरी में लिखती थी, चाय के ट्रेन पकड़ उस छोटे कमरे की ओर चलने लगी ,उस छोटे कमरे के बगल में उनके घर का मंदिर था जिसमें उनका देवर नीतू का पति नितिन सुबह से जोर-जोर से मंत्रों का जाप करते हुए पूजा कर रहा था। 

अक्सर जब भी नीतू अपनी डायरी लिखती थी तो वह दरवाजा अंदर से बंद कर लेती थी यही सोचते हुए कंचन भाभी ने दरवाजे की कुंडी पकड़ी ही थी कि दरवाजा खुल गया और दरवाजा खुलते ही कंचन भाभी के हाथ से चाय की ट्रे नीचे गिर गई और मुंह से जोर से चीख निकली।उनकी की आवाज सुन उनके पति राजू, दूसरा देवर मोहित, अम्मा जी और घर के नौकर सब भागकर उनके पास आकर खड़े हो गए, घबराई और डर से कांपती हुई कंचन भाभी को देख उनके पति ने उन्हें हिलाते हुए पूछा "क्या हुआ कंचन?"

आंखों में आंसू और मुंह से कोई शब्द तक नहीं निकल रहा था उनके ,अपनी उंगली का इशारा करते हुए बोली "देखो क्या हो गया"।

राजू भैया जैसे ही कमरे में पहुंचे अंदर का दृश्य देख स्तंभ रह गए, वहीं से चिल्लाते हुए वह बोले "अम्मा जी जल्दी अंदर आओ"।

घबराई हुई आवाज सुन अम्मा जी के साथ बाकी लोग भी अंदर आ गए लेकिन अभी तक नीतू का पति नितिन अपनी पूजा में इतना मग्न था कि उसे घर में हो रही हलचल का ज्ञान नहीं हुआ।

अम्मा जी ने ऐसा क्या देख लिया कि वह देखते ही घबरा कर जमीन में गिर पड़ी घर के लोग अम्मा जी को उठाने में लग गए , उनमें से एक नौकर मंदिर की ओर भागा, जहां नितिन पूजा पाठ कर रहा था वहां पहुंचते ही वह बोला भाई जी "जल्दी चलो"।बिना पीछे मुड़े नितिन उसे धीमी आवाज में बोलने व मंदिर से बाहर जाने का इशारा करने लगा। 

आप चलो , बस आप चलो, की रेट लगा वह नौकर नितिन को लेकर कमरे की ओर दौड़ने लगा , "अरे ऐसा क्या पहाड़ टूट गया जो तू मुझे आधी पूजा से उठाकर ले जा रहा है ,बता क्या हुआ"। वह नौकर जवाब देता तब तक वह लोग छोटे कमरे में पहुंच चुके थे।सबको घबराया देख नितिन समझ गया कुछ अशुभ हुआ है।

अम्मा जी सर पकड़े दीवार की टेक लगा बैठी थी नितिन को देखते ही बोलने लगी"ले देख ले क्या किया नीतू ने ,मैं बोलती थी ना तुझे फालतू के चक्कर में मत पड़ ,अपने परिवार के साथ खुश रहे, देख उसने क्या कर लिया"।जैसे ही नितिन ने पंखे की तरफ देखा, तो वह भौचक्का रह गया पंखे से5 फुट 8 इंच की एक सुंदर सी महिला फांसी का फंदा लगा लटकी हुई थी जो उसकी पत्नी नीतू थी।

नीतू को फंदे में लटकता हुआ देख उसके पैर पकड़ नितिन जोर जोर से रोने लगा तभी पीछे से एक नौकर की आवाज आई - "इन्हें नीचे उतारो तो देखो कहीं सांसें तो नहीं चल रही"।

राजू भैया और मोहित तथा घर के नौकरों ने मिलकर नीतू को नीचे उतारा और उसकी नाक और हृदय गति देखने लगे फिर अम्माजी की तरफ इशारा करते हुए बोले" इस में जान नहीं बची है।"

मोहित वहीं नीतू के मृत शरीर के पास बैठा- बैठा अपने बड़े भाई राजू से बोला"भैया क्या डॉक्टर को बुलाए?"

इतना सुनना ही था कि रोते हुए नितिन ने मोहित को घूरते हुए बोला -"ना कोई घर से बाहर जाएगा और ना ही कोई बाहर का घर में आएगा मैं नहीं चाहता हूं कि नीतू की मौत पर लोग बातें बनाएं।"तुरंत अपने को संभालते हुए आंखों से आंसू पोछनीतू की डायरी जो खुली पड़ी हुई थी उसे उठा कर पढ़ने लगा जैसे जैसे वह डायरी का खुला पन्ना पढ़ता जाता, उसके चेहरे का रंग लाल होता जाता। उसके चेहरे के बदलते हुए रंग को देख ऐसा लगता मानो वह नीतू सुसाइड नोट हो।

उसे पढ़,बिना कुछ कहे वह कमरे से बाहर निकला और कुछ 10,15 मिनट बाद हाथ में मिट्टी के तेल की बोतल और माचिस देखकर दोबारा कमरे में आया और नीतू की सारी डायरी एकत्र कर बाहर आंगन में ले जाकर उसमें मिट्टी का तेल डाल सब में आग लगा दी।और घर के सारे नौकरों को यह हिदायत दे दी गई कि कोई भी कुछ नहीं बोलेंगे तथा घर के लोग सोच रहे थे कि ऐसा डायरी में उसने क्या लिखा था कि जो आदमी अभी तक अपनी पत्नी की मृत्यु पर आंसुओं की धारा बहा रहा था, अचानक ऐसा क्या हो गया कि इसका रंग ही बदल गया।

सब नौकरों को उनके कमरे में भेजने के बाद , नितिन गिड़गिड़ाता हुआ अपने दोनों भाइयों के पैरों में गिरता हुआ बोला "मुझे इस मुसीबत से बचा लो, वह तो चली गई अब मैं और कोई तमाशा नहीं चाहता हूं"।

दोनों भाई अपने घर की इज्जत की परवाह करते हुए तथा कोई पुलिस कार्यवाही ना हो ऐसा सोच कर दोनों भाई नितिन की बातों में आ गए और जल्दी-जल्दी नीतू का अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में लग गए। उन्होंने अपने बहुत करीबी रिश्तेदार तथा नीतू के पापा जो कि 3 घंटे की यात्रा करके यहां पहुंच सकते हैं उन्हें ही नीतू की आकस्मिक मौत की सूचना दी, ना ही नीतू के विदेश में रहने वाले भाई व असम में बसी उसकी बड़ी दीदी को कोई सूचना दी गई।

जब तक नीतू के पापा नीतू के ससुराल पहुंचे तब तक नीतू के अंतिम संस्कार की सारी प्रक्रियाएं हो चुकी थी जैसे ही उन्होंने नीतू की शक्ल देखनी चाहिए तो रोता हुआ नितिन अपने ससुर के गले लग जोर जोर से रोने लगा तभी पीछे से नितिन के भाई लोग बोले चलो देर मत करो जल्दी से नीतू को इस शरीर से मुक्ति दिलाओ।

मात्र 4 से 5 घंटे में नीतू का सारा क्रिया कर्म कर दिया गया।

रात 8:00 बजे तक नीतू की बड़ी बहन नैना दीदी भी गुस्से में नीतू के ससुराल पहुंच चुकी थी और नितिन के घर के बाहर से ही नितिन को भला बुरा कहते हुए अपने पापा को संबोधित करते हुए बोली "पापा आप इस कातिल के घर में क्या कर रहे हो बाहर आओ इन लोगों ने हमारी घर की बेटी को मार डाला, वह लड़की अपनी व्यथा घर के हर एक सदस्य को बता चुकी थी फिर भी घर के सारे लोग कान में तेल डालकर बैठे रहे ,तुम सब मेरी बहन के कातिल हो ,मैं किसी को नहीं छोडूंगी।"

आस पड़ोस के लोग नैना दीदी की बात अपने घर से बाहर आकर सुनने लगे, यह देख अम्मा जी नैना का हाथ पकड़ घर के अंदर ले आई।

दोनों हाथ जोड़ माफी मांगते हुए बोली "वह मेरी भी बेटी थी, कल रात भी इन दोनों में रोज की तरह लड़ाई हुई हमें लगा कि हमेशा की तरह सुबह सब ठीक हो जाएगा। मुझे जरा सा भी शक होता तो मैं नीतू को अपने पास ही सुलाती, मैंने अपने नालायक बेटे के कारण अपनी हीरा जैसी बहू खो दी"। इतना कह रोते -रोते अम्मा जी बेहोश हो गई।

सब अम्मा जी की देख-रेख मे लग गए और इसी बीच नैना दीदी अपने पापा का सामान और पापा को लेकर उस घर को बदुआएं देते हुए उन लोगों को यह हिदायत दे गए कि कोई भी उनकी बहन की अस्थियों को हाथ नहीं लगाएगा और वह इस वाराणसी तट में ही अपनी बहन की अस्थियों को प्रवाहित करके जाऊंगी ताकि वह तब तक यहां विराजमान रहे जब तक कि उसे इंसाफ नहीं मिल जाता।"

नैना दीदी अपने पिता वह पति के साथ पास के होटल में 3 से 4 दिन रही है और अपनी बहन नीतू की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित कर, पुलिस कार्यवाही के लिए थाने पहुंची मगर हाथ में कोई ठोस सबूत ना होने के कारण नितिन और उसके परिवार पर रिपोर्ट दर्ज नहीं हो पाई उधर बूढ़े बाप ने भी आस छोड़ दी ।

नैना दीदी को यह तो पता था की उनकी बहन के जीवन में उथल-पुथल चल रही है और उन्होंने कई बार इस बारे में नितिन से बात भी की थी, हर बार नितिन अपनी मीठी मीठी बातों में दीदी और नीतू के परिवार वालों को फसा लेता था। वाराणसी छोड़ते हुए दीदी अपनी बहन को भी सदा के लिए वही छोड़ आई थी पर उनका अभी तक मन यह मानने को तैयार नहीं था कि एक सबल व्यक्तित्व वाली उनकी बहन आत्महत्या कैसे कर सकती है ।

यही सोचते-सोचते रेल के डिब्बे में सो गई ,कुछ घंटों बाद उनके पति उन्हें उठाते हुए बोले" उठो नैना स्टेशन आ गया है, तुम पापा को लेकर नीचे उतरो मैं सामान लेकर आता हूं।"



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