हम सब एक साथ हैं
हम सब एक साथ हैं
ऑस्ट्रेलिया में रह रहे अपने इकलौते बेटे से बात कर मिसेज गुप्ता रोने लगी।
पास में बैठे हैं मिस्टर गुप्ता ने उन से फोन ले लिया, और अपने बेटे से कहा"शुभम बेटा अब तुम वापस आ जाओ जिस तरह के हालात आजकल चल रहे हैं पता नहीं हमें कब क्या हो जाएं, तुम्हारी मां और मैं यहां अकेले हैं और तुम वहां, बेटा अब तुम वापस आ जाओ"।ऐसा कहते हुए दोनों पति पत्नी भावुक हो उठे।
उधर शुभम पिता की बात सुन कुछ क्षण के लिए चुप हो गया।
फिर अपनी भावनाओं को छुपाते हुए उसने कहा"पिताजी आप चिंता ना करें जैसे ही कोरोनावायरस का प्रकोप कम होगा और इंटरनेशनल फ्लाइट शुरू होंगी मैं आप लोगों से मिलने अवश्य आऊंगा, मैं आप लोगों से दिल से जुड़ा हुआ हूं और आप लोगों को रोज फोन करता हूं जब भी आपका मन करे आप मुझे वीडियो कॉल करके देख सकते हो, अगर आप इस समय अपनी हिम्मत हारोगे तो मां को कौन संभालेगा।"
बेटे की बात सुन मिस्टर गुप्ता को कुछ राहत आई।
कुछ देर बाद तीनों ने वीडियो कॉल कर आपस में बात की और एक दूसरे को देखा जिससे तीनों दूसरे को देख कर खुश हो गए।
लेकिन शुभम को अपने माता-पिता की चिंता और सताने लगी, कोरोना महामारी के इस दौर में कोई रिश्तेदार भी उसके माता-पिता के पास आकर नहीं रह सकता था, वह अपने को इस समय बेबस महसूस कर रहा था।
विदेश में शुभम हर रोज अपने माता-पिता के स्वस्थ रहने की कामना ईश्वर से करता और उसके माता-पिता उसके स्वस्थ रहने की कामना अपने घर में ईश्वर से करते।
रोज सुबह जल्दी उठकर पूजा पाठ करने वाली मैसेज गुप्ता कई दिनों से सुबह तुलसी पर पानी डालते हुए नहीं दिख रही थी। मोहल्ला साफ करने आने वाली कलावती ने यह बात नोटिस करी।
मिसेज गुप्ता कलावती से छुआछूत की भावना रखती थी लेकिन मिस्टर गुप्ता उससे अक्सर हंसी- मजाक किया करते थे।
कलावती ने आस-पड़ोस के लोगों से भी इस बात का जिक्र किया लेकिन किसी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया, कोरोना महामारी के कारण लोग अपने घरों के अंदर डरे सहमे दुबके पड़े हुए थे, आस पड़ोस के लोग अपने घर से बाहर नहीं निकल रहे थेअतः कलावती ने अकेले ही मिस्टर और मिसेज गुप्ता की सूद लेने की सोची और कलावती ने मिस्टर गुप्ता के घर की बेल बजाई लेकिन कोई भी बाहर नहीं निकल कर आया, अब कलावती का शक यकीन में बदल रहा था कि अंदर कुछ ना कुछ गड़बड़ है।
उसने पीछे वाले दरवाजे की ओर जाकर जोर से मिस्टर गुप्ता को आवाज़ लगाइए लेकिन उसकी आवाज़ का भी किसी ने उत्तर नहीं दिया अब कलावती को यकीन हो चला कि अंदर मिस्टर और मिसेज गुप्ता के साथ कुछ अनहोनी हुई है।
उसने बिना कुछ सोचे समझे , गुप्ता जीके बेडरूम की खिड़की पर हाथों से थपथपाया अंदर से किसी की बहुत धीमी आवाज़ आई, "कौन हो"?
आवाज सुनकर कलावती की घबराहट कुछ कम हुई और उसने उस आवाज़ का उत्तर देते हुए कहा "मैं हूं कलावती साहब आप लोग ठीक है ना"?
कलावती की आवाज़ सुनकर मानो अंदर से आ रही आवाज़ में एक आशा की किरण फूट पड़ी।
अंदर से फिर एक धीमी आवाज़ आई "तुम पीछे के दरवाजे से अंदर आ जाओ मैं उसे खोल देता हूं'।
10-15 मिनट बाद पीछे का दरवाज़ा खुला सामने कलावती को देखकर मिस्टर गुप्ता ने उससे कहा "तुम अंदर आ जाओ"।
जो लोग कलावती को अपने घर का गेट तक छूने नहीं देते थे और उसे अपवित्र समझते थे आज वह उसे अंदर आने के लिए कह रहे थे।
कलावती ने यह सुनकर मिस्टर गुप्ता से कहा मैं अंदर कैसे आऊं मेम साहब गुस्सा होंगी ;कई दिनों से आप लोग नहीं दिख रहे थे इस वजह से मुझे चिंता हो रही थी मैं आप लोगों को देखने आ गई, पर आपकी हालत तो मुझे कुछ अच्छी नहीं दिख रही है"।
कलावती की बात सुनकर मिस्टर गुप्ता ने उसे अंदर आने का इशारा किया और वहीं पर गिर गए।
कलावती ने उन्हें संभालते हुए उनके कमरे में ले गए और उन्हें कुर्सी में बैठाया।
अंदर बेड पर मिसेज गुप्ता भी लेटी हुई थी, उन की हालत भी कुछ सही नहीं दिख रही थी।
कलावती समझ गई कि कुछ ना कुछ गड़बड़ है और दोनों ही काफी बीमार नज़र आ रहे हैं।
सबसे पहले वो रसोई में गई रसोई में सारा सामान संभला हुआ था ऐसा लग रहा था कि 2 दिनों से किसी ने कुछ भी नहीं पकाया है।
कलावती ने जल्दी से गैस में थोड़ा सा पानी गर्म किया और दोनों को दिया।
मिसेज गुप्ता को अपने हाथों से उसने पानी पिलाया। और गर्म पानी से उनका हाथ मुंह साफ किया।
फिर वह रसोई में जाकर चाय बना कर लाई।
चाय पीकर मिस्टर गुप्ता को थोड़ा अच्छा लगा और उन्होंने बताया कि हम 3 दिन से बीमार हैं।
बेटी का फोन तक हम नहीं उठा पा रहे हैं क्योंकि वह विदेश में अकेला है और उसे हमारी चिंता होगी और वह परेशान होगा।
कलावती ने इस महामारी में अपने स्वास्थ्य की चिंता ना करते हुए मिस्टर और मिसेज गुप्ता के लिए खाना पकाया और उन्हें खिलाया। जिससे उनके शरीर में थोड़ी ताकत आई और उन्होंने कलावती को अपने फैमिली डॉक्टर से बात करने के लिए कहा।
कलावती ने उनके डॉक्टर से बात करके उनकी हालत बताई डॉक्टर ने उन दोनो के कुछ टेस्ट करने के लिए उनके घर अपने कुछ लोगों को भेजा।
आया हुआ लड़का उन दोनों के शरीर में आए लक्षणों को देख कर भाग गया कि दोनों को कोरोना संक्रमण हुआ है।
उसने कलावती को इन दोनों से दूर रहने का सुझाव देते हुए कहा"तुम इनके किसी रिश्तेदार को फोन करके बुला दो ,मुझे लगता है इन दोनों को कोरोना संक्रमण हुआ है और मैं पूरे दावे से कह रहा हूं दोनों की रिपोर्ट पॉजिटिव आऐगी, तुम यहां रहोगी तो यह संक्रमण तुम्हें भी हो सकता है, तुम अपनी सुरक्षा पहले करो और इनको इनके रिश्तेदारों के हवाले कर अपने घर चले जाओ"।
उस लड़की की बात सुन कलावती ने उससे कहा"देखो बेटा, साहब और मेम साहब का इकलौता बेटा विदेश में रहता है और यहां पर इनका कोई सगा-संबंधी नहीं है, पड़ोसियों ने दो दिन से इस परिवार की सुद तक नहीं ली और तुम कहते हो कि इन बीमार दंपति को छोड़कर मैं चली जाऊं, ऐसा मैं कैसे कर सकती हूं, यह मोहल्ला मेरा परिवार है और कई सालों से मैं इस मोहल्ले में सफ़ाई का काम करती आ रहीं हूं ,मेरे हर सुख- दुख में इस मोहल्ले के हर एक परिवार ने मदद की है और आज इस परिवार को मेरी जरूरत है मैं इन्हें छोड़कर नहीं जाऊंगी बल्कि इन दोनों की देखभाल करने के लिए मैं यहीं रहोगी"
एक कम पढ़ी लिखी मोहल्ला साफ करने वाली महिला के मुंह से इतनी उदार बातें सुनकर वह लड़का कलावती का मुरीद हो गया।
उसे अपना फोन नंबर वही पास पर रखी एक डायरी में लिखा और कहा "अम्मा जब भी तुम्हें कोई जरूरत होगी तुम मुझे इस नंबर पर फोन कर देना मैं सारा इंतजाम कर दूंगा, डॉक्टर साहब गुप्ता जी के अच्छे मित्र हैं उनकी दवाई से यह दोनों जल्दी ठीक हो जाएंगे, चिंता की जरूरत नहीं है पर आप अपना भी ध्यान रखना"।
कलावती को कुछ दवाइयां देते हुए उस लड़के ने कलावती से कहां"अम्मा इस महामारी के समय लोग अपने सगे लोगों को छोड़ दे रहे हैं और तुम अपने को भूल कर इस दंपति की मदद कर रही हूं सच में तुम महान हो ,यह दवाइयां तुम लेते रहना और हाथों में ग्लब्स पहन के सारे काम करना "।
उन्हें सारी गाइडलाइन देखकर वह लड़का चला गया।
शाम को मिस्टर और मिसेज गुप्ता की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आ गई।
कलावती फिर भी उन दोनों की सेवा करने के लिए वहीं रुक गई।
निस्वार्थ भाव से तीन चार हफ्ते तक उसने दोनों दंपति की दिल से सेवा करी। और विदेश में बैठे उनके बेटे को भी सांत्वना देती रही कि उनके माता-पिता जल्दी ठीक हो जाएंगे।
मिसेज गुप्ता जिसके साथ पूरी जिंदगी छुआछूत की दुर्भावना रखती रहेगी, आज वही इस महामारी के समय निस्वार्थ भावना से दोनों पति पत्नी की सेवा करी।
कलावती दोनों के खानपान और दवाइयों का पूरा ध्यान रखती जिस कारण दोनों पति पत्नी की तबीयत में सुधार आने लगा और जल्द ही वह दोनों इस महामारी पर विजय प्राप्त कर स्वस्थ हो गए।
इस महामारी ने मिसेज गुप्ता की आंखें खोल दी कि हर इंसान एक समान होता है और उनके काम के आधार पर हम उनके साथ भेदभाव नहीं कर सकते। कलावती के साथ मिसेस गुप्ता ने कई बार बहुत बुरा और कठोर व्यवहार किया था, लेकिन कलावती ने मुसीबत के समय इंसानियत दिखाते हुए दोनों पति-पत्नी की मदद की और एक इंसानियत का फ़र्ज़ अदा किया।
इस महामारी के दौर में आस- पड़ोसी , रिश्तेदार अपनी जान बचाने के लिए पराए बन गए, वही एक मोहल्ला साफ करने वाली महिला ने दिल से व निस्वार्थ भावना से, उसका तिरस्कार करने वाले लोगों की मदद की और इंसानियत का जीता जागता उदाहरण समाज के सामने प्रस्तुत किया।