Deepika Raj Solanki

Drama

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Deepika Raj Solanki

Drama

गलती का एहसास

गलती का एहसास

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"नेहा देखो दरवाजे पर कौन लगातार घंटी बजा रहा है" किचन से नेहा की दादी बोली

दौड़कर नेहा ने दरवाज़ा खोला तो दरवाज़े पर अपनी बुआ को खड़ा पाया।

"कौन है नेहा'? रसोई से फिर आवाज़ आई

"दादी शांति बुआ आई हैं।" दरवाजे पर खड़ी नेहा ने कहा।

नेहा के मुंह से शांति का नाम सुन कुछ देर के लिए दादी स्तब्ध रह गई।


साड़ी का पल्लू कमर से निकालकर नेहा की दादी पल्लू में हाथ पोंछते हुए दरवाजे पर आ गई।


"यहां क्यों आई हो अब "गुस्से में लाल होकर दादी ने शांति से कहा।

दादी का रौद्र रूप देखकर नेहा थोड़ा घबरा गई, दादी हाई ब्लड प्रेशर के मरीज थी अतः जल्दी से रसोई से एक गिलास पानी लाकर दादी को दिया।

पानी का गिलास हाथ से अलग करते हुए दादी बोली "नेहा अपनी बुआ से कह दो अपना बोरिया बिस्तर लेकर उस दिन की तरह यहां से निकल जाए जैसे उस दिन हमारी इज्जत को दांव पर रखकर निकल गई थी।" मां की कटु बात सुनकर भी शांति दरवाजे पर ही खड़ी रही। नेहा की दादी ने दरवाजा उसके मुंह पर बंद कर दिया। और सोफे पर आकर बैठ गई, नेहा के हाथ से पानी लेकर पीया और अतीत में खो गई। नेहा कभी खिड़की से दरवाजे पर बैठी बुआ को देखती है तो कभी सोफे पर गुस्से में लाल बैठी अपनी दादी को।

 नेहा भी चुपचाप से अपनी दादी के बगल में आकर बैठ गई नेहा की उम्र 15,16 साल की थी और वह सब कुछ समझ सकती थी।

" दादी दादी क्या सोच रही हो" नेहा की आवाज़ सुन दादी किसी गहरी सोच से बाहर निकल आएं।

"दादी बुआ काफ़ी देर से गर्मी में बाहर बैठी हैं क्या हम उन्हें अंदर बुला ले।"

"नहीं मैंने उसे अंदर आने का एक मौका दिया था लेकिन अब मैं दोबारा उसे अपनी दहलीज के अंदर नहीं आने दूंगी"-दादी ने आंखें लाल करते हुए कहा।


अपनी दादी के पास बैठी नेहा ने बड़े स्नेह के साथ दादी से कहा "मुझे बहुत अच्छे से वह दिन याद है जब बुआ की शादी होने वाली थी, दादा और पापा कई दिनों से शादी का प्रबंध कर रहे थे, हम लोगों के लिए भी सुंदर- सुंदर कपड़े आए थे लेकिन अचानक बुआ के गायब हो जाने से शादी नहीं हो पाई थी, और दादा जी को हार्ट अटैक आ गया था जिस कारण हमने दादाजी को सदा के लिए खो दिया था।"

दादी नेहा के मुंह से यह सब सुनकर वापस अतीत में चली गई और अपने दोनों पैर सोफे के ऊपर रख अपने एक हाथ से सिर पकड़ कर रोने लगी।

और रोते हुए बोली "नेहा लड़कियां घर की शान होती है माता पिता का अभिमान होती है जब वह कोई गलत कदम उठाती है तो माता-पिता की बनाई हुई इज्जत दो मिनट में मिट्टी में मिल जाती है, तुम अपने माता पिता के साथ कभी ऐसी हरकत मत करना जिससे उनका सर सदा के लिए झुक जाए।"

नेहा ने अपने हाथों से दादी के आंसू पोंछे और कहा "दादी वह एक नाज़ुक समय था, जो बीत गया इस प्रकरण को लगभग 5 साल भी हो गए हैं, बुआ के साथ क्या हुआ, उन्होंने किस तरह 5 साल काटे हैं हमें कुछ नहीं पता, उन्हें अंदर बुला लेते हैं और उनसे उनका हालचाल पूछते हैं आखिर वह इतने दिनों बाद वापस घर क्यों आए हैं। ऐसे दरवाजा बंद करने से कुछ नहीं होगा लोगों को कानाफूसी का मौका मिलेगा।"

दादी ने नेहा की बात समझते हुए दरवाजा खोलने की अनुमति दे दी।

नेहा ने दरवाजा खोलकर बुआ का सामान अंदर किया और उन्हें घर के अंदर बुला लिया।


शांति घर के अंदर आते ही अपने घर को देख कर रोने लगी, पिताजी की तस्वीर के आगे जाकर माफी मांगते हुए रोते-रोते जमीन में बैठ गई।

नेहा ने पानी का गिलास आगे बढ़ाते हुए बुआ को दिया पानी की एक दो घूंट लेकर बुआ अपनी मां के पैरों पर सर रख रोने लगी।

इसी बीच नेहा के माता-पिता भी अपने काम से वापस घर आ चुके थे।

शांति को घर पर देखकर पहले नेहा के पिता को बहुत गुस्सा आया और वह उसका हाथ पकड़ कर बाहर निकालने लगे, नेहा की मां ने समझाते हुए अपने पति का गुस्सा शांत किया और सुझाव दिया कि शांति से उसके बारे में पूरी जानकारी लेते हैं और उससे पूछते हैं उसने हमारे साथ ऐसा क्यों किया था।

अपनी पत्नी की बात मानकर नेहा के पिता कुछ शांत हुए।

अपने को संभालते हुए शांति ने कहा "मां और भाई मैंने आप लोगों की बात ना मानकर अपने जीवन में बहुत बड़ी गलती की है, मोहित ने मुझे अपनी बातों में फंसा कर प्यार का नाटक किया था वह पिताजी की संपत्ति के लालच में आकर मुझसे शादी करना चाहता था, लेकिन जब पिताजी ने उससे शादी करने के लिए मना कर दिया तो वह मुझे छोड़कर जाने लगा मैं उसके प्यार में इतनी पागल हो गई थी कि मैं उसकी आंखों में लालच नहीं देख पाई और शादी के मंडप से शादी में बनाए गए जेवर को लेकर उसके साथ भाग गई। उसने मुझसे शादी तो नहीं की मेरे जेवर लेकर उसने मुझे छोड़ दिया। और अपना पता नहीं कहां चला गया उसे ढूंढने की मैंने बहुत कोशिश करी तो मुझे पता चला कि वह पहले से शादीशुदा है। मैं वापस घर आना चाहती थी लेकिन जैसे मुझे पता चला कि मेरे सदमे में पिताजी की मृत्यु हो गई है मैं वापस घर आने की हिम्मत नहीं कर पाएं, जो मेरे पास बचे खुचे पैसे थे तथा अपनी कुछ सहेलियों की मदद से मैं एक किराए के घर में रहने लगी तथा छोटा मोटा काम कर अपना जीवन बिताने लगी, मैंने समझ लिया था कि यह मेरा पश्चाताप का समय है और मैं अपनी करनी का फल काट रही हूं।"

अपनी बहन की ऐसी हालत देखकर नेहा के पिता की भी आंखें भर आई।

मां का मन तो मां का होता है नेहा की दादी का भी गुस्सा कुछ शांत हो गया था।

नेहा ने परिवार वालों को समझाया कि बुआ को अपनी गलती का एहसास ही नहीं बल्कि वह उसका पश्चाताप भी कर चुकी है समय ने उन्हें उनकी गलती का एहसास कराया है, बुआ ने जो किया वह बीता हुआ कल था हमें अब आज की सोचनी है ताकि आने वाला कल बुआ के लिए सुखद हो और हमारे परिवार के लिए भी अच्छा रहे, मैंने देखा है इन 5 सालों में हमने बहुत कुछ खोया है, दादा को तो हम वापस नहीं ला सकते लेकिन घर के दूसरे सदस्य को तो हम वापस घर में ला सकते हैं ना, सुबह का भूला अगर शाम को घर वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते।"

अपनी समझदार बेटी की बात से दादी और नेहा के पिता सहमत हो गए और बुआ के अतीत को भूल कर उन्हें वापस घर के सदस्य के रूप में स्वीकार कर लिया।



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