Deepika Raj Solanki

Tragedy

4.5  

Deepika Raj Solanki

Tragedy

मैं पीकदान नहीं हूं

मैं पीकदान नहीं हूं

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संजना की शादी को पूरे सात साल हो चुके थे, उसका एक छोटा बच्चा था।

संयुक्त परिवार में रहने के बाद भी संजना के बच्चे की देखभाल घर के अन्य बच्चों की तरह नहीं हुई।

सास अपनी जिम्मेदारियों से यह कहकर मुक्ति पा लेती कि उन्होंने अपने बच्चों को भी नहीं पाला उनके बच्चे उनकी बहन ने देखें, और जेठानी यह कहकर अपना पीछा छुड़ा लेती थी कि मेरे भी दो- दो बच्चे हैं।

संजना ने बचपन से ही अपने बेटे को अकेले ही पाला और साथ में घर का सारा काम भी वह बहुत कुशलता से संपन्न कर लेती थी।

अपने छोटे बच्चे के साथ संजना घर का सारा काम समय से और बहुत सफाई से कैसे कर लेती है यह जेठानी का सबसे बड़ा सरदर्द बन गया।

इस तरह से देवरानी और जेठानी के बीच शीत युद्ध हर घर की तरह चलता रहता।

संजना का पूरा दिन अपने बच्चे और घर के काम में निकल जाता बाकी समय वह किताबें पढ़ने और डायरी में कविता लिखने में निकाल देती।

संजना का पति अभिषेक, संजना के हर काम में जितना उससे हो सके मदद करता। जब वह ऑफिस से आ कर आपने बच्चे के साथ अपना समय बिताता,उस समय का उपयोग संजना अपने अन्य कामों में के लिए निकाल लेती।

संजना एक बोर्डिंग में पड़ी हुई लड़की थी तो उसे पता था समय का प्रयोग कैसे करना है। जितना काम घर का सास और जेठानी मिलकर करते, संजना अकेले ही उनसे अच्छा और जल्दी काम करके रख देती।

यह देखकर जेठानी को लगने लगा कि उसकी सत्ता हिलने वाली है, जेठानी उसके काम में कोई खोट तो नहीं निकाल पाती ,तो कभी संजना के कपड़ों को लेकर घर में कलेश करवा देती, तो कभी संजना के ऊपर घर वालों का ध्यान ना रखने का आरोप लगवा देती।

संजना की जेठानी सास ससुर और परिवार वालों की आंखों का तारा बनने के लिए हर वह काम करती जो उसकी सास को पसंद होता चाहे वह उसे पसंद हो ना हो, उसके बच्चे भी इतने बड़े हो गए थे कि वह अपना काम स्वयं कर सके, इस तरह जेठानी बच्चों की जिम्मेदारियों से पूरी तरह से मुक्त हो चुकी थी।

वही संजना का समय अपने छोटे से बच्चे के साथ गुजरता था।

संजना की व्यस्तता को ,उसकी जेठानी आराम में बदलकर लोगों के सामने रखती, सास ससुर ने भी यह मान लिया कि संजना अपना काम कर दिन भर आराम करती है।

संजना की जेठानी ने सबके मानसिक पटल में संजना की एक बिगड़ी हुई छवि छाप दी थी।

संजना कितना भी अच्छा काम कर ले उसे उसके बदले में ताने ही मिलते थे। जो संजना के मन में गहरे घाव देते, संजना जिन्हें आंसू में बहा देती।

संजना को अक्सर रोते हुए उसका पति देखता और उसे समझाता तुम सोने का निवाला भी बना कर अब इस परिवार को खिलाओगी तो भी यह लोग तुम्हारे नहीं हो पाएंगे क्योंकि तुम्हारी जेठानी ने तुम्हारे व्यक्तित्व को खराब करने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ी है।

इन चार - पांच लोगों के आगे कब तक अपनी बेगुनाही साबित करती रहोगी, इनको इनके हाल पर छोड़कर, तुम अपने हुनर पर ध्यान दो। देखो! जिस दिन तुम चमकोगी तुम्हारी चमक से यह सब फीके पड़ जाएंगे।

संजना को अपने पति की बात समझ आ गई, वह अपना काम पूरे दिल से करके ,बाकी बचे हुए समय को बर्बाद ना करते हुए , उसका सदुपयोग करने लगी और उसने एक उपन्यास लिख डाली।

संजना की जेठानी संजना के हुनर को भाप चुकी थी अतः वह अब अपनी वाहवाही की पृष्ठभूमि तैयार करने लगी।

उसे पता था संजना घर में ही रहती है और ज्यादातर रिश्तेदार उसे जानते तक नहीं है, रिश्तेदारों से उसका संपर्क ना के बराबर है , इसका फायदा जेठानी ने अपनी वाहवाही लूटने के लिए प्रयोग किया। जेठानी घर में रिश्तेदारों को किसी ना किसी कारण बुलाती रहती या फिर उनके घर आती जाती रहती।

और रिश्तेदारों से फोन पर संपर्क स्थापित कर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप में संजना की बुराई के पुल बांध रहती ,इसमें उसका साथ उसकी सास और ननद भी देते , कहीं ना कहीं उनको भी संजना की अपने बेटे से शादी पसंद नहीं आई थी उसका बदलाव वह संजना के बारे में गलत बयानबाज़ी करके लेने लगे। वह चाहते थे संजना इन सब से टूट जाएगी और उनका घर छोड़कर चली जाएंगी।

संजना और संजना के पति जेठानी और अपने घर वालों के षड्यंत्र से वाक़िफ रहते,जब कभी कोई रिश्तेदार उनके घर आता , संजना पूरे सम्मान पूर्वक उनका आदर सत्कार करती, और वह संजना के आवभगत से खुश होते और जेठानी यह सब देख कर उन रिश्तेदारों का माइंड वाश करने में लग जाती।

कुछ रिश्तेदार घुन की तरह होते हैं जो घर में घुसकर घर का अनाज खाते हैं और उसी घर की बर्बादी करते हैं, संजना की जेठानी के हाथ में भी कुछ इस तरह के रिश्तेदार लग गए। इन सब की परवाह किए बिना संजना अपने उपन्यास में काम करने लगी, जल्द ही संजना ने एक उपन्यास लिख डाला। 

संजना का लिखा हुआ उपन्यास एक प्रकाशन हाउस को बहुत पसंद आया और उन्होंने संजना का उपन्यास प्रकाशित कर दिया।संजना पहले से ही अपनी कविताओं के लिए प्रसिद्धि प्राप्त कर चुकी थी अब यह उपन्यास आने से वह और प्रसिद्ध हो गई।

उस की काबिलियत देख उसके सास ससुर भी दंग रह गए, उन्हें समझ में आ गया जो उन्हें संजना के बारे में दिखाएं और बताया जाता था वह केवल एक भ्रम था। वह अपना खाली समय अपने लिखने के हुनर को निखारने में निकालती थी।

संजना की जेठानी का षड्यंत्र यहां पर भी फेल हो गया। संजना की जेठानी ने अपना साम्राज्य हिलते हुए देख उन रिश्तेदारों का दामन पकड़ लिया जो संजना के पति से द्वेष भाव रखते थे।

अपनी को अच्छा और संजना को नीचा दिखाने के लिए अब उसे मौके बहुत कम मिलते लेकिन जब भी उसे कोई मौका मिलता तो वह उसका पूरा फायदा उठाने की कोशिश करती।

एक दिन संजना ने जेठानी को किसी रिश्तेदार से उसकी फोन पर बुराई करते हुए पकड़ लिया ।

कोई भी व्यक्ति एक सीमा तक ही अपने व्यक्तित्व का चीरहरण सहन कर सकता है, संजना का सहन करने का पैमाना उस दिन छलक गया। संजना ने कठोर शब्दों में अपनी जेठानी को हिदायत दी कि आगे वह इस तरह के हथकंडे ना अपनाएं।

अपनी चोरी पकडे जाने पर जेठानी उल्टा संजना के ऊपर इल्जाम लगाने लगी कि वह उसकी जासूसी करती है। उससे नफरत रखती है क्योंकि रिश्तेदार उसे पसंद करते हैं ।

दोनों के बीच हो रही तू -तू ,मैं -मैं सुन घर के और लोग भी वहां आ गए।

संजना अपनी बात रखती उससे पहले जेठानी ने सबके सामने रोते हुए कहा "मम्मी जी संजना ने उसका फोन छीन लिया और वह उसे कह रही थी तुम पूरे दिन रिश्तेदारों से उसकी बुराई करती हूं मम्मी जी क्या मेरे पास इसकी बुराई के अलावा और कोई काम नहीं है ;इसे तो रिश्तेदार थूकते भी नहीं है और मुझे फोन करके मेरा हाल- चाल पूछते हैं जिससे यह चिढ़ जाती है और जल भुनकर यह मुझ पर इसकी बुराई करने का आरोप लगाती है।

सास ने जेठानी का साथ देते हुए संजना से कहा"यह घर की बड़ी बहू है और रिश्तेदार उसे अच्छी तरीके से परिचित हैं तुम्हें इस पर ऐसा इल्जाम नहीं लगाना चाहिए था।"

संजना समझ गई कि 'भैंस के आगे बीन बजाने' का कोई फायदा नहीं है।उसने अपने अपमान का घूंट पीते हुए बस यही कहा "जेठानी थूका तो पीक दान में जाता है और मैं पीकदान नहीं हूं।"


यह कहकर संजना वहां से चली गई।मौन खड़े संजना के ससुर उस की बातों का भाव समझ गए।

जो व्यक्ति दूसरों की काबिलियत से अपने को असुरक्षित समझते हैं वह अक्सर अपने को साबित करने के लिए अपनी काबिलियत भूल जाते हैं और इस असुरक्षा के कारण दूसरों के आगे बीन बजाने लगते हैं ताकि दूसरे उन्हें अच्छा माने और उनकी बड़ाई करें।

अपने किए हुए काम को वह बढ़ा चढ़ाकर बताते हैं तथा सामने वाले व्यक्ति का दिल जीतने के लिए उसके उचित या अनुचित हर कार्य का समर्थन कर समाज में कुरीतियों को बढ़ाते हैं, जिस कारण समाज में अभी भी कई कुर्तियां का नाश नहीं हो पाया है।

और वह यह भूल जाते हैं कि घर की फूट जगत की लूट बन जाती है। जब कभी मुश्किल वक्त आता है तो यह रिश्तेदार नामक प्रजाति काम नहीं आती बल्कि अपने घर के लोग ही काम आते हैं।

घर के बुजुर्गो को भी इस बात का ध्यान देना चाहिए कि घर की प्रत्येक बहू को समान अधिकार और सम्मान दें ताकि घर का आंगन खुशियों से भरा रहे ना कि लड़ाई के अखाड़ा में बदल जाएं।।



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