Deepika Raj Solanki

Drama

3.7  

Deepika Raj Solanki

Drama

अपनों की अहमियत

अपनों की अहमियत

5 mins
446


सुदेश आज कुछ बेचैन था वह जल्दी से अपनी दुकान बढ़ा कर घर आ गया। घर की सीढ़ी चढ़ते ही उसने देखा कि उसके पिताजी के कमरे के बाहर कुछ लोग खड़े हैं, बिना सोचे समझे वह अपने पिताजी के कमरे की तरफ बढ़ गया, कुछ साल पहले उसके पिताजी ने उसे और उसकी पत्नी को अपने घर से निकालने की पूरी कोशिश की थी लेकिन कानून का सहारा लेकर सुदेश अपने परिवार के साथ घर के ऊपर वाले हिस्से में रहने लगा था, उसके आने जाने का रास्ता भी अलग कर दिया गया था लेकिन आज पिताजी के कमरे के बाहर कुछ लोगों को देख ,अपना और अपने परिवार का अपमान बुलाकर वह सीधे पिताजी के कमरे की ओर बढ़ा, उसने देखा कि कोई पिताजी का ब्लड प्रेशर नाप रहा था, कोई पिता जी के पैर मल रहा है।

वह तुरंत समझ गया कि पिताजी की तबीयत ठीक नहीं है उसने अपनी पत्नी को उसी कमरे से आवाज देकर डायबिटीज नापने की मशीन मंगाई।

उसकी पत्नी जल्दी से मशीन लाकर सुदेश को दे दी, सुदेश का शक ठीक निकला उसके पिताजी की डायबिटीज 17 पर्सेंट रह गई थी और वह कोमा में जा रहे थे ,उसने घरवालों पर गुस्सा करते हुए कहा"पिताजी की इतनी हालत ख़राब हो रही है और तुम लोगों ने मुझे बताया तक नहीं किस अभिमान में जी रहे हो"।

उसने अपने पिताजी को उठाया और अपनी गाड़ी में बैठा कर सीधे डॉक्टर के पास ले गया। महामारी के माहौल को देखते हुए कई अस्पतालों ने बीमार पिताजी को भर्ती करना तो दूर देखने तक की जहमत नहीं उठाई,बिना रुके कई अस्पतालों के चक्कर काटकर आख़िरकार उसे एक अस्पताल मिला जिसने पिताजी को भर्ती करने से पहले कोरोना टेस्ट करने के लिए कहा।

पिताजी का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आ गया और अस्पताल वालों ने उन्हें भर्ती करने से मना कर दिया कुछ दवाइयां देकर उन्हें घर में रखने की सलाह दी।

 यह वही बेटा था जिसको पिताजी ने अपने दूसरे बेटे के कहने परअपनी प्रॉपर्टी से बेदखल कर रखा था। पिताजी के कोरोना पॉजिटिव होने की खबर सुनकर सारे रिश्तेदार गायब हो गए और अपने को सुरक्षित रखने में लग गए।

अपने स्वास्थ्य की चिंता ना करते हुए सुदेश ने अपने पिताजी को संभालते हुए घर लाकर उनकी देखभाल करने लगा।

उधर सुदेश की पत्नी भी अपने पति के साथ परिवार के दुख में खड़ी हो गई। अपनी सास को वह अपने साथ अपने कमरे में ले आई। इसी बीच पता चला कि सुदेश की भाभी भी कोरोना पॉजिटिव हो गई हैं अतः अब उनके बच्चों की जिम्मेदारी भी सुदेश और उसकी पत्नी पर आ गए क्योंकि सुदेश का बड़ा भाई दूसरे शहर में नौकरी करता था और कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन की वजह से वह घर आने में असमर्थ था।

दोनों मियां बीवी बीमार परिजन की सेवा में लग गए।

यह वही परिवार था जिसने सुदेश को कुछ महीने पहले कोरोना होने पर भी नहीं पूछा था और उसका छोटा बच्चा अस्पताल से अपने पिता के आने का रोज दरवाजे पर खड़े हो इंतजार करता लेकिन घर का कोई भी सदस्य उस मासूम बच्चे की तरफ देखता तक नहीं था। सुदेश की पत्नी अकेले ही अपने छोटे से बच्चे और पति की देखभाल करती।

आज वही सुदेश और उसकी पत्नी परिवार में आए इस दुख को अपना दुख मानकर परिवार के साथ खड़े हो गए।

जेठानी और ससुर की सेवा के साथ-साथ सुदेश की पत्नी जेठानी के बच्चों और सास के सारे काम अपनी जिम्मेदारी समझकर करती।

जो लोग कल तक घर की फूट में मज़ा ले रहे थे, वह दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहे थे।

निस्वार्थ भाव से अपने बेटे और बहू को सेवा करते हुए देखना बीमार पिता को अपनी गलती का एहसास होने लगा था , सास भी जिस बहू को निकम्मा ,कामचोर समझ रही थी उसकी समझदारी और सूझबूझ से पूरे घर का काम करते हुए देख अचंभित रह गई, उन्हें भी समझ में आ गया था कि जो उनको उनकी छोटी बहू के बारे में बताया जाता था वह सरासर गलत था।

जेठानी जो सुदेश, सुदेश की पत्नी के लिए कई षड्यंत्र रचा करती थी उसे भी अपनी गलती का एहसास हो गया, लालच में आकर वह सुदेश और उसकी पत्नी को घर से और प्रॉपर्टी से बेदखल करने की काफी कोशिश कर चुकी थी, आज उसके बीमार पड़ने पर और पति के दूसरी जगह होने के कारण उसके बच्चों की देखभाल करने वाले केवल सुदेश और उसकी पत्नी ही थे। सुदेश और सुदेश की पत्नी ने अपने भाई के बच्चों को अपने बच्चों की तरह रखा और स्नेह दिया।

परिवार के बच्चे भी अब एक साथ खाते खेलते, यह सब देख कर सुदेश की माता-पिता को बहुत अच्छा लगता।

सुदेश और उसकी पत्नी की सेवा के कारण सुदेश के पिताजी और भाभी जल्द ही ठीक हो गए।

सुदेश और उसकी पत्नी ने परिवार वालों को अपनों की अहमियत बता दी।

जो कल तक कुछ लालची लोगों की बातों में आकर अपने ही सगे बेटे के साथ बिना किसी गलती के दुश्मनों जैसा व्यवहार कर रहे थे उसी बेटे ने आज उनकी जान बचाई और परिवार को संभाला।

घर के बड़े बुजुर्गों होने के बावजूद भी सुदेश के पिता जी ने जिस घर के अपने हाथों से टुकड़े कर दिए थे, आज उसी शोषित बेटे ने अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अपने परिवार को अपना समझते हुए परिवार के प्रति एक आंख रखी।

यह सब देख कर सुदेश के पिताजी की आंखें खुली। उम्र और तजुर्बे में कम अपने बेटे से यह सीखा कि अपना परिवार और अपने लोग ही मुसीबत में काम आते हैं, बाहर वाले केवल तमाशा देखते हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama