रंग में भंग
रंग में भंग
सक्सेना जी के वहां होली की तैयारियां बड़ी जोर जोरों से चल रही थी, हो भी क्यों ना इस बार होली में उनका इकलौता बेटा अपनी विदेशी बीबी तथा बच्चों के साथ होली के उपलक्ष पर भारत आ रहा था।
घर में सब लोग बहुत खुश थे, सक्सेना जी की पत्नी अपने बेटे की पसंद की मिठाइयां, गुजिया और कई तरीके की नमकीन कई दिन पहले से बनाने लगी थी।
सक्सेना जी का बेटा अतुल अपनी पत्नी विक्टोरिया के साथ तथा अपनी 5 साल की बेटी तथा 2 साल के बेटे के साथ होली के कुछ दिन पहले ही भारत आ गया।
विक्टोरिया ने होली के बारे में बहुत कुछ सुना हुआ था, और वह होली खेलने के लिए बहुत उत्साहित भी थी। यहाँ सुन के सक्सेना जी की खुशी और दोगुनी हो गई।
सक्सेना जी ने अपनी बहू को होली से संबंधित सारी जानकारी दी और विक्टोरिया ने भी हर चीज को बारीकी से समझा।
रसोई में अपनी सास को गुजिया बनाते देख उसे बहुत अच्छा लगा और उसने भी अपनी सास की अपने दिल से मदद की।
सक्सेना जी की पत्नी को पहले लग रहा था कि बेटा विदेशी बहू ले आया है वह हमारे रीति रिवाज कैसे निभाएंगी? लेकिन विक्टोरिया से मिलने के बाद उनकी सारी आशंकाएं समाप्त हो गई।
वह सारे रीति रिवाज को अपने दिल से तथा खुशी से पालन कर रही थी यह देखकर सक्सेना परिवार बहुत खुश हो रहा था।
विक्टोरिया अपने पति के साथ तथा बच्चों को लेकर स्थानीय बाजार में भी दो तीन बार गई, अपनी पसंद के रंग, बच्चों की पिचकारियां, होली के कपड़े तथा रंग बिरंगे मुखोटे आदि खरीद कर आई।
होलिका दहन के दिन विक्टोरिया अपने बच्चों के साथ होलिका दहन की तैयारी हेतु पास के बाजार गई, 5 साल की बेटी ने मां का हाथ पकड़ रखा था और विक्टोरिया ने अपने 2 साल के बेटे को गोदी में ले रखा था।
अचानक बाजार में कुछ हुडदंगीय लड़कों की टोली कैमिकल युक्त रंग, गोबर, कीचड़ तथा पानी के गुब्बारे लेकर लोगों पर फेंकने लगे, और अपनी ही मस्ती में चिल्लाते हुए होली है होली है कहते हुए बाजार की गलियों से निकलने लगे।
उसी टोली में कुछ लड़कों ने जैसे ही विक्टोरिया को देखा, वह विक्टोरिया के साथ अभद्र व्यवहार करने लगे उन्हें यह तक नहीं दिखाई पड़ा कि उसकी गोदी में 2 साल का छोटा बच्चा है, एक विदेशी महिला होने के कारण उसे वह बहुत आपत्तिजनक शब्दों से संबोधित करने लगे, विक्टोरिया हिंदी बहुत अच्छे से जानती थी अतः उसे सब समझ में आ रहा था वह समझ नहीं पा रही थी कि वह अपने बच्चों को लेकर कैसे घर पहुंचे। तभी किसी ने उसके ऊपर गंदे पानी का गुब्बारा फेंक दिया जो उसके गोद में लिए बच्चे के आ के लगा, और बच्चा जोरों से रोने लगा, यह देखकर विक्टोरिया ने तुरंत अपनी बेटी का हाथ छोड़ा और बच्चे को देखने लगी।
यहां सब देखकर विक्टोरिया की 5 साल की बेटी बहुत घबराई हुई थी तभी हुड़दंगियों की टोली में से किसी ने उस 5 साल की बच्ची को बुरी तरीके से रंग दिया।
पहले से घबराई बच्ची और परेशान हो गई। विक्टोरिया को समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने बच्चों को कैसे संभाले।
बाजार में विक्टोरिया के आसपास खड़े लोग तमाशा देख रहे थे, तभी उसमें से एक नौजवान विक्टोरिया के पास आया और उसे अंग्रेजी में पूछा कि आप कहां से हैं विक्टोरिया ने उसे हिंदी में जवाब देते हुए कहा कि वह सक्सेना जी की बहू है।
है । नौजवान सक्सेना जी को जानता था अतः उसने विक्टोरिया की मदद करनी चाहिए लेकिन विक्टोरिया अब किसी पर विश्वास नहीं कर रही थी उसने तुरंत अपने पति को फोन लगाया और उसे सारी सूचना दी।
तब तक अतुल उसके पास पहुंचा तब तक उसके बेटे का रोना बंद हो गया था लेकिन बेटी अभी भी रो रही थी और घबराई हुई थी।
विक्टोरिया का फोन आते ही सक्सेना जी भी अपने बेटे के साथ विक्टोरिया के पास 5 मिनट पर पहुंच गए।
विक्टोरिया और बच्चों का हाल देख कर अतुल के साथ-साथ सक्सेना जी को भी बहुत गुस्सा आया पर वह उस समय कुछ नहीं कर सकते थे, वह विक्टोरिया और बच्चों को लेकर पास के डॉक्टर के पास गए।
डॉक्टर ने बच्चे की जांच कर बताया सब कुछ ठीक है लेकिन छोटी बच्ची उन हुड़दंगी लड़कों की हरकत से इतना घबरा चुकी थी कि कोई उसे छूता भी तो उसे डर लगता।
विक्टोरिया को भी गंदे पानी से चेहरे और हाथों में एलर्जी हो गई थी। उसे भी डॉक्टर ने कुछ दवाइयां दी।
सक्सेना जी अपने बहू - बेटे और बच्चों के साथ जैसे ही घर पहुंचे तो सक्सेना जी की पत्नी अपनी बहू और बच्चों का यह हाल देखकर दंग रह गई।
वह बड़ी खुशी से घर में होलिका दहन की तैयारी कर रही थी, उन्होंने अपनी बहू के लिए काफी समय पहले से एक बनारसी साड़ी रखी थी और वह यह साड़ी उसे पहनाकर होलिका दहन की पूजा पर ले जाना चाहती थी लेकिन बहू और बच्चों की हालत देखकर सब धरा का धरा रह गया।
कुछ देर आंगन में बैठकर विक्टोरिया ने अपने को संभाला तथा अपनी बेटी को भी समझाने की कोशिश की लेकिन वह इतना डर चुकी थी कि वह अपनी मां को छोड़कर किसी के पास नहीं जा रही थी।
वह बार-बार यही कह रही थी कि उसके कपड़ों में और चेहरे पर लगे रंग को उतारो। विक्टोरिया अपनी बेटी और बच्चे को नहलाने के लिए ले गई लेकिन काफी कोशिश करने के बाद भी रंग बच्ची के चेहरे से पूरी तरह नहीं निकला।
बच्ची बार बार अपना चेहरा शीशे में देख कर रोती और अपने पापा से वापस भारत से जाने के लिए कहती।
बच्ची की हालत देखकर विक्टोरिया का भी उत्साह खत्म हो चुका था, जो होली की तैयारियां बड़े मन से कर रही थी आज वह होली के रंग से डर रही थी।
यह सब देख कर सक्सेना जी और उनकी पत्नी को बहुत बुरा लग रहा था। विक्टोरिया ने होली के बारे में बहुत कुछ अच्छा पढ़ा वह सुना था और वह अच्छा देख भी चाह रही थी लेकिन कुछ हुड़दंगियों के कारण होली को लेकर विक्टोरिया का नजरिया पूरी तरीके से बदल गया।
होलिका दहन का समय हो रहा था सक्सेना जी की पत्नी अपनी बहू और पोता पोती को होलिका दहन दिखाने के लिए ले जाना चाहती थी लेकिन जो घटनाक्रम उनके साथ घटा था, उसके कारण उनसे पूछने में भी हिचकिचा रही थी।
विक्टोरिया अपनी सास के भावनाओं को समझ सकती थी अतः उसने अपनी सास से कहा "मॉम मैं अपना त्यौहार कुछ हुड़दंगियों के कारण खराब नहीं करूंगी मैं आपके साथ होली की पूजा में अवश्य चलूंगी," उसने अपनी सास से वह बनारसी साड़ी ली और बहुत सलीके से पहनकर तथा अपने बच्चों को तैयार कर होलिका दहन की पूजा के लिए गए।
साथ में सक्सेना जी और अतुल भी गए , छोटी सी बच्ची यह सब देख कर थोड़ी सामान्य हुई,
फिर सक्सेना जी ने उसे आधी अंग्रेजी और आधी हिंदी में समझाते हुए कहा "यह होलिका दहन बुराइयों को जलाकर मनुष्य के अंदर अच्छाई को पैदा करता है।
हमारे आसपास की सारी नेगेटिव पावर को खत्म कर देता है। जो आपके साथ आज बाजार में हुआ वह नेगेटिव था जिसे इस होलिका दहन ने खत्म कर दिया कल नए रंगों के साथ नई पॉजिटिव एनर्जी आप के त्यौहार को और सुंदर बनाएगी।"
कहते हुए सक्सेना जी ने अपनी पोती को गोद में पकड़ लिया और उसे सारी पूजा कराई। जिससे उस छोटी बच्ची के मन में बैठा डर बहुत कम हो गया।
दूसरे दिन सब लोगों ने मिलकर होली खेली।
लेकिन होली का एक भयानक रूप विक्टोरिया के मन में कहीं ना कहीं घर कर चुका था। वह जो सोच कर होली के उपलक्ष में भारत आई थी , उसका दूसरा भयानक रूप देख कर होली को लेकर विक्टोरिया के मन में एक डर भी बैठ गया था।
हमारे समाज में कुछ लोगों के कारण हमारे त्यौहारों का स्वरूप बदल दिया जाता है अपनी मौज मस्ती के लिए लोग त्योहारों का गलत उपयोग करते हुए उनका मतलब बदल देते हैं। और हमारी संस्कृति और सभ्यता को अपमानित करते हैं