रिश्ता तेरा-मेरा
रिश्ता तेरा-मेरा
रीता की सहेली अनिता के बेटे शलभ की शादी थी। जाने की तैयारियां करते हुए उसने अपनी बेटी शीतल से कहा- तुम भी दूल्हा-दुल्हन के लिए कोई तोहफा ले लो अपनी तरफ से।
शीतल ने एक बंदर दिखाते हुए कहा- ये देखो माँ मैं तो तोहफा ले भी आयी उस बंदर के लिए।
रीता ने हँसते हुए कहा- अब तो उसकी खिंचाई करना छोड़ो। शादी हो रही है बेचारे की।
शीतल ने जवाब दिया- बिल्कुल नहीं। वो मेरा सबसे बड़ा दुश्मन है।
दोनों माँ-बेटी बातों में लगे हुए थे कि तभी फोन कि घंटी बजी। दूसरी तरफ अनिता थी परेशान और बेचैन।
रीता ने घबराकर पूछा- क्या हुआ सखी? सब ठीक तो है।
अनिता ने बस इतना ही कहा- शलभ की शादी टूट गयी सखी।
इससे पहले की रीता कुछ पूछ पाती अनिता ने फोन रख दिया था।
ना जाने क्यों शीतल का मन बेचैन हो गया था ये खबर सुनकर। उसका जी चाहा एक बार शलभ से बात करे लेकिन ये सोचकर रुक गयी कि जिससे आज तक सीधे मुँह बात नहीं हुई उसकी, उससे इस वक्त क्या कहेगी।
क्रिसमस आने वाला था। शीतल को क्रिसमस ट्री सजाना बहुत पसंद था। वो क्रिसमस ट्री की खरीददारी कर लौट रही थी कि उसकी नज़र शलभ पर पड़ी। कुछ लोगों ने उसे घेरा हुआ था। शीतल वहाँ पहुँची तो उसने देखा शलभ पूरी तरह शराब के नशे में था।
शीतल ने उन लोगों से पूछा- बात क्या है? आप सब क्यों इसे परेशान कर रहे है?
उन लोगों ने कहा- मैडम इन्होंने नशे में हमारी दुकान में तोड़-फोड़ की है और अब पैसे भी नहीं दे रहे।
जिस शलभ के सुलझे हुए स्वभाव का उदाहरण उसे हमेशा अपनी माँ से तानों के रूप में मिलता था आज उसी शलभ के बारे में ऐसी बात सुनकर शीतल को झटका लगा।
शीतल ने उन लोगों के पैसे दिए और शलभ को लेकर किसी तरह अपने घर आई।
रीता शलभ को देखकर हैरान थी। शीतल से सारी बात जानकर उसने अनिता को फोन किया और कहा- सखी शलभ मेरे घर पर है। तुम घबराना मत।
अगली सुबह जब शलभ का नशा उतरा तो खुद को शीतल के कमरे में देखकर वो हैरान था।
रीता से पिछली रात की बात जानकर सॉरी बोलते हुए शलभ जाने लगा।
तभी शीतल ने उसे आवाज़ लगाई- रुको बंदर मैं भी साथ चलूंगी। कुछ काम है तुमसे।
शलभ ने अनमनेपन से कहा- मैं किसी के काम का नहीं हूँ।
शीतल ने साथ चलते हुए कहा- काम मुझे है तो मुझे बेहतर पता होगा ना।
दोनों पास के एक कैफे में पहुँचे। शीतल ने शलभ से कहा- मैं जानती हूँ हम दोस्त नहीं है और शायद कभी हो भी नहीं सकते। फिर भी क्या तुम मुझे बताओगे की चल क्या रहा है? तुम्हें इस हाल में देखूँगी ये कभी नहीं सोचा था मैंने।
अचानक शलभ फूट-फूटकर रो पड़ा।
शीतल घबरा गई। उसने शलभ को शांत करने की कोशिश की।
थोड़ी देर में जब शलभ के आँसू थमे तब उसने बताया- जिस लड़की से उसकी शादी तय हुई थी उसने ये कहकर रिश्ता तोड़ दिया कि उसे काले लड़के से शादी नहीं करनी है। सब हँसेंगे उन दोनों की जोड़ी पर। उसने किसी और से शादी कर ली है।
शादी टूटने के बाद से सारे रिश्तेदारों के ताने सुन-सुनकर घरवाले भी मुझसे नाराज है।
शीतल ने शलभ का हाथ अपने हाथों में लेकर कहा- तुम बंदर ही नहीं पागल भी हो। जिस बेवकूफ ने सिर्फ तुम्हारा रंग देखा दिल नहीं, उसके लिए ये कीमती आँसू बहा रहे हो। और रिश्तेदारों का तो काम ही आग लगाना है।
रही घरवालों की बात तो अभी वो भी सदमे में हैं,थोड़ा वक्त दो उन्हें।
जिसे तुम्हारे दिल से प्यार होगा देखना वो तुम्हें जल्दी मिलेगी। फिर मिठाई खिलाना मुझे ये कहते हुए कि अच्छा हुआ वो शादी टूट गयी।
शीतल की बातों से अब शलभ को अच्छा महसूस हो रहा था।
वो चाहता था ये बातचीत चलती रहे कि अचानक शीतल ने कहा- अब घर जाओ। सब परेशान होंगे।
शलभ ने मुस्कुराते हुए कहा- पहले हाथ तो छोड़ो। वरना तुम्हें साथ लेकर जाना होगा।
शीतल भी हँस पड़ी।
शाम को जब शीतल ने अपना फ़ेसबुक खोला तो देखा शलभ की फ्रेंड रिक्वेस्ट थी।
उसने स्वीकृति का बटन दबाया और शलभ को संदेश भेजा- तुम्हें मित्र सूची में शामिल तो कर लिया है बंदर लेकिन हम कभी दोस्त नहीं हो सकते।
शलभ ने जवाब दिया- मैंने कब कहा दोस्त बन जाओ। तुम दुश्मन ही ठीक हो।
अब दोनों के बीच बातचीत का जो ये सिलसिला शुरू हुआ तो धीरे-धीरे बातें लंबी और रातें छोटी होने लगीं।
शलभ जब भी निराश होता, शीतल उसे हिम्मत देती। कभी उसे समझाती, कभी डाँटती।
शीतल के साथ का असर था कि शलभ अब तनाव से बाहर आने लगा था जिसका सकारात्मक असर दफ्तर में उसके काम में भी दिखने लगा था।
जिस बॉस ने उसे नौकरी से निकालने की धमकी दी थी, उन्होंने खुद उसका प्रोमोशन पक्का कर दिया था।
रात में शलभ ने शीतल को प्रोमोशन की बात बताते हुए कहा- ये सब तुम्हारे उन लेक्चर का असर है जिसे सुना-सुनाकर तुमने मुझे उस दर्द से बाहर निकाला। तुम जो चाहो वो तोहफा माँग लो मुझसे।
शीतल ने जवाब में लिखा- तुम खुश हो, मुस्कुरा रहे हो, यही मेरा तोहफा है।
घरवालों के कहने पर शलभ ने भगवान का धन्यवाद करने के लिए शिरडी जाने की योजना बनाई।
यात्रा के दौरान शीतल से उसकी कम ही बात हो पा रही थी। एक अलग सी बेचैनी महसूस हो रही थी उसे शीतल के बिना।
उधर शीतल भी हर वक्त शलभ के ही बारे में सोचती रहती थी।
किसी ने क्या खूब कहा है
"मैंने दिल के दरवाजे पर लिखा अंदर आना मना है,
प्रेम हँसता हुआ आया और भीतर चला गया।"
शिरडी से लौटने के बाद शलभ ने शीतल को मिलने के लिए बुलाया।
शीतल के पहुँचने पर शलभ ने शीतल की प्रिय नारियल बर्फी का डब्बा उसके हाथों में रखते हुए कहा- तुमने बिल्कुल ठीक कहा था कि मैं एक दिन तुम्हें ये कहते हुए मिठाई खिलाऊँगा कि अच्छा हुआ मेरी शादी टूट गयी।
शीतल ने आश्चर्य से शलभ को देखा और पूछा- तो क्या तुम्हें वो मिल गयी जिसे तुमसे प्यार है?
शलभ ने कहा- हाँ आखिरकार मुझे वो मिल ही गयी।
शीतल ने बर्फी का डब्बा टेबल पर पटकते हुए कहा- तो ये मिठाई जाकर उसे ही खिलाओ। मुझे नहीं चाहिए।
शलभ ने मिठाई का एक टुकड़ा शीतल के मुँह में डालते हुए कहा- उसे ही तो खिला रहा हूँ।
शीतल हँसते हुए बोली- ये गलतफहमी तुमने कब से पाल ली बंदर ?
शलभ ने कहा- जबसे तुमने मिठाई का डब्बा टेबल पर पटका तबसे।
अगर तुम्हें इनकार है तो जा सकती हो तुम। मैं रोकूँगा नहीं।
वैसे भी कहाँ तुम दूध-सी गोरी और मैं कोयले-सा काला।
दोनों के सम्मिलित ठहाकों से कैफ़े गूँज उठा।
शीतल ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा- खबरदार फिर कभी ऐसी बात कही तो। काला नहीं,मेरे कृष्णा सा सांवला-सलोना है मेरा बंदर।
मंडप में फेरे लेते हुए शीतल का हाथ थाम शलभ ने कहा- तुमने सच कहा था। हम कभी दोस्त नहीं हो सकते क्योंकि हमें उससे भी बढ़कर एक-दूसरे का जीवनसाथी जो बनना था।
रीता और अनिता मोहब्बत की जादूगरी को देख मुस्कुराते हुए अपने बच्चों को आशीर्वाद दे रही थीं जिसकी बदौलत एक-दूसरे की शक्ल से चिढ़ने वाले दो लोग आज जन्म-जन्मांतर के बंधन में बंध चुके थे इन पंक्तियों को सार्थक करते हुए
"तुम्हारे छूने में था प्राण,
संग में पावन गंगा-स्नान।
तुम्हारी वाणी में कल्याणी,
त्रिवेणी लहरों का गान।"