रिमझिम गिरे सावन !
रिमझिम गिरे सावन !


टिंग टाग घंटी बजती है, रीमा जल्दी से जाकर दरवाजा खोली। मानव ऑफिस से भीगा हुआ आया और बोला "फटाफट जल्दी से गरमा गरम चाय पिला दो मैं कपड़े बदल कर आता हूँ । "
रीमा चाय बना कर लाती है और रेडियो बजा देती है।मानव भी कपड़े बदल कर आ जाता है। रीमा रेडियो मे बजने वाले मौसम के अनुकूल गानो का लुफ्त उठाते हुए रेडियो के साथ गुनगुनाती है "रिमझिम गिरे, सावन ...." दोनों चाय पीते हुए बातें कर रहे हैं। मूसलाधार बारिश अपने चरम को स्पर्श कर हल्की बूँदाबादी का रूप ले चुकी है।
बारिश की कुछ बूंदे मोती की तरह खिड़कियों पर जमी हुई हैं तो कुछ मोती शीशे पर चलते से प्रतीत हो रहे हैं। दोनों बातें करते-करते चाय का कप लिए घर से बाहर का नजारा लेने खिड़की पर जाते हैं। रीमा ने ठंडी- ठंडी हवाओं का आनंद तथा मिट्टी की सोंधी खुशबू लेने के लिए खिड़की खोल दी। ठंडी नम हवाएं दोनों के तन बदन को हौले हौले भिगो रही थीं साथ मे गर्म चाय की चुस्कियां सारी थकावट दूर कर रही थी। कभी कभी दूर कहीं बिजली कौंध कर आसमान को चौंका देती। बड़ा ही रुमानी समां हो रहा था। दोनों एक दूसरे के आगोश में आने ही वाले थे कि अचानक उन्हे बाहर से एक बच्चे का हल्का करुण क्रंदन सुनाई पड़ा।
रीमा कौतूहल से बेचैन हो, उस आवाज पर ध्यान लगाने की कोशिश करती है। पर इस अंधेरे मे बाहर का नजारा कुछ स्पष्ट न होने से दोनों दरवाजा खोल बाहर जाते हैं। एक गरीब परेशान बारिश मे सराबोर आदमी-औरत खड़े थे व उनका बच्चा जो लगभग चार साल का होगा वही दीवार के किनारे बैठ रो रहा था। उस गरीब आदमी ने मानव को देखते ही सहायता की फरियाद की। मानव ने पूछा तुम लोग कौन हो। उसने बताया कि हम लोग आजकल की इस महामारी के चलते सारा काम धाम छूट जाने से अपने घर जा रहे थे। एक बस शहर के किनारे आकर छोड़ गई। वहाँ से पैदल आ रहे हैं। अभी यहाँ से आठ किलोमीटर दूर कच्चे पैदल रास्ते पर हमारा गाँव है। बच्चा भूख व थकान से चूर होने के कारण अब चल नहीं पा रहा इसलिए दर्द के मारे रो रहा है।
रीमा तुरंत आनन-फानन में घर में गई और सबके लिए खाने का कुछ लेकर आती है। वो बेचारे गरीब आनन फानन मे मन भर खाना खा कर बहुत तृप्त हुए और रीमा को खूब दुआएं देते हैं। मानव ने पूछा कि तुम लोग अपने गांव के लिये जल्दी क्यों नहीं निकले"
"हां साहब हम जल्दी ही निकले पर बस रास्ते में बिगड़ गई इसलिए समय लग गया।"
"पर तुम्हारा गांव तो अभी बहुत दूर है।"
हां साहब "यहां कोई साधन भी नहीं है।"
मानव में अपने नौकर रामू जो कि सरवेन्ट क्वार्टर में था, उसको आवाज देकर बोला कि आज रात इनका दूसरे कमरे में रहने का इंतजाम कर दो।
वो गरीब मना करता रहे पर मानव बोला "कि तुम लोग इस बच्चे को ऐसी बरसात की रात में पैदल लेकर कैसे जा पाओगे। गांव का मामला है और अभी बारिश भी बंद नहीं हुई है। जगह-जगह पानी भरा होगा तुम लोग सुबह उठकर चले जाना। "
उस गरीब परिवार की मानव की दरियादिली देख आँखें भर आईं। इस विकट परिस्थिति मे ये सहारा पाकर उन्होंने मानव व रीमा का तहे दिल से धन्यवाद किया व दिल से दुआएँ दी।