Yogesh Kanava

Abstract Drama Romance

4  

Yogesh Kanava

Abstract Drama Romance

रेहाना

रेहाना

7 mins
302


संदेश अपने कार्यालय में बैठा कुछ विचारमग्न था कि अचानक ही रेहाना ने आकर दरवाजा खटखटाया। दरवाजे पर दस्तक से संदेश का ध्यान टूटा और दरवाजे की तरफ देखा। रेहाना खड़ी थी। आँखे एकदम सुर्ख, अंगारे सी, लग रहा था कि वो अभी खूब रोकर आई है। चेहरे के भाव भी बता रहे थे कि भीतर लावा सा कुलबुला रहा है। वो चुपचार अन्द आ गई और ठीक सामने वाली कुर्सी में लगभग गिर पड़ी।

रेहाना से संदेश का कोई पुराना परिचय नहीं था। बस आठ-दस हफ्ते पहले युं ही मुलाकात हुई और रेहाना उसके कार्यालय में आने लगी थी। सही मायने में तो रेहाना के बारें में कुछ भी नहीं जानता था बस केवल नाम जो उसने बताया था - रेहाना, इसके अलावा वो क्या करती है, कहाँ रहती है, कुछ भी नहीं जानता था। हाँ रेहाना की एक खूबी संदेश को बहुत पसन्द आयी थी वो बहुत अच्छा बोलती थी। दिनकर से लेकर महादेवी के काव्य में विरह-वेदना तक उसकी खूब चर्चा हुई। रेहाना की साहित्यक अभिरूचि ने संदेश को काफी प्रभावित किया। यही तो वो बात थी जिसके कारण अनजाने से व्यक्ति आपस में मित्रता के बन्धन में बन्धते से दिख रहे थे। फिर भी वो अभी तक उसके बारें में कुछ अधिक नहीं जान पाया था। वैसे तो आजकल वो हर दूसरे-तीसरे दिन संदेश के आॅफिस में आ ही जाती थी लेकिन आज जिस तरह से वो आई, संदेश अन्दर तक सशंकित हो गया। प्रश्न सूचक निगाहों से उसने सामने बैठी रेहाना को देखा। संदेश का उसे यूँ देखना था, वो तो आंसुओं का सैलाब लिए रो पड़ी। संदेश को समझ नहीं आ रहा था कि वो उसे कैसे चुप कराए। उसे छूकर उसके आँसू पौंछने के लिए उसका जी कर रहा था लेकिन उसके दिमाग ने इसके लिए इजाजत नहीं दी। वो बस उसे मौन साधे अपलक देखता रहा। आँसुओं की झड़ी थोड़ी सी कम हुई तो उसने वाशरूम की तरफ इशारा करते हुए कहा ‘‘रेहाना प्लीज दैट साईड’’! रेहाना चुपचाप वाशरूम गई और मुँह धोकर वापस आ गई। अब वो थोड़ा सा संयत हो चुकी थी, पर बिल्कुल चुपचाप सामने वाली कुसी में फिर से बैठ गयी थी।

‘‘क्या बात हुई ?’’ संदेश ने उसे धीरे से पूछा। इस बार रेहाना रोई नहीं, बस विचलित सी हुई और कहने लगी, ‘‘कहाँ से बताऊँ, मेरे बारे में आप कुछ भी तो नहीं जानते है’’ वो बताने लगी कि कादर उसका पहला पति था, वो उसे बहुत चाहता था, उससे उसके एक बेटी भी है, लेकिन एक एक्सीडेन्ट में उसकी मौत हो गयी थी। उस वक्त रेहाना की उम्र मात्र 21 वर्ष थी। एकदम जवान औरत, समाज-जीने भी नहीं देता है, और - छोटी सी एक बेटी को वो कैसे पालेगी। बस यही सोचकर उसने कादर की मौत के कोई तीन साल बाद लियाकत से निकाह की हाँ भर दी। लियाकत पेशे से दर्जी था, जो अपने हुनर का हुनरमन्द था। रोजाना अपने हिसाब से अच्छी कमाई कर लेता था। दिल का नेक आदमी था, बस एक ही ऐब था, वो रोजाना दारू पीता था। काम से आकर बस वो पीता तथा खाना खाते ही पड़ जाता था।

रेहाना ने निकाह तो कर लिया था लेकिन ना तो उसे शौहर और ना ही उसकी बेटी को बाप मिल पाया। ऐसा लगता था कि लियाकत को भी बस एक अदद बावर्ची की जरूरत थी, जो उसके लिए रोजाना खाना तैयार रखे, जैसे ही पीकर हटे उसे खाना दे दे और बस। यही क्रम था; यही दिनचर्या थी - रेहाना की लियाकत के घर में। आजाद खयालाज वाली रेहाना को ये कभी भी रास नहीं आ रहा था, वो महज एक बावर्ची नहीं थी। एक बीवी भी थीद्ध उसकी भी कुछ इच्छाएँ थी। कहानी और जिस्मानी दोनों ही। मगर लियाकत तो महज नाम का शौहर था उसके लिए। दारू पीकर खाया और बिस्तर में पड़ जाता था। वो, उसी बिस्तर में लेटी बस अपनी तकदीर को कौसती और कभी खर्राटे लेते लियाकत को देखती। सोचती रहती, कहीं इसे कोई जिस्मानी तकलीफ तो नहीं, या फिर नामर्द तो नहीं है। एक ही बिस्तर में औरत साथ ही है फिर भी कोई हरकत तक नहीं। धीरे-धीरे यही व्यवहार रेहाना को लियाकत से दूर करता रहा।

एक दिन अचानक ही रेहाना की मुलाकात राजवीर से हो गयी। धीरे-धीरे मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता गया और दूरियाँ घटती गयी। उधर लियाकत के अजीब से बर्ताव से परेशान रेहाना राजवीर जिसे अब वो ‘‘राज’’ कहने लगी थी की तरफ पूरी तरह से झुक चुकी थी और एक दिन रेहाना सीमाओं के सारे बांध अपनी पाल-तोड़कर सैलाब में बदल गई। राजवीर को अपने में समेट रेहाना आज वो सब कर गयी जिसे समाज प्राय वर्जित कहता है। रेहाना की नजर में वो कोई पाप नहीं था, क्योंकि एक नामर्द से इंसान के साथ वो क्यों यातनाओं की शैय्या पर शूल झेले। वो लियाकत के घरे में भी रहना नहीं चाहती थी। इसलिए राजवीर की मदद से उसने खुद अपना ही घर बना लिया। हालांकि राजवीर ने उसमें पैसा नहीं लगाया था पर बाकी की सारी मेहनत राजवीर ने ही की थी।

अपने मकान का सुख तो अपने मकान का ही होता है। रेहाना को अब लगता था कि वो मुक्कमिल तौर पर खुश है पर ये खुशी भी शायद उसके लिए अधूरी थी। कहीं ना कहीं मदन के किसी कौने में यह बात थी कि आखिर राजवीर भी तो विवाहित है, उसके भी दो बच्चे है और उधर रेहाना को भी राजवीर का बच्चा था जो धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था। अब उसे लगने लगा था कि इस बच्चे के बाप का नाम क्या बताए। लियाकत को वो पहले ही नामर्द करार दे चुकी थी और राजवीर का बच्चा - वो बता नहीं सकती थी। यही फाँस उसके दिल में चुभती रहती थी पर क्या करे, मन से चंचल रेहाना और राजवीर के बीच इसी बात को लेकर तकरार कई बार हो चुकी थी। राजवीर का कहना था कि वो उसे सामाजिक तौर पर ना तो पत्नी स्वीकार कर सकता है और ना ही बच्चे को अपना नाम दे सकता है।

आज दोनों के बीच तकरार इतनी बढ़ गयी कि राजवीर ने हमेशा के लिए रेहाना से सम्बन्ध तोड़ लिया था। वैसे भी राजवीर - रेहाना के चंचल स्वभाव से काफी परेशान हो चुका था। संदेश से मित्रता की भी उसे भनक लग चुकी थी। वो यह सब बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। इसलिए उसे सम्बन्ध विच्छेद ही सबसे बढ़िया उपाय लगा था। सम्बन्ध तोड़ते हुए रेहाना ने भी उसे देख लेने तथा यौन-शोषण का आरोप लगाने की धमकी दे डाली।

संदेश बड़े ही संयम से रेहाना की सारी बात सुनता रहा तथा जब उसने अपनी पूरी बात खत्म की तो एक बार फिर से रोने लगी। वो सोच रही थी संदेश उठकर उसके आँसू पौंछेगा। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। संदेश अपनी जगह बैठा था एक कुशल परामर्शदाता की तरह समझा रहा था कि सब कुछ ठीक हो जाएगा - बस थोड़ा सा धीरज रखे। वो सीधे खड़ी हुई और संदेश के पास आकर उसके कंधे पर अपना सर टिका कर बोली मुझे माफ कर दो, मैं अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख पायी थी। आप वाकई बहुत अच्छे है। सच तो यह है कि मैं ही हवस में अन्धी हो गयी थी। आज मुझे लग रहा है कि एक सही रास्ता मिल गया। संदेश ने उसे वापस घर जाकर बच्चों को संभालने की बात कही कि सब ठीक हो जाएगा।

कई महिनों से रेहाना की कोई सूचना - संदेश के पास नहीं थी। आज अचानक ही रेहाना उसके आफिस आई। बहुत खुश थी, लियाकत ने राजवीर से हुए बच्चे को अपना नाम दे दिया और रेहाना बोली बुझे विश्वास ही नहीं हो रहा है कि वो नामर्द भी नहीं है, वो तो अपनी पहली बीवी को नहीं भुला पा रहा था। इसलिए बस रोज पीकर पड़ जाता था। उसका कहना है कि उसने यह प्रण लिया था कि जब तक पहली बीवी को पूरी से भूल नहीं जाता - रेहाना को पूरी तरह से अपनाएगा नही।

संदेश - आज मैं बहुत खुश हूँ, मुझे मेरी दुनिया मिल गयी। उसने मेरी तमाम गलतियों के बावजूद मुझे अपना लिया है। मेरे बच्चों को बाप और मुझे एक मुक्कमिल शौहर मिल गया है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract