रेड लाइट - तीसरा भाग
रेड लाइट - तीसरा भाग
( निशा कॉलेज से लौटकर घर आती है तो अपनी माँ को किसी अजनबी से बात करते हुए सुनती है पूरी बात सुनकर वह हैरान रह जाती है , उसे पता चलता है कि वह जमुना बाई की बेटी नहीं है। अजनबी का नाम संत राम है और वह अपनी बेटी की शादी में जेवर आदि के लिए तीन लाख रुपया मांग रहा है। अब आगे )
किसी तरह खुद को घसीटते हुए निशा अपने कमरे तक ले आई , क्षण भर सोचा और फटाक से आलमारी खोल दी। आलमारी में से ज़ेवरों का डिब्बा निकाला खोल कर देखा और घर के बाहर मोड़ पर आकर खड़ी हो गई।
अपने घर से एक आदमी को निकलते देख कर निशा ने अनुमान लगाया कि यही संतराम है पर वह उसे चेहरे से पहचानती नहीं थी। वह आदमी निशा को देखकर ठिठक गया , अब उसे पक्का यक़ीन हो गया कि यही संतराम है। निशा ने उसे अपने पास आने का इशारा किया और वह यंत्रवत उसके सामने आकर खड़ा हो गया निशा ने गौर से संतराम का चेहरा देखा उसके चेहरे पर पर्याप्त मात्रा में कुटिलता पसरी हुई थी घृणा के साथ निशा ने संतराम के चेहरे पर जमी अपनी नज़रें हटा ली और जेवरों का डिब्बा उसके सामने खोल दी। एक साथ इतना ज़ेवर देखकर संतराम की छोटी आँखों की पुतलियों में बड़ी चमक आ गई थी वह ललचाई नज़रों से ज़ेवरों को निहार रहा था निशा सूक्ष्म। निगाहों से उसके चेहरे पर आ - जा रहे भावों का निरीक्षण कर रही थी। संतराम ज़ेवरों को निहारने में तल्लीन था उसकी तन्द्रा निशा की आवाज़ से भंग हो गयी ‘ माँ के साथ हुई तुम्हारी सारी बातें मैनें सुन ली है यह सारा ज़ेवर तुम्हारा हो सकता है तुम्हें सिर्फ ये बताना है कि मैं कहाँ की रहने वाली हूँ और मेरे माता - पिता कौन हैं ? ‘
संतराम ज़ेवरों की तरफ हसरत भरी निगाहों से देखते हुए बोला ‘ तुम्हारे माता - पिता कौन हैं , ये तो मैं नहीं जानता अलबत्ता जिस जगह से तुम्हे उठाया था , उस जगह के बारे में बता सकता हूँ।’ संतराम की बातें सुनकर निशा की आँखों में चमक सी आ गई। संतराम ने निशा को बताया कि यहाँ से करीब साठ किलोमीटर दूर नवाबगढ़ है , वहाँ एक मिलन चौक है , तुम वहीं बच्चों के साथ खेल रही थी जब मैंने तुम्हें उठाया था अनायास निशा पूछ बैठी ‘ जब तुम मुझे उठा रहे थे तो मैं रोई नहीं थी ? शोर नहीं मचाया था ? कोई मुझे बचाने नहीं आया था ? ‘ निशा की बातें सुनकर संतराम बुरी तरह सकपका गया सोचा कहीं अभी न शोर मचा दे आज तो इस मामले में पुलिस भी काफी सख़्त हो गई है निशा को लगा आज इन सवालों का कोई मायने नहीं है , उसने संतराम से कहा ’ डरो नहीं इस बारे में मुझे कुछ नहीं जानना है।’
संतराम को ज़ेवरों का डिब्बा देकर निशा चुपचाप अपने कमरे में लौट आई। उसे यह जानकर एक आत्मिक सुख की अनुभूति हो रही थी कि वह कोठे का नहीं किसी कोठी का अनमोल हीरा है। उसने सोचा , मेरा भी एक घर है मेरे भी माता - पिता हैं भाई - बहन हैं मैं भी उसी समाज का हिस्सा हूँ , जहाँ के लोग इज़्ज़तदार एवम शरीफ समझे जाते हैं कैसा होता होगा वो घर ? ऐसे सैकड़ों सवाल निशा के दिमाग में कौंध गये। वह जल्दी से एक बैग में कुछ जरूरी कपड़े भरने लगी आलमारी में से अपने बचपन की फ्रेमजड़ित तस्वीर उठा कर देखा और फूट फूट कर रो पड़ी
।
क्रमशः
( चौथी कड़ी 21 फरवरी 2021 को )

