रेड लाइट -- चौथा भाग
रेड लाइट -- चौथा भाग
……….. चौथी कड़ी ………….
( संतराम को अपने ज़ेवर का डिब्बा देने के बाद भी निशा को बस इतना पता चल सका कि वह नवाबगढ़ के मिलन चौक के पास की है , फिर भी वह यह सोचकर बहुत खुश थी कि वह कोठे की नहीं , किसी कोठी का अनमोल हीरा है ….. उसका अपना घर है … माता , पिता , भाई - बहन हैं . वह बैग में कुछ जरूरी कपड़े रखने लगी ….. अब आगे )
अपने बचपन की तस्वीर कपड़ों के साथ बैग में रखकर बिना कुछ सोचे निशा रेलवे स्टेशन की तरफ निकल गयी . भावावेश में लिया गया निर्णय प्रायः नुकसानदेह ही होता है , पर यह निर्णय दिल का होता है और दिल के मामले में दिमाग का दखल नहीं होता . निशा जल्दी से अपने उस घर में पहुँचना चाहती थी , जिसकी धुँधली याद भी उसके जेहन में नहीं थी . माँ - बाप की शक्ल तक याद नहीं थी .
नवाबगढ़ की गाड़ी रफ़्तार पकड़ चुकी थी और दूसरी तरफ कालिमा धरती को अपनी चादर से ढँकने में व्यस्त हो चुकी थी , दोनों निशा अपनी मंज़िल की तरफ तेजी से बढ़ती जा रही थी . भारतीय रेल और सरकारी कर्मचारी को देर भी हो सकती है पर दिन और रात तो वक़्त के पाबंदहैं , लिहाजा जब निशा नवाबगढ़ पहुँची तो रात अपनी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी . वह स्टेशन से बाहर निकली तो चारो तरफ वीरान था . उसने हिम्मत कर के चाय की गुमटी के पास गयी और उससे पूछा …."कोई सवारी नहीं मिलेगी क्या ?" , चाय वाला उसे घूर कर देखा , वह पलक झपकते समझ गया कि यह लड़की नवाबगढ़ की नहीं है , मन ही मन वह यहाँ तक सोच गया कि ऐसी हसीन लड़की इस छोटी जगह में बिल्कुल अकेली क्यों आयी है ? दो नम्बर की है क्या ? निशा ने फिर उससे पूछा … "आपने कोई जवाब नहीं दिया ?" चाय वाला झेंपते हुये पूछा …. "कहाँ जाना है आपको ?"
"मिलन चौक …."
"एक दो रिक्शा वाले रहते हैं ….. किसी सवारी को छोड़ने गये होंगे ….. आपकी किस्मत अच्छी होगी तो कोई एक आ जायेगा नहीं तो फिर सबेरे ही ……"
निशा को अब अपनी गलती पर अफसोस हो रहा था , यह भी कितनी अजीब बात है कि गलती करने के बाद ही हमें अफसोस होता है . निशा खुद को कोसने लगी ….. जिस जगह जा रहे हैं , वो जगह कैसी है ….. वहाँ ठहरने की कोई व्यवस्था है या नहीं …. ये सब पता किये बिना मैं कैसे आ गई ? ….. क्या मैं इस दर्जे की मूर्ख हूँ ? …. जो हालात सामने थे वह खुद सब कुछ बयान कर रहे थे . निशा की पेशानी पर बल पड़ गये …. यदि कोई रिक्शा वाला नहीं आया तो ? ….. उसने चाय वाले से ही पूछ लिया ….. "यहाँ कोई होटल है ? ‘
"यह नवाबगढ़ है , लखनऊ नहीं जो आप होटल खोज रही हैं ."
"रात में ठहरने की कोई जगह तो होगी ?"
"मन्दिर का एक धर्मशाला है पर वह तो बाजार में है , वहाँ तक जायेंगी कैसे ? …. आप तो कह रहीं थीं कि मिलन चौक जाना है , फिर होटल - धर्मशाला क्यों पूछ रही हैं ? ‘….. निशा ने सोचा , सचमुच मैं मूर्ख हूँ …. बात कैसे की जाती है मुझे तो ये भी नहीं पता . चाय वाला को अब यकीन हो चुका था कि वजह जो भी हो यह लड़की अकेली है और यहाँ किसी मुसीबत में फंस गयी है . ऐसी स्थिति में लोग मदद भले न करें पर उपदेश देने में कोताही नहीं बरतते …. जवान लड़की खुली तिजोरी होती है , जवान जहान लड़की पर्दे की चीज होती है . चाय वाला इस अवसर को कैसे हाथ से जाने देता . अपनी समझ और स्तर के अनुसार उसने निशा को समझाया ……’ आपको रात में यहाँ नहीं आना चाहिए था …. अरे , यहाँ तो रात में बिजली तक नहीं आती , आप परी लेखा हैं …. आप कैसे आ गईं ? … जुग - जमाना कितना खराब है , का पता गठरी चोर और चमड़ी चोर कब कहाँ मिल जायें " रेड लाइट एरिया में रहने के बावजूद भी निशा ने कभी ऐसी भाषा नहीं सुनी थी , लेकिन चाय वाले कि बात सुनकर उसका जिस्म एकबारगी काँप उठा .
"आप इसमें मेरी कुछ मदद कर सकते हैं क्या ?"
"मैं इसी गुमटी में आड़ा - तिरछा होकर किसी तरह सो जाता हूँ , आप सो पाईएगा ? " निशा का मन हुआ कि एक झापड़ रसीद कर दे पर वह समझ रही थी कि उसके हालात ने चाय वाले की हिम्मत बढ़ा दी है . मुसीबत कभी अकेले नही आती . दो बाईक पर कुछ मनचले वहाँ आ धमके . निशा को देखते ही उनकी बांछें खिल गयी . एक ने चाय वाले से कहा …. "रामबरन , बिजली कटी हुई है तो तोरा दुकान पर होलोजिन कैसे जल रहा है ? " कहते हुए उसने निशा को देखकर शरारत से मुस्कुराया . निशा वहाँ से हटकर एक तरफ जा खड़ी हुई . पता नहीं , रामबरन क्या बताया , बाईक वाले लड़के निशा के पास आ गये . एक लड़के ने कहा ….. "रात को यहाँ रहना डेंजर है , हमारे साथ चलिए सेफ रहिएगा ."
"मुझे तंग करोगे तो मैं शोर मचा दूँगी .’ निशा की आवाज काँप रही थी .
"तो आयेगा कौन ? ….. टिकट बाबू ? … रमबरनो गुमटी बन्द करके सो गया " निशा ने देखा , चाय की गुमटी बन्द हो चुकी थी . निशा को अपनी स्थिति पर रोना आ रहा था … आज के पहले उसने कभी भी भगवान को दिल से याद नहीं किया था . इसी बीच एक लड़के ने निशा का हाथ पकड़ते हुए बोला …."बात में टाइम खराब मत कर …. ले चलते हैं इसे " निशा अपने को पकड़ से छुड़ाने लगी तभी निशा के चेहरे पर तेज रोशनी चमकी .
क्रमशः
( अगली कड़ी 27 फरवरी 2021 को )
