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संजय कुमार जैन 'पथिक'

Horror Tragedy Children

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संजय कुमार जैन 'पथिक'

Horror Tragedy Children

रात 3 बजे

रात 3 बजे

4 mins
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आई सी यू स्टोरीज भाग 1

रात 3 बजे


माँ गोद में लेकर अपने प्यारे रोंदू को सुला रही थी। रात बहुत हो चली थी। गाँव के पेड़ हवा से हिल रहे थे, चांदनी भी थी और माँ का आँचल भी, मगर 3 साल के रोंदू की आंखों में नींद नहीं थी। आखिरकार ग्रामीण मां ने फिर वही रात की कहानी शुरू की। आधी रात के बाद बरगद के पेड़ से चुड़ैल उतरती है। पूरे सफेद कपड़ों में। न उसका चेहरा दिखता है न पैर। जो बच्चे सो जाते हैं, वह उनके पास नहीं जाती। जो जगा हुआ मिलता है वह उसका खून पी जाती है। सुबह उसके दांतों के निशान दिखाई देते हैं और सूखी नसें, जिनसे खून निकल चुका होता है। डरा हुआ रोंदू आनन फानन में सो गया।

समय निकलता गया। कल का रोंदू आज रमेश बनकर दिल्ली में नौकरी करने लगा। मां , बाबू और गाँव गुजरे समय की बातें हो गईं। एक दिन सवारियों से भरा ऑटो पलट गया, रमेश के सर में चोट आई। स्ट्रोक ICU में अर्ध बेहोश रमेश बीच बीच में जब होश में आता था , सिर्फ पलकें झपका पाता था। वो पलकें ही उसकी पत्नी सुनीता की आखिरी उम्मीद थीं। नर्स से रोज़ हाथ पैर जोड़ती थी ,जब आंख खोलें ,तो हमें बुला लेना सिस्टर। सिस्टर क्या करे,ICU है। दिन में एक बार ही शाम 5-30 पर मरीज से मिल सकते हैं। होश में हो तो और न हो तो।

रात के 3 बजे, रमेश उर्फ रोंदू बेहोशी में सपने देख रहा था। सपने में फिर मां याद आई, छोटे से रोंदू को गोद में लेकर कहानी सुनाती हुई, सो जा बेटा। पर एकाएक मां कहीं गायब हो गई। रोंदू को लगा उसके सिरहाने कोई खड़ा है। बेहोश आंखें धीरे धीरे कांपते हुए खुली। ये कौन है? सफेद कपड़ों में । चेहरा साफ नहीं दिख रहा। एक खनकती हुई मधुर सी आवाज़ आई। मिस्टर रमेश, मैं आपका खून निकालने आई हूँ। दूर चर्च का घंटा बजा एक दो तीन। एकाएक रोंदू ने उसे पहचान लिया। ये तो वही बरगद के पेड़ वाली डायन है। मेरा खून पीने आई है। बाएं हाथ में कुछ चुभा। शायद डायन ने दांत गड़ा दिए थे और रोंदू को महसूस हुआ उसके शरीर से खून कोई पी रहा है। डर के मारे टांगे कांपने लगीं। पेशाब छूट गया, भले ही बिस्तर गीला नहीं हुआ, नली से होते हुए यूरो बैग में चला गया। रमेश फिर बेहोश हो गया। 2 मिनट के लिए एकाएक ब्लड प्रेशर बढ़ना, फिर घट जाना, बेहोशी में ही, नर्स की समझ में भी नहीं आया। लेकिन फिर यह रोज़ की कहानी हो गई। डॉक्टर भी डिसकस करने लगे। ओवरआल तो पेशेंट में रोज इम्प्रूवमेंट है मगर रोज रात में एक बार एब्नार्मल क्यों होता है। किसी को समझ नहीं आता था। फिर एक दिन सुबह रमेश को होश आ गया। नर्स ने तुरंत डॉक्टरों को खबर दी। डॉक्टर OT में थे,तुरंत नहीं आ पाए। नर्स ने सुनीता को भी बुला लिया। औरत थी, औरत का दर्द समझती थी। डॉक्टर के आने से पहले सुनीता पहुँच गई। मन में किसी अनहोनी का डर। मुझे क्यों बुलाया सिस्टर पूछते पूछते उसकी निगाहें रमेश की झपझपाती पलकों से मिल गईं। पति-पत्नी दोनों की आंखों से अकस्मात बांध तोड़कर अश्रुओं का अविरल प्रवाह बह चला। रमेश ने अपने हाथ के नीले दंश से निशान देखे फिर रोने लगा। मुंह से अस्फुट शब्द निकले-रात को डायन ***खून पीने***। सुनीता भी कांप उठी । मगर तभी डॉक्टर अपनी टीम के साथ आ पहुंचे। मरीज की जांच करते करते सुनीता की मदद से वह भी रमेश की बात समझ गए, और नर्स भी। और दोनों ठठाकर हंस दिए। सिस्टर ने तुरंत पैथोलॉजी में फ़ोन मिलाया और बोली देविका सिस्टर को भेजना। कुछ देर में सफेद यूनिफार्म में एक सुंदर सी लड़की वहां आ पहुँचीं। डॉक्टर बोले- रमेश जी, यह डायन नहीं देवी है जो रोज 3 बजे सिरिंज से आपका ब्लड सैंपल लेने आती है, जिससे मेरे 10 बजे राउंड पर आने से पहले रिपोर्ट तैयार हो सके। और ये इसके दांतों के नहीं सिरिंज के निशान हैं। धीरे धीरे चले जायेंगे। आपके ठीक होने में इसका भी बहुत बड़ा योगदान है। सॉरी सिस्टर, शर्म से किसी तरह रोंदू बोल पाया। गेट वेल सून मिस्टर रमेश, बोलकर हंसती हुई देविका चली गई।

सुबह 3 बजे फिर आवाज़ आई, मिस्टर रमेश मैं आपका खून लेने आई हूँ। रमेश ने मुस्कराकर अपने हाथ बढ़ा दिए।


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