संजय कुमार जैन 'पथिक'

Drama Romance Inspirational

4.0  

संजय कुमार जैन 'पथिक'

Drama Romance Inspirational

कितने कितने सेंटाक्लाज़

कितने कितने सेंटाक्लाज़

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जिंगल बेल जिंगल बेल ' सुबह सुबह एकाएक इस गाने की धुन से मेरी नींद खुल गई। आंखे मलती हुई

मैं टूट गए सपने के बारे में सोच रही थी जो सेंटाक्लाज़ का तो बिल्कुल नहीं था। किसका था, बाद में बताऊंगी या आपको खुद ही पता चल जाएगा इस कहानी के अंत तक कभी न कभी।

दीदी, सेंटा क्लाज़ क्या सचमुच आता है, मेरा 5 साल का छोटा सा प्यारा सा भाई दीपू पूछ रहा है। मैं रात भर जागता रहा, लेकिन वो नहीं आया। बुद्धू, मैंने उसके प्यारे से गालों पर पप्पी ली और बोली, जो बच्चे सो जाते हैं, उन्हीं के पास आता है सेंटाक्लाज़। आप नही सोए, इसलिये वो नही आया। आज रात जल्दी सो जाना। 

इस तरह उसे समझा कर मैं जल्दी से बाथरूम में घुस गई। क्रिसमस तो है पर मेरी ड्यूटी है, आवश्यक सेवा में जो हूँ। बाथरूम से ही सुनाई दिया, माँ दीपू को समझा रही थी तेरी दीदी भी तो सेंटाक्लाज़ है, नर्स है न, मरीजों की मदद करती है और जो दूसरों की मदद करता है, वही सेंटाक्लाज़ होता है। मैं शायद फूल के कुप्पा हो जाती पर एकाएक मेरी निगाह घड़ी पर जा टिकी। ये घड़ी जब बदसूरत होकर ड्राइंग रूम से रिटायर हो गई तो उसे फेंकने की बजाय मैंने बाथरूम में इसीलिए लगा दिया कि ये मुझे कभी लेट न होने दे।

 रॉकेट की गति से तैयार होकर, मुँह में नाश्ता ठूंसकर, माँ के हाथों से टिफ़िन पकड़कर, एक किस उनको देते हुए और एक किस भाई से लेते हुए फटाफट मैं मेट्रो स्टेशन जाने के लिए ऑटो में बैठ गई। 

ऑटो में आज फिर वही दो लड़कियां मिली जो पीछे की झोपड़ पट्टी से आती थी, कॉलेज जाने के लिए। आज वो बड़ी खुश दिख रही थीं। । मेरे बिना पूछे बोल पड़ी, दीदी आज हम लैपटॉप लेने जा रहे हैं। लैपटॉप ओह, मगर पैसे कहाँ से आये? मुझे पता था एक टाइम किसी तरह से खाना जुटाने वाली ये लड़कियां लैपटॉप कहाँ से खरीद पाएंगी। नहीं दीदी, लेपटॉप तो हमें फ्री मिलेगा। मंत्री जी बांट रहे हैं , सारी पढ़ने वाली लड़कियों को। ये मंत्री जी तो सेंटा क्लाज़ बन गए हैं हमारे लिये इस बार। लड़की अभी कुछ और कहती उससे पहले ऑटो वाले भैया ने उसको टोक दिया। मेरी बेटी अभी वहीं से रोती हुई लौट रही है। लैपटॉप सिर्फ अपनी पार्टी वालों को दे रहे हैं, दिखाने के लिए और स्टेज से उतरते ही वापस ले ले रहे हैं। बोलते बोलते उसकी भी आंखे छलक आईं और उन दोनों लड़कियों की भी। मैं किसी के आंसू पोछती उससे पहले ही मेरा हॉस्पिटल आ गया। 

ये कैसे सेंटाक्लाज़ सोचती हुई मैं भागकर हाज़िरी लगाने पंचिंग मशीन की ओर भागी। कोविड के कारण हॉस्पिटल का मैन गेट बंद था। इमरजेंसी से होते हुए मैं अपने ICU की ओर बढ़ी कि देखा कुछ लोग स्ट्रेचर पर एक सेंटाक्लाज़ को लेकर भागे आ रहे थे। पता चला रात से बच्चों को गिफ्ट बांटते बांटते उन्हें हार्ट अटैक आ गया। इमरजेंसी में उनके बेड के बगल में रोड एक्सीडेंट से आया हुआ अपने माँ बाप को खो चुका एक बच्चा था जो चकित होकर उन्हें देख रहा था। 

सेंटाक्लाज़ ने उसके सर पर हाथ फेरा और बोले- तू तो बड़ा हो के बहुत बड़ा डॉक्टर बनेगा, फिर एकाएक बेहोश हो गए। मेरी भी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा तभी मुझे अपनी टीम लीडर सिस्टर संगीता की आवाज सुनाई दी।

 लड़की चल जल्दी से ये ड्रेस पहन लें और सेंटाक्लाज़ बन जा। मैं समझ गई कि आज मुझे ICU के मरीजों को खुश करने सेंटाक्लाज़ बन के चॉकलेट बांटने हैं। सब कुछ भूल कर मैं सेंटाक्लाज़ मोड में आ गई। मस्ती में घंटी बजाते हुए घूमते हुए और आखिरी सांस वाले मरीजों के चेहरे पर मुस्कान लाते हुए कब शाम हो गई, पता ही नहीं चला। 

शाम को निकलते निकलते हमारे नर्सिंग स्टेशन की दीवार पर चिपके छोटे छोटे सेंटाक्लाज़ में से एक मैंने निकाल लिया, छोटे भाई के लिए। हॉस्पिटल से निकल कर ऑटो स्टैंड की ओर चली तो मेरी साथी नर्स मीनल ने कोहनी मारी। उधर क्यों जा रही है। मेरी कौतूहल भरी निगाहें कुछ पूछतीं उससे पहले ही वो मुझे दिख गया अपनी यू पी 70 कार में, मेरा संजय जिसे मेरी सहेलियों ने पहले ही देख लिया था। 

नॉन स्टॉप 6 घंटे ड्राइव करके आ रहा हूँ, कि शादी से पहले वाला क्रिसमस अपनी होने वाली बीबी के साथ मनाऊंगा और तुम हो कि जाने किन ख्यालों में गुम हो। मुझे 

लगा मैं कोई सपना देख रही हूँ ।मेरा सबसे बड़ा क्रिसमस गिफ्ट मेरे सामने खड़ा था जो मेरा था सिर्फ मेरा और मैं अपने सेंटाक्लाज़ की बांहों में समा गई।



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