लॉक आउट सुंदरी
लॉक आउट सुंदरी
लॉक डाउन 1 का तीसरा ही दिन था। सारी दुकानें,आफिस,स्कूल सब बंद थे।फिर भी आदमी की जरूरतें कहाँ बंद होती हैं।एक आध सब्जी वाले चोरी छुपे घूम रहे थे।कोई डरते डरते सब्जी खरीदता था कोई बोलता था कि नमक रोटी खा लेंगे। फरीदाबाद सेक्टर 16 का प्रसिद्ध लक्ष्मी नारायण मंदिर भी बंद हो गया मगर कुछ खुला था, क्या ? मदर डेरी।दूध तो पियेंगे लोग,दही, पनीर,घी।खाना नही बनाने वालों के लिए ब्रेड,पाव,अंडा।सेना से रिटायर्ड शर्मा जी ,मुह पर कपड़ा बांधकर लोगों को सामान देते जा रहे हैं और हांक लगा रहे हैं- "पे टी एम से पेमेंट करो भाई,मैं पैसे हाथ नहीं लगाऊंगा।क्या पता कौन दे जाए चीनी बीमारी मुझे भी।"
लोग भी जिंदगी में पहली बार शायद बिना धक्का मुक्की शराफत से लाइन लगाकर खड़े हैं।मगर कोई है जो उनको परेशान कर रहा है।वो अल्हड़ सी 20 साल की छोरी, गोद में बच्चा लिये हुए, सबसे रिरियाते हुए, बाबू जी बच्चे के दूध के लिए कुछ दे दो।कुछ 5 10 फेंक देते , कुछ गरिया देते, दूर रह, दूर रह। कोई बोलता , काम क्यों नहीं करती, भीख मांग रही है। एकाएक वो सुंदरी खिसिया गई, क्या काम करूं।सब तो बंद है।मजदूरी तो करती रही वहां मेट्रो होस्पिटल की नई इमारत में।अब काम बंद हो गया तो भगा दिया ठेकेदार ने।अब न रहने का ठिकाना है न खाने का।
अगले दिन फिर दूध लेने गई , तो वो वहीं सड़क पर एक किनारे बैठी बच्चे को दूध पिला रही थी।
दया तो मुझे आ रही थी, पर कोरोना काल में किसी को गजर में आश्रय देना संभव नही लग रहा था।बोलूंगी तो सास कहीं ये न बोल दे, जा तू भी उसके साथ एक नया ठिकाना खोज ले। एक 10 रुपये का दूध उसे पकड़ाते हुए मैंने हिम्मत करके पूछ ही लिया....
"जवान है तू, इस कर्फ्यू में अकेले कैसे रहती है, कोई परेशान नहीं करता।"
एक अट्टहास मार के हंसी वो, फिर एकाएक खांसने लगी।मैं डरकर दूर हट गई।उसने इशारे से मुझे बुलाया फिर हौले से बोली-"दीदी रोज रात में नए नए पुलिस वाले आते हैं, कभी कोई और भी आते हैं, कल सुबह तो मंदिर के एक पंडित जी भी आये थे।सब एक ही सवाल पूछते हैं, चलेगी। और मैं ऐसे ही खांस देती हूँ।बीमारी समझ कर सब तुम्हारी तरह दूर हट जाते हैं।भगवान ऐसी बीमारी एक साल पहले ले आते तो मैं पहले ही बच जाती और ये बच्चा इस दुनिया में आया ही न होता।"