लड़के मुझसे दोस्ती करोगे प्लीज
लड़के मुझसे दोस्ती करोगे प्लीज
मेरी पहली नौकरी ,पहला दिन और बॉस ने दे दिया पहला काम।
"देखो संजय, कर्नलगंज में कुछ फर्नीचर गया था, पेमेंट नहीं आया, जाकर चेक ले आओ।"
मुझे लगा,फटाफट हो आऊं तो बॉस की निगाह में इज्जत बन जाएगी।मोटरसाइकिल स्टार्ट की और चल दिया। मगर हाय री किस्मत।अभी तेलियरगंज से चल कर चैथम लाइन्स तक ही पहुचा था कि तेज बारिश आ गई।भीग न जाऊं, इसलिए मेरी निगाहें कोई छाया तलाशने लगीं,पर इस सड़क पर तो कोई दुकान भी नहीं है।एकाएक मुझे वुमेन्स होस्टल के सुनसान पिछवाड़े की ऊंची बाउंडरी से सटा एक पेड़ दिखाई दिया,जिसकी छांव मुझे भीगने से बचा सकती थी।मैंने मोटरसाइकिल जैसे ही काट कर पेड़ के नीचे रोकी , एक चीख सुनाई दी।बारिश तेज थी और दूर दूर तक सड़क सुनसान थी।मैंने देखा,स्कूल ड्रेस में एक लड़की जिसकी उम्र शायद 15 या 16 के आस पास थी, अपनी साईकल के साथ उसी पेड़ के पीछे इस तरह से छिपी थी कि बारिश से भी बचे और शोहदों से भी।पेड़ का तना इतना मोटा था कि उसके पीछे क्या हो रहा है, आसानी से सड़क से नहीं देखा जा सकता था।और ये यूनिवर्सिटी एरिया,जहां कोई भी दुर्घटना ऐसे हालात में अंजाम हो जाना, इलाहाबाद में असंभव नहीं है।तेजी से मेरा पेड़ के नीचे आकर मोटरसाइकिल रोकना उसे ऐसा लगा कि शायद मैं बारिश से बचने नहीं,बल्कि बारिश का फायदा उठाने आया हूँ,और अगले पल क्या होने वाला है,यह सोचकर उसकी चीख निकल गई।उसकी चीख,उसका बेबसी भरा चेहरा , और दिया। मैंने तुरंत मोटरसाइकिल फिर स्टार्ट की और पेड़ की छाया छोड़कर भीगता हुआ आगे चल दिया।पलट कर देखा तो उसकी आँखों में बाल बाल बचने का भाव था।लल्ला चुंगी तक पहुच कर मेरा माथा ठनका, अगर वहां और कोई बदमाश आ गया तो।तो शायद मेरी भीगने की कुर्बानी बेकार हो जाएगी।मैं दूनी रफ्तार से पलटा और फिर वहीं पहुचा, लेकिन उस पेड़ से 50 मीटर पहले ही बाउंडरी से लगकर खड़ा हो गया,भीगता हुआ।अगर पेड़ के नीचे जाता तो फिर वो डर जाती।मगर यहां से मैं उसे दूर से ही सही ,मगर देख पा रहा था।उसने भी मुझे अजीब निगाहों से देखा जिसमें भय भी था और आश्चर्य भी।हिम्मत होती तो बोल देती शायद -"पागल है क्या।"
बारिश उतनी ही तेज थी कि दो लड़के साईकल पर भीगने का मजा लेते हुए वहां से गुजरे।उनकी निगाह शायद कुछ खोज ही रही थी,जो उन्हें दिख ही गया।जैसे ही वो साईकल घुमाकर पेड़ के पीछे पहुचे,और वो लड़की फिर से रो पड़ी,मैंने एकाएक मोटरसाइकिल स्टार्ट की,और हेड लाइट जला कर जोर का हार्न मारा।लड़कों ने पलट कर देखा तो मैने शुद्ध इलाहाबादी भाषा में चिल्ला के एक गाली दी जो सामान्यतया लड़कियों के सामने नहीं दी जाती, पर मेरा उद्देश्य उन्हें भगाना था,इमेज बनाना नहीं।इशारा काफी था,लड़के भाग खड़े हुए।एक हल्की सी मुस्कान मुझे दिखाई दी।बारिश अब धीमी हो चली थी।मैंने देखा कि उसने अपना बैग उठाया और साईकल पर बैठ गई।मैंने भी संतुष्ट भाव से किक मारी मगर पहली किक में इस बार स्टार्ट नही हुई। मेरा ध्यान अब मोटरसाइकिल पर था,लड़की पर नहीं।एक किक,दूसरी किक,तीसरी किक।शायद पानी घुस गया था कहीं।तभी किसी ने मुझे छुआ।चौंक के जैसे ही पलटा,वही साईकल वाली लड़की जो अब मुस्करा रही थी।
"सॉरी,आप को मैंने गलत समझा।एक बात बोलूं",वह सकुचाती हुई बोली।
"क्या" ,मैंने पूछा।
वो बोली- "मेरे दोस्त बनोगे,प्लीज।"