Sanjay Kumar Jain Pathik

Inspirational

4.0  

Sanjay Kumar Jain Pathik

Inspirational

तिजोरी की चाभी

तिजोरी की चाभी

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आई सी यू स्टोरीज : भाग 3***तिजोरी की चाभी***


Congrats मिसेज चोपड़ा, अब चोपड़ा जी खतरे से बाहर हैं।

भगवान तेरा लाख लाख शुक्र है। 74 वर्षीया श्रीमती चोपड़ा की आंखों में आंसू भर आये।

पर आप अकेले इस उम्र में इनको कार में डालकर खुद ड्राइव करके न लातीं, तो थोड़ी और देर होने से कुछ भी हो सकता था। क्या घर में और कोई नहीं था? डॉक्टर ने पूछा तो जवाब देते हुए बुढ़िया श्रीमती निहारिका चोपड़ा की आंखें भर आईं। चार बेटियां हैं, मगर अब सबकी शादी हो चुकी है, सब बाहर हैं, अभी तो किसी को खबर भी नहीं कर पाई, आज इनकी जिद से सीखी हुई ड्राइविंग इन्हीं के काम आ गई। मैं कहती थी कि इतने नौकर हैं, ड्राइवर हैं मुझे ड्राइविंग नहीं सीखनी पर इन्होंने खुद मुझे सिखाई और देखो आज दीपावली के दिन सबको हमने छुट्टी दे दी थी। जब इन्हें दौरा पड़ा तो घर में कोई नहीं था, मैं ही जानती हूँ कि अकेले कैसे लाई इन्हें।

इसी बीच चोपड़ा जी को ओटी से ICU में ले आया गया। जूनियर डॉक्टर आभास से समझाया - देखिए ये होश में तो आ जाएंगे मगर ब्रेन स्ट्रोक के कारण लकवे के प्रभाव में हैं। आपकी बात सुन पाएंगे, पर बोल नहीं पाएंगे।

चिंता मत करिए डॉक्टर, 50 सालों से बिना बोले इनके दिल की बात समझती हूँ, अब भी समझूंगी, वृद्धा पता नहीं अपने को दिलासा दे रही थी या डॉक्टर को।

उसी ICU में सिर्फ 3 बेड दूर मैं भी पड़ा हूँ, शायद एकमात्र मरीज जो होश में है। अपने दर्द में रोऊँ, चिल्लाऊं या फिर संयम रखते हुए दूसरों को भी दिलासा दूं , यह शायद मुझे भी उस भद्र वृद्धा से सीखना होगा। पेन किलर जो ड्रिप के सहारे मेरी नसों में उतर रहा था, अब धीरे धीरे असर करने लगा। सोचते सोचते नींद आ ही गई, किसी तरह। सुबह नाश्ते के समय सिस्टर रोमा ने बताया कि ये कोई मामूली हस्ती नहीं, चोपड़ा ज्वैलर्स के मालिक अनिल चोपड़ा हैं, हॉस्पिटल के MD भी जानते हैं जिन्हें, देखो तो अब पता चला तो कितने स्टाफ आ गए इनके, बच्चे भी कल तक आ जाएंगे।

और बारी बारी से चारों बेटियां आ पहुँची, एक लंदन से, दो कनाडा से और एक काठमांडू से, उनके पति, उनके बच्चे, बारी बारी से ICU में आते जाते, और रहने को उन्होंने 20000 रुपये रोज वाला डिलक्स रूम ले लिया, जिसका बिल ICU बेड के बिल के साथ जुड़ कर आना था। माँ ने जब कहा कि हॉस्पिटल के साथ ओयो ले लो तो लड़कियां बिफर गईं। ओह नो मोम, हम पापा से दूर नहीं रह सकते। बड़े लोग, ICU में तो फिर भी कोई नहीं रह सकता, बारी बारी बच्चे नानू नानू करते हुए आते और चले जाते। पर लड़कियां जब आतीं तो लगता एक दूसरे की जासूसी कर रही हैं। एक दिन रात में जब अकेली बड़ी बेटी सुमि पिता के पास थी, उसने धीरे से पूछ लिया, पापा वो तिजोरी की चाभी कहाँ है। चोपड़ा जी कुछ बोलने चाहते थे , मगर अभी भी बोल नहीं पाए। तभी माँ के आने से सुमि चुप हो गई। माँ को तो नहीं पता चला पर एक स्वीपर के द्वारा दूसरी बेटी प्रिया को खबर हो गई। वह तुरंत हॉस्पिटल के ग्राउंड फ्लोर पर कैफे कॉफ़ी डे में चाय पी रही बहन के पास पहुँचीं, दीदी तुमने पापा से तिजोरी की चाभी मांगी? हाँ मांगी, देख पापा को तो बचना है नहीं, हम चारों इतने दूर से आये किलसिए हैं, घर की तिजोरी खुल जाए तो सारे माल को बांट लो, दुकान को कॉन्ट्रैक्ट पर दे देंगे, मम्मा क्या करेगी इतने पैसे का, अरे उनका इंतजाम कर देंगे बस। गड़बड़ बस यही हो गई कि न तो किसी स्टाफ को चाभी का पता है, न मम्मा को। एक काम करते हैं, घर चल कर खोजते हैं। माँ से घर की चाभी लेती हूँ, किसी बहाने।

तभी मां आ गई। दोनों बेटियों को चिंतित देखा तो पूछ बैठी, क्या हुआ प्रिया। कुछ नहीं मम्मा, कल रात से नींद नहीं आई, सोच रही हूँ आज सुमि को साथ ले कर घर जाकर सोऊंगी, तभी नींद पूरी होगी।

मां को उल्लू बनाकर दोनों बहनें घर आईं और रात भर में पूरे घर का पोस्टमार्टम कर डाला पर चाभी न मिली तो न मिली।

अब तो डायरेक्ट मम्मा से बात करनी ही पड़ेगी, सुमि बड़बड़ा रही थी। जब बाकी परिवार CCD में कॉफी पीने गया तो सुमि मां के साथ ICU लॉबी में ही रुक गई।

माँ एक बात कहना चाहती थी। सोचती हूँ, कहूँ या न कहूँ।

बोल न बेटा

मां प्रिया बटवारे की बात कर रही थी। पहले तो मुझे गुस्सा आया, फिर लगा कि ठीक ही है। मुझे अपनी बहनों का हिस्सा तो नहीं मारना है, अभी सब आई हैं, दे दो सबको। तिजोरी की चाभी मुझे दे दो, में सबके चार हिस्से बना लूंगी। प्रॉपर्टी और शॉप के डॉक्यूमेंट भी तो उसी में होंगे। उनकी सेल के लिए किसी ब्रोकर से बात कर लेते हैं। और तुम बिल्कुल भी चिंता मत करना। तुम्हारा खर्च, एक छोटा फ्लैट और दो नौकर का हम इंतज़ाम कर देंगे। अभी एकाध दिन तो पापा ऊपर नहीं जा रहे फिलहाल। अंगूठा वगैरह लगवाना हुआ तो लगवा लेंगे। अपनी धुन में सुमि बोले जा रही थी, दुकान का माल तो मार्केट के दूसरे ज्वेलर्स मार्किट रेट पे ले लेंगे।

सुमि, सुनो तो। निहारिका जी ने कई बार बोलने की कोशिश की , आखिर में मौका मिल ही गया। बेटा मैंने और तुम्हारे पिता जी ने कुछ और ही सोचा था। भगवान की दया से तुम चारों बेटियों को तो कोई कमी है नहीं। तुम्हारे पिता जी ने अपने ग्रेटर फरीदाबाद वाले प्लाट पर एक वृद्धाश्रम बनाने का फैसला किया था और सारी संपत्ति उसके लिए दान देने की वसीयत कर चुके हैं। वो जब ठीक होकर हॉस्पिटल से निकलेंगे तो इसे पूरा करेंगे और अगर ईश्वर को कुछ और मंजूर हुआ तो मैं उनके इस आखिरी सपने को पूरा करूंगी। और मेरी चार चार बेटियां है ना मदद के लिए। सुमि के मुंह से हां मां भी नहीं निकला। चुप सी हो गई। अगले दिन सुबह एकाएक प्रिया बोली , मां इनके काम में कुछ दिक्कत आ गई है, हमें जाना पड़ेगा। फिर अगले तीन दिनों के भीतर सभी लड़कियां, दामाद और बच्चे विदा हो गए। फिर निहारिका जी अकेली हो गईं, लेकिन उनकी किस्मत में अकेला रहना नहीं लिखा था। रविवार 3 जनवरी जब गजब की ठंड में वृद्धा ICU लॉबी में बेंच पर कंबल ओढ़े सो रही थी, किसी ने उसे हिलाकर जगाया। आंटी, चलिये, अंकल को होश आ गया। यह नाईट ड्यूटी की नर्स प्रीति थी। जब चोपड़ा जी के हाथ पकड़े और उनकी आंखों में झांका तो फिर निहारिका की आंखों में हिम्मत जाग उठी। दो महीने और हॉस्पिटल में लगे, मगर इस बीच पति पत्नी ने सारा कारोबार बेच कर अपने खास बिल्डर से आश्रम का काम शुरू करवा दिया था। जब वृद्धाश्रम का उद्घाटन हुआ तो मीडिया वाले भी आये। अनिल चोपड़ा जी, दिल्ली के इतने बड़े व्यापारी होते हुए एकाएक आपने इतना बड़ा डिसिशन कैसे लिया?

ये एक सही निर्णय था, मगर मैंने नहीं एक सही व्यक्ति ने लिया, मेरी धर्मपत्नी ने। मैं तो कोमा में था, पर जो इसने किया बहुत अच्छा किया।

और मेरे बच्चों ने मेरा पूरा साथ दिया, कहते हुए श्रीमती चोपड़ा मुस्करा दीं अपनी बेटियों को देखकर। मां जो थी।


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