कोरोना स्टोरीज सामने वाले अंकल
कोरोना स्टोरीज सामने वाले अंकल


कोरोना स्टोरीज भाग 2
पड़ोसी अंकल सब ठीक हो जाएगा
जब ब्रेन स्ट्रोक और डी वी ए के बाद कई महीने आई सी यू में संघर्ष करने के बाद आखिरकार मौत ने मुझे स्टे दे दिया, और मैं घर आया तब एक फोल्डिंग चारपाई पर घर के बाहर धूप में पड़ा रहता था।मन में हिम्मत नहीं थी कि फिर उठ पाऊंगा या नहीं पर वो अंकल पड़ोस से कभी कभी आ जाते थे,और समझाते थे,हिम्मत रख सब ठीक हो जाएगा।कुछ लोगों को आश्चर्य होता था कि उनका मोहल्ले में किसी के साथ उठना बैठना अधिक नहीं था पर मेरा हाल जरूर पूछने आते थे।शायद इसलिए क्योंकि मैं उनकी दुखती यादों को कभी नहीं छेड़ता था।मुझे पता था पर कभी नहीं पूछा,अंकल आपने विभाजन के दंगों में भागकर आते समय क्या क्या खोया,कितने परिवार वाले और कितनी संपत्ति।
धीरे धीरे सब बच्चे अपना भविष्य कनाडा और जर्मनी में देखते हुए निकल गए।फिर भी अंकल एक बेटे और उसके परिवार के साथ शांति से अपना कारोबार चलाते रहे।पिछले साल जब लॉक डाउन लगा तो थाली बजाने वालों और दिए जलाने वालों में वो सबसे आगे थे।लेकिन हर आदमी अपने घर में बंध कर रह गया और मुलाकातें बंद हो गईं।फिर मैंने शाम को पार्क जाने की बजाय छत पर टहलना शुरू किया।रोड के दूसरी तरफ अंकल भी अपनी छत पर दिख जाते थे।सिर्फ आवाज लगाकर पूछते थे,ठीक हो।फिर अपने आप मेरा जवाब समझ जाते थे कि ठीक तो नहीं स्टेबल है।फिर खुद ही बोलते थे सब ठीक हो जाएगा।
एकाएक पिछले हफ्ते घर के आगे एम्बुलेंस दिखाई दी।मैं निकलने को हुआ पर किसी ने रोका ,"कोविड है अंकल को, निकलो मत।" बाद में पता चला कि कोरोना के साथ हार्ट प्रॉब्लम भी है।किसी ने कहा कि बेटे को भी कोविड है।ज्यादा सोचने का भी वक्त नहीं मिला अगले दिन सुबह दूसरी मंजिल के पड़ोसी का फ़ोन आया ।हॉस्पिटल ने जवाब दे दिया था।दूसरे हॉस्पिटल के रास्ते में ही प्राण निकल गए।एम्बुलेंस में ही शरीर है,जो शमशान ले जा रहे हैं।कोविड के डर से न कोई आया न किसी ने दर्शन किये।कोविड ग्रस्त बेटा दाह संस्कार किसी प्रकार कर के फिर ऑक्सीजन लगाकर लेट गया। न कोई कनाडा से आया न जर्मनी से।कूड़ा उठाने वाली गाड़ी आई तो कुछ छुपे हुए समाजसेवी निकल आये, वहां मत जाना,कोरोना है, अभी गए हैं।
जब शाम को छत पे जाता हूँ,कुछ अधूरा से लगता है।लगता है कोई अभी पूछेगा ,ठीक हो।फिर बोलेगा सब ठीक हो जाएगा।