राजनीति
राजनीति
सुरभि बचपन से ही प्रतिभाशाली विद्यार्थी थी।
हमेशा टॉपर, प्रतियोगिता में आने को लालायित,
पर माँ, पिताजी, अपनी जिम्मेदारियों से जल्दी ही फारिग होना चाहते थे।
एक आई ए एस अधिकारी से उसका विवाह हो गया।
पति आधुनिक प्रगतिशील विचारधारा के थे, वो बाधक नही बने उसकी प्रगति की राह में।
सुरभि, प्रतियोगिता में बैठी, और यहां भी वह प्रथम प्रयास में ही टॉपर थी।
पुलिस की नौकरी उसकी प्राथमिकता थी, बहुत कुशलता से जिसको उसने निभाया, जहां जहां उसकी पोस्टिंग रही, अपराधियों को नाकों चने चबवा दिए।
फिर क्या बात थी, जो उसे बेचैन किये हुए थी।
अपराधियों को यत्न से पकड़ती पर ऊपर से सिफारिश आ जाती। लाख कोशिश करती, पर नेताओं की तिकड़म के आगे उसका कद बौना ही था।
हर 6 महीने पर स्थानांतरण, अंत मे हथियार डालते हुए उसने परिस्थितियों से समझौता कर ही लिया।
अब वो एक घाघ पुलिस अधिकारी थी।
पर वो छटपटाहट कुछ करने की----
बरकरार थी।
इकलौता पुत्र शलभ बड़ा हो रहा था, पर व्यक्तिगत ध्यान देना संभव न था।
पर सुविधाएं, अच्छे स्कूल कॉलेज में एडमिशन,
कोचिंग, ये सब निर्बाध रूप से चल रहा था।
अप्रत्याशित घटना ये रही, कि पति को आफिस में ही सीरियस हार्ट अटैक पड़ा, और अब वो एक पुत्र के साथ अकेली थी।
पर ये जीवन जाने वाले के साथ नही जाता। फिर शुरुआत होती ही है।
कुछ लोगों से संपर्क हुआ, जो उसे ये विश्वास दिलाने में सफल रहे, कि वो अपनी प्रतिभा सर्विस में रह कर जाया कर रही है।
सुरभि की दबी-कुचली आशाओं पर ये मरहम का काम कर गया।
सही तो कह रहे थे वे लोग, सत्ता के शीर्ष पर दबाव भी न रहेगा, और सेवा की छूट---
परिणाम सर्विस से त्यागपत्र,और राजनीति में सक्रिय।
बड़ा होता बेटा भी, इस गाँव-गाँव धूल फांकती, सेवा करती राजनीति में साये की तरह, उसके साथ था।
राजनीति की तरफ उसका भी रुझान था।
एक इलाके मे अच्छी तरह सेवा करके, अपनी पहचान बनाने के बाद, वो निश्चिंत थी इस इलाके से टिकट मिलने के लिए।
पर पहला झटका उसे तब लगा, जब उसे उसके इलाके से टिकट न दे, सर्वथा नवीन इलाके में भेज दिया गया। पर---, उसने कहने की चेष्टा की---
आप चिंता न करें वहां से भी आप ही जीतेंगी।
यहां जातीय समीकरण अधिक है, और विरोधी पार्टियों ने भी जीत की आशा में बहुत से निर्दलीय
प्रत्याशी खड़े कर दिए हैं।
उनका आकलन है कि वोट कटेगा तो उनकी जीत आसान होगी।
खैर आप अभी इन गहरी चालों को नही समझेंगी।
वहां हमारे साथ समझौता की गई पार्टी के कार्यकर्ता, आपके स्वागत में मौजूद रहेंगे, और हर संभव सहायता भी।
क्या कह सकती थी सुरभि, बेमन से ही सही
उसका कुछ हुआ, अपने निर्वाचन क्षेत्र में।
अध्यक्ष जी गलत न थे। हवाई अड्डे पर ही जनसमूह एकत्र था। सुरभि बहन जिंदाबाद,के नारों से इलाके को गुंजायमान करता हुआ जुलूस
नामांकन की औपचारिकता निभाने चल दिया।
अनुपम नाम का श्वेत कुर्ता पायजामा पहने उस पार्टी का जिला अध्यक्ष भी कारगर व्यक्ति सिद्ध हुआ।
फिर एक अथक मेहनत का दौर, दिन रात का पता नही, कहीं पैदल चलते,कहीं काफिला, कभी किसी गरीब के सर पर हाथ फेरना, कभी किसी बूढ़ी अम्मा को गले लगाना।
साथ चलने वाली कार्यकर्ताओं की भीड़, जनता में भी नारों से उत्साह फूंक देती और फूल मालाओं से लदी वो, पुनः किसी होटल या गेस्ट हाऊस में----
अनुपम की मेहनत देख वो भी उसकी प्रशंसक हो चली थी, आश्वस्त भी, जीत के प्रति।
बेटा इस पूरे अभियान में साथ था। ये उसका भी पसंदीदा क्षेत्र था।
ऐसे ही एक शाम, गेस्ट हाउस में थकान उतारते
अनुपम वो और बेटा।
बियर और वोदका जैसे ड्रिंक्स लेने से उसे परहेज भी न था,इतनी पूर्वाग्रही वो न थी।
पर बेटा अचानक कोई फ़ोन आने पर जा चुका था।
घटित कुछ ऐसा हुआ कि उसे तो विश्वास ही नही हो रहा था, कि मजबूत इरादों वाली वो, कैसे अपनी कमजोरी किसी के हाथों में सौंप कर आ गई।
अनुपम का आश्वस्ति देता कंधे पर रखा हाथ भी उसको आश्वस्त न कर सका।
नही वो रोयेगी नही। रात खुली आँखों मे ही गुजर गई।
आगत साफ था, मेहनत और सहयोग को रंग लाना ही था।
जीत का जुलूस एक,दो----,पर तीसरे तक वो इनकार कर चुकी थी, जाने क्या चल रहा था उसके दिमाग मे, अनुपम ने कहा, वो सब संभाल लेगा
अबीर, गुलाल उड़ाता जुलूस ढोल नगाड़े के साथ आगे बढ़ रहा था। तभी एक बुर्काधारी भीड़ में लोगों को हटाती, जिस तेजी से घुसी, उसी तेजी से अदृश्य हो गई, मानो कोई जादू का खेल चल रहा हो।
लोगों को कुछ समझ मे नही आया । कहाँ अदृश्य हुई वो, बस भीड़ ने अनुपम को गिरते देखा। फूल प्रूफ प्लान था, रिवाल्वर साइलेंस प्रूफ था तभी लोगों ने घबड़ाई हुई सुरभि देखा जो भीड़ चीरती चली आ रही थी।
आनन फानन में अनुपम को सुरभि की गाड़ी में डाल सायरन बजाती गाड़ियां, अस्पताल पहुंची,
पर अनुपम रास्ते मे ही दम तोड़ चुका था।
आंसू बहाती सुरभि उसकी सराहना करते न थक रही थी।
कुछ दिनों तक अखबारों की सुर्खियां बनी ये खबर
धीरे-धीरे शांत होने लगी थी, की एक ताजा घटनाक्रम ने जनता को हिला कर रख दिया।
अपने कमरे में चैन से सोई सुरभि को, देर तक न उठते देख, शलभ ने माँ, माँ कह कर दरवाजा खटखटाया।
न खोलने पर,शंकाग्रस्त शलभ ने, दरवाजा तोड़ने का आदेश दिया।
आशंका सच थी, बिस्तर की किनारे रखी टेबल पर पड़ा था, आधा खाया खाना----
शरीर नीला पड़ चुका था। घबड़ाया हुआ खानसामा बार बार सफाई दे रहा था, मैम ने बोला था, थक गई हूं, तू खाना रख दे बाद में खा लूंगी।
थाली पर खानसामे की ही उंगलियों के फिंगर प्रिंट थे। शक की बिनाह पर उसे गिरफ्तार किया जा चुका था।
पुलिस उसे रिमांड पर ले चुकी थी।
शलभ की चीखें और रोना लोगों का दिल दहला दे रही थी। हर आंख नम थी।
सुरभि की योग्यता में कोई शक न था
By election की घोषणा हो चुकी थी।
आला कमान ने शलभ को प्रत्याशी चुना था।
सहानभूति की लहर के चलते शलभ की विजय अभूतपूर्व थी।
और सांसद की शपथ लेते हुए, अपनी मां की याद में शलभ की आंखें नम थीं।
पर होंठों के कोनों पर एक नामालूम सी दिखने वाली मुस्कान-----