राधा कृष्ण का अलौकिक प्रेम
राधा कृष्ण का अलौकिक प्रेम
राधा तू बड़ि भागिनी , कौन तपस्या कीन्ह
तीन लोक के नाथ को ,अपने बस में कीन्ह
राधा कृष्ण सभी हिंदुओं के आराध्य हैं , उनकी लीलायें जनमानस के दिल पर राज करती हैं ।
राधा कृष्ण के प्रेम को समझ पाना अत्यंत कठिन है । प्रेम की अनुभूति से ही व्यक्ति का तन बदन रोमांचित हो उठता है । आनंद और प्रसन्नता की स्वर्गीय अनुभूति को ही प्रेम कहा जाता है । पूरा संसार प्रेम के आधार पर ही चल रहा है । प्रेम के अभाव में जीना लगभग असंभव सा ही है ।
सूर्य की ऊष्णता , जो संसार को जीवन प्रदान करता है... वह धरती के प्रति उसका आत्मिक प्रेम ही है ...
राधा ही कृष्ण है और कृष्ण ही राधा हैं ... दुनिया की नजरों वह दो थे , लेकिन राधारानी जी की नजरों में सिर्फ कृष्ण थे और कृष्ण जी की नजरों में सिर्फ राधा जी थी । प्रेम सिर्फ पाने का नाम नहीं ... ना ही प्रेम न मिलने से खो जाता है । सच्चा प्रेम तो अनमोल होता है । प्रेम में शब्दों की आवश्यकता नहीं होती , आंखें ही सब कुछ बयां कर देती हैं ।
भगवान् कृष्ण और राधा जी के बारे में कौन नहीं जानता । प्रेम का नाम लेने पर सबसे पहले राधा कृष्ण की जोड़ी को ही याद किया जाता है । हम जब कभी भी नाम लेते हैं तो कहते हैं राधा कृष्ण , कभी भी राधा और श्री कृष्ण नहीं कहा जाता है । इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि राधा कृष्ण अलग अलग नहीं वरन् एक ही माने जाते हैं .... क्यों कि उनका प्रेम ऐसा ही था कि दो शरीर होते हुये भी दोनों एक ही आत्मा थे ।
राधा कृष्ण का प्रेम अद्भुत था .... विभिन्न कथाओं के अनुसार ब राधा जी का मुंह गर्म दूध से जल जाता है तो फफोले भगवान् कृष्ण के शरीर पर पड़ जाते हैं .... ऐसी ही एक कथा है , जिसे पढने के बाद पता चलता है कि दोनों के बीच कितना अद्भुत प्रेम था ....
भगवान् कृष्ण सिर दर्द से कराह रहे थे .... तीनों लोकों में राधा रानी की स्तुति सुन कर नारद मुनि चिंतित हो उठे क्यों कि वह स्वयं कृष्ण से अगाध प्रेम करते थे ... अपनी इसी समस्या के समाधान के लिये वह कृष्ण के पास आये , वहां देखा कि कृष्ण पीड़ा से कराह रहे हैं , उन्हें पीड़ा बहुत अधिक हो रही थी ।
उनकी ऐसी हालत देख कर वह बोले , ‘प्रभू ,क्या इस दर्द का इस धरती पर कोई उपचार नहीं है ?’
नारद जी की बात सुन कर श्री कृष्ण जी ने कहा, यदि मेरा कोई भक्त अपना चरणोदक मुझे पिला दे तो संभवतः मेरी वेदना शांत हो सकती है । यदि रुक्मिणी जी अपना चरणोदक मुझे पिला दें तो शायद मुझे लाभ हो सकता है ।
नारद जी ने विचार किया कि भक्त का चरणोदक भगवान् के श्री मुख में ... लेकिन फिर भगवान् की वेदना से व्याकुल होकर वह रुक्मिणी जी के पास जाकर नारद जी ने उन्हें सारा हाल सुनाया तो रुक्मिणी जी तुरंत बोलीं, ‘ नहीं .... नहीं ...देवर्षि मैं यह पाप नहीं कर सकती ।
नारद जी ने लौट कर रुक्मिणी जी की असहमति कृष्ण जी के सामने व्यक्त कर दी । तब कृष्ण जी ने उन्हें राधा जी के पास भेज दिया .... राधा जी ने जैसे ही कृष्ण जी के दर्द के बारे में सुना तो तुरंत एक पात्र में जल लाकर उसमें अपने पैर डुबो दिये और नारद जी से बोलीं , ‘देवर्षि इसे आप तत्काल कृष्ण जी के पास लेकर जाइये । मैं जानती हूं कि मैंने बहुत बड़ा पाप किया है और मुझे घोर नर्क मिलेगा परंतु अपने प्रियतम के सुख के लिये मैं ऩर्क की यातना भी भोगने को तैयार हूं ।..’
यह है सच्चे प्रेम की पराकाष्ठा , जहां लाभ हानि की गणना नहीं की जाती है ... अब नारद जी को मालूम हो गया था कि तीनों लोकों में राधा जी की स्तुति क्यों होती है ।
प्रस्तुत प्रसंग में राधा जी ने कृष्ण जी के प्रति अपने अगाध प्रेम का परिचय दिया है । सच्चा प्यार किसी भी स्थिति में विचलित नहीं होता वरन् अपने प्रेम के प्रति समर्पित रहता है ।
मथुरा से विदा होने के समय पर उन्होंने राधा जी से वचन लिया था कि वह उनकी याद में आंसू नहीं बहायेंगीं ....राधा जी ने भी वचन दिया था कि वह न ही रोयें गीं और न ही आंसू बहायेंगीं ...
श्री कृष्ण जी ने कहा था कि मेरे नाम से पहले हर व्यक्ति पहले तुम्हारा नाम लेगा , यही कारण है कि आज भी पूरे बृज धाम में राधे – राधे की अनुगूंज सुनाई पड़ती है ....