प्यार
प्यार
"सुमित्रा जी को दिल का दौरा पड़ा है। तुरंत पहुंचो। "
इकलौता बेटा गोविंद तुरंत फ्लाइट से लखनऊ पहुंच गया था । और डॉक्टर की अनुमति के बाद उन्हें एयर एंबुलेंस से लेकर सीधा मुंबई के लीला वती हॉस्पिटल में एडमिट करवा दिया था। वहाँ उनकी ओपन हार्ट सर्जरी हुई थीं और एक हफ्ते के बाद उन्हें डॉक्टर ने घर जाने को कह दिया था लेकिन हर पंद्रह दिन पर दिखाने के लिए बोला था, इसलिए वहां उन्हें रहना पड़ रहा था।
बड़ी आलीशान कोठी में अकेले गोविंद ही रहता था क्योंकि बेटी शीना इंग्लैंड पढाई करने के लिए चली गई थी। गोविंद की पत्नी गोरी मेम पहले ही उसे छोड़ कर अपने देश जा चुकी थी।
22अगस्त
पोती शीना की जीवन शैली देख वह अचंभित थीं। बेटे ने उन्हें समझा दिया था कि आप अपने उपदेश अपने पास रखिएगा, इस लिए वह चुपचाप सब देखती रहती थीं।
वह अपने कमरे में लेटी हुई कानों को बंद कर के सोने की कोशिश कर रही थीं। शीना ने अपने घर मेंंपायजामा पार्टी का आयोजन किया था। 7-8 लड़के और लड़कियां तेज आवाज में म्यूजिक बजा कर डांस, पीना, पिलाना हो रहा था। जाने कब तक यह शोर शराबा चलता रहा । वह नींद की गोली खाकर नींद के आगोश मेंं चली गई थीं ... लेकिन लंच करते समय उनकी पैनी निगाहों से छिप नहीं सका था, जब शीना बियर और अल्कोहलिक ड्रिंक की बौटल डस्टबिन में आहिस्ता आहिस्ता रख रही थी।
28अगस्त
दो चार दिन बाद उसका नया दोस्त विनी आया...
"हाय हैण्सम,कहते हुए शीना ने उसे अपने आलिंगन में लेकर उसे किस किया। विनी ने भी उसी तरह उसे गले लगाकर किस किया और बाहों में बाहें डाले हुए दोनों घर से बाहर निकल गए थे।
सुमित्रा जी विस्फरित नेत्रों से अपनी पोती शीना और उसके ब्वॉयफ्रेंड को देखती रह गई थी। उनकी आंखें शर्म से झुक गई थी। विनी की उम्र लगभग 35 वर्ष की रही होगी, वह चेहरे से ही लफंगा सा लग रहा था।
वह अच्छी तरह से यह जानती थी कि उनकी भावनाओं और बातों को पाश्चात्य संस्कृति के रंग में रंगा उनका अपना बेटा गोविंद, जो अब गोव बन बैठा है, नहीं समझ सकता है।
उनकी 18वर्ष की पोती, जो उनसे मिलने के लिए ही आई थी, यह पिक्चर दिखा रही थी।
उन्हें ऐसे माहौल मेंं घुटन महसूस हो रही थी, वह यहां से जल्दी से जल्दी चले जाना चाह रही थीं। उन्होंने बेटे गोविंद से टिकट के लिए कह दिया था लेकिन वह अभी और रुकने के लिए बोल रहा था।
15 सितंबर
शीना को बेसिन पर उल्टी करते हुए देखकर सुमित्रा जी सिहर उठी थीं। उसकी बातों ने आग मेंं घी डालने का काम किया था।
"क्या हुआ ग्रैंड मॉ, कोई पहाड़ टूट पड़ा है । क्यों मातम मना रही हो, क्या कोई मौत हो गई है । मैं डॉक्टर के पास जा रही हूं ,मुश्किल से एक घंटे की बात है ,बस सब कुछ नार्मल....."
सुमित्रा जी की आंखें डबडबा उठीं थीं । वह अपने कमरे मेंं जाकर सिसक उठीं.... ये आधुनिकता की आंधी में उड़कर युवा वर्ग किधर जा रहा है, कहाँ खो गई हमारी संस्कृति ,मान्यताएं ,हमारे संस्कार और रिश्ते नाते...
इतनी जल्दी इतना परिवर्तन ,इतनी भटकन.....क्या प्यार अब दो आत्माओं का मिलन नहीं वरन् मात्र क्षणिक वासना पूर्ति ही प्यार बन चुका है....
वह इतनी व्यथित थीं कि लखनऊ जाने के लिए अपनी पैकिंग मेंं जुट गईंं थीं। अब वह इस घुटन भरे माहौल में एक पल भी नहीं ठहर सकतींं...
शीना के खुले पन को देख वह अपने पुराने दिनों की यादों में खो गई थींं....उनके जमाने में प्यार किया नहीं जाता था, वरन् हो जाता था....
बात उन दिनों की है जब मोबाइल फोन ने हमारे जीवन में दस्तक नहीं दी थी वरन् कुछ घरों में ही लैण्डलाइन फोन हुआ करते थे। उन दिनों लड़कियां अपनी सहेलियों के यहां भी अपने छोटे भाई या किसी अन्य के सुरक्षा घेरे में ही जाया करती थीं।
जीवन में सोलहवां वसंत लगते ही तन और मन मेंं रंग भर गए थे, ऐसी मस्ती सी छा गई थी कि सब कुछ सतरंगी इंद्रधनुषी रंगों में रंगा हुआ दिखाई देने लगा था। स्वभाव में खिलंदड़ा पन, बात बेबात ठहाके के साथ सब कुछ सुहाना लगने की तर्ज पर हर क्षण मेरा जिया कुछ न कुछ गुनगुनाने को बेकरार रहता।
मैं अठारह की थी, मेरे घर में नया नया लैण्डलाइन फोन लगा था। घंटी बजते ही फोन उठाने के लिए दौड़ पड़ती थी, जबकि पापा के बिजनेस के ही फोन आया करते थे, यहां तक कि कुछ लोगों को गलतफहमी हो गई थी कि वह उनकी सेक्रेटरी हूँ, इसी लिए फोन उठाया करती हैं।
एक दिन घंटी बजी तो आदतन मैंने फोन उठाया था,
"हेलो, आप कौन ?" कड़क कर बोली थी।
" फोन आपने किया है। किससे बात करनी है ?"
"आपकी आवाज बहुत मीठी है । "
अपनी प्रशंसा सुनते ही आदतन जोर से खिलखिला कर हंस पड़ी थी। मीठी आवाज सुनते ही उनका लहजा और वाल्यूम नरम पड़ गया था।
"आपको किससे बात करनी है ?"
"आपकी हंसी ने मेरे कानों में मानों सरगम सी छेड़ दी और मैं उसी में पूरी तरह से खो गया था। "
"तुम्हारी इतनी हिमाकत......" कहते हुए फोन का रिसीवर जोर से पटक कर फोन काट दिया था।
लेकिन उसकी आवाज में कुछ ऐसा जादू था कि बार बार उससे बात करने को मन मचल रहा था। परंतु ना ही उनके पास उसका नंबर था ,ना ही दूसरा कोई साधन... बस था तो उसके अगले फोन का इंतजार...
यह था उनका प्यार से परिचय....
वह कंपनी का नया मैनेजर था ,मुंबई से यहां आया था,
उसने सोचा, सेक्रेटरी से फ्लर्टिंग करते हैं। लेकिन वह फ्लर्टिंग एक अनूठे प्यार में बदल गई थी। उसका नाम सजल था।
दिन भर बेचैनी से उस जादुई आवाज का इंतजार करती रही....
अगली सुबह फिर से वही आवाज सुनते ही मन मयूर खुशी से नाच उठा था...
बस उसी पल से प्यार की शुरुआत हो गई थी ।
न मैंने उसे देखा और न ही उसने मुझे देखा था.... लेकिन फोन की घंटी बजते ही दिल में घंटियाँ बज उठतीं, दिल की धड़कनें बढ जातींं.....
"क्या कर रही थीं ?"
"नाश्ता कर लिया ?"
"क्या खाया ?"
"कौन सी किताब पढ रही हो ?"
'"कौन सी पिक्चर देखी ?आदि आदि....
आप से कब तुम पर उतर आये थे, पता ही नहीं लगा था। न ही मिलने की कोई ख्वाहिश और न ही आपस में कोई लेन देन....
बस केवल और केवल लंबी-लंबी बातें, जिसमें कोई भी विषय अछूता नहीं रहता...... कभी पॉलिटिक्स, तो कभी फैशन, तो कभी धर्म और उसके रीति रिवाज तो कभी समाज की रूढियां..... घंटों कब बीत जाते, पता ही नहीं चलता था....
ये सिलसिला सालों तक चलता रहा....
एक दिन उसने मुझसे मिलने का आग्रह और मनुहार की थी परंतु मुझमें हिम्मत नहीं थी और मुझे अपनी सीमाएं मालूम थींं । मैंने प्यार से मिलने को मना कर दिया था।
वह भावुक होकर बोला,"काश, तुम मुझे पहले मिली होती । तुम्हारी मीठी बातों में मैं अपना होश खो बैठता हूँ। तुम्हारी खनकती हुई हंसी में मैं अपने को भूलकर उसी मेंं खो जाता हूँ। "
मैं जोर से खिलखिला पड़ी थी।
मैंने उसे हंस कर बताया था,"मेरी शादी तय हो गई है। "
अपना एड्रेस बता दो,मुझे शादी का कार्ड भेजना है।
उसकी आवाज में गहरी उदासी थी।
"मुझे तुम बहुत या द आओगी। "
उसकी उदासी को महसूस कर वह भी उदास हो उठी थी। लेकिन अपनी शादी की खुशियों में डूबी हुई भविष्य के सुनहरे सपनों में खोई हुई देर तक हंसती रही थी।
वह भी हंस कर बोली थी,"तुमसे बात करना तो मुझे भी अच्छा लगता है। "
उसने पहले ही बताया था कि वह शादी शुदा है। वह अपना बड़प्पन दिखाते हुए बोला था,"अपना ख्याल रखना। "
"मैं शादी में जरूर आऊँगा। उस लकी इंसान से जरूर मिलना चाहूँगा,जिसके जीवन में रंग भरने जा रही हो। अपनी खिलखिलाहट को ऐसे ही बनाए रखना।
अपनी शादी शुदा जिंदगी में बिजी हो गई लेकिन आज भी वह अनूठे प्यार की यादों से चेहरे पर मुस्कुराहट छा जाती थी।
"मां,"ये पैकिंग कैसे कर ली ?"
सुमित्रा जी की तंद्रा भंग हो गई और वह वर्तमान में लौट आई थी।
"बस बेटा, कल मुझे जाना है। फिर आ जाऊंगी"
वह अपने प्यार में खोई हुई जब प्लेन में बैठीं तो अपनी बगल की सीट पर सजल को बैठा देख खिलखिला पड़ी थी।
ऐसा होता था प्यार।