प्यार एक एहसास

प्यार एक एहसास

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कमरे में घड़ी के पेंडुलम की तरह कभी इधर कभी उधर, घूमती हुई तारा आज बहुत बेचैन लग रही थी। उसकी बेचैनी उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी। उसकी नजरें जैसे किसी का इंतजार कर रही हो, तभी अचानक उसका फोन बजता है, वह झट से बिना देखे फोन उठा लेती है, पर सामने से वीर की आवाज ना सुनकर, उसने बिना कुछ बोले दूसरी तरफ फोन पटक दिया और वापस खुद से बड़बड़ाने लगी।


वीर तारा का बहुत अच्छा दोस्त है, दोनों में बहुत गहरी दोस्ती है। पिछले हफ्ते वीर किसी काम से शहर से बाहर गया था, उसने कहा कि वह पांच दिन में आ जाएगा पर आज आठ दिन हो गए है और वह अभी भी वापस नहीं आया। ऊपर से उसका फोन भी नहीं लग रहा है, सिर्फ एक मैसेज आया था कि मैं कुछ दिन बाद आऊंगा। इस बात को लेकर तारा उससे बहुत नाराज़ है, साथ ही वीर की चिंता भी है कि वह ठीक हो।


यूं तो तारा बहुत समझदार है, वह हर स्थिति को बहुत अच्छे से संभालती है। पर जब से वीर गया है, उसका दिल बेचैन है, अजीब अजीब ख्याल उसे डराते रहते हैं, उसका दिल बस यही कहता है कि वीर उसके सामने आ जाए और वह उसे कसकर गले से लगा ले, फिर उसे खुद से दूर कहीं जाने ना दे। अपनी भावनाओं को वह नहीं समझ पा रही कि आखिर उसे क्या हो गया है, पूरा पूरा दिन वह उसी के इंतजार में रहती है। ऐसे बहुत से सवाल उसके ज़हन में थे पर उसे उनके जवाब नहीं मिल रहे थे।


कुछ दिनों बाद वीर के वापस आने का मैसेज मिलता है और तारा उसे मिलने स्टेशन पहुंचती है। कुछ देर इंतजार के बाद तारा को वीर ट्रेन से उतरता दिखाई दिया और वह भागकर उसके पास जाती है और खुशी से उसके गले लग जाती है। वीर से मिलकर आज उसके तड़पते जी को सुकून मिला और एहसास हुआ कि वह वीर से प्यार करने लगी है, प्यार के पहले एहसास ने उसकी आंखें नम कर दी। उसकी भावनाओं से अनजान वीर उससे पूछता है, “तारा! क्या हुआ ? तुम रो क्यों रही हो?”


”तुम नहीं समझोगे वीर, मुझे बस इस एहसास को जी लेने दो !!”


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