Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Crime

4  

Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Crime

पूर्ण न्याय

पूर्ण न्याय

7 mins
240


पूर्ण न्याय.. मैं, उस 15 वर्षीया पीड़िता की बड़ी बहन हूँ, जिस पर बलात्कार हत्या का प्रकरण, आठ महीने पूर्व देश में अत्यधिक चर्चा में रहा था। मेरे द्वारा अब, लगाई जनहित याचिका से, वह प्रकरण देश में पुनः चर्चा में आ गया था। 

वह प्रकरण, अत्यंत दुःखद हादसा था। जिसमें रात 10 बजे खेत से लौट रही, मेरी सबसे छोटी, 15 वर्षीया बहन को, एक ड्राइवर एवं उसके खलासी ने, मिलकर ट्रक में उठा लिया था। दुष्कृत्य करने के बाद, उसे गाँव से 10 किमी दूर सुनसान सड़क पर छोड़ दिया था। 

मेरी, इस पीड़िता बहन को, सुनसान रात में अकेली पाकर, दो और लड़कों ने, उस पर बलात्कार किया था एवं फिर उसकी निर्ममता से हत्या कर दी थी। 

तब विपक्षी दलों ने मौका देखकर खूब, राजनीति की थी। जिससे, राज्य सरकार एवं राज्य पुलिस की बहुत छिछालेदार हुई थी। इस निर्मित हुए दबाव में, पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों को, एक घटना क्रम का बहाना बना कर, एनकाउंटर में आरोपियों को मार डाला था। 

सरकार ने भी, हमारे पीड़ित परिवार में से, मुझे सरकारी स्कूल में, चपरासी की नौकरी दे दी थी। साथ ही हमारे परिवार को, पचास लाख रूपये की सहायता राशि दी थी। जिसके बाद प्रकरण का, राजनैतिक, मीडिया एवं जन विरोध, उदासीन कर दिया गया था। 

अनु कंपा रूप बतौर, मुझे नौकरी प्राप्त हुई थी। ऐसे में मेरी याचिका चौकानें वाली थी। इसमें उल्लेखित कारण, लोगों को अचंभित कर रहा था। मुझसे, मेरी महिला वकील ने, शुल्क ना लेते हुए याचिका दायर करवाई थी। जिसमें उल्लेख किया गया था कि -

याचिकाकर्ता मैं, 20 वर्षीया लड़की, अभूतपूर्व रूप से अपने, सामाजिक दायित्व का परिचय दे रही हूँ। मैं इसमें, अपने पिता के शराब पीकर, अपनी माँ से की गई बात का खुलासा कर रही हूँ।

सात दिन पूर्व नशे में धुत्त, मेरा पिता, मेरी माँ को, गालियाँ देते हुए कह रहा था कि -

तूने, एक के बाद एक, चार लड़कियाँ पैदा कर दी थीं। जिन्हें, मैं ही मार डालने की सोचता था। अगर मैं मार देता तो मैं, आज जेल में होता। 

भगवान, जब किसी पर कृपावान होता है तब, छप्पर फाड़ के देता है। हमारी, एक लड़की को उसने, औरों से मरवा दिया है। मुझे, पचास लाख मिल गए हैं। बड़ी को, नौकरी मिल गई। मजे ही मजे हैं, अब तो हमारे। 

पिता की इस बात ने मुझे मर्माहत किया था। उस रात वह मुझे, मानव जाति पर, कलंक लग रहा था। 

मेरी माँ, अपने निकम्मे एवं नशेड़ी पति (मेरे बाप) के अत्याचारों से त्रस्त रही थी। वह, रईसों के घर चौके बर्तन एवं कपड़े धोकर, जैसे तैसे, हम बच्चों को पालती थी। उसका पति (मेरा बाप), उसकी ऐसी कमाई में से भी उसे, मार पीटकर, अपने नशे के लिए, रूपये ले लिया करता था। 

देश सरकार की घर घर शौचालय योजना में, मेरे पिता ने पाँच हजार का लोन लिया था। मगर शौचालय बनवाये बिना उस पैसे को, अपने नशे के लिए उड़ा दिया था। 

इस कारण से घर में, शौचालय नहीं होने था। उस रात, मेरी पीड़िता बहन ने, शौच के लिए जाने में, रात होने से, मेरे पिता को अपने साथ चलने के लिए भी कहा था। लेकिन नशे में धुत्त रहने से वह, साथ नहीं गया था। उसी रात, उसे अकेली देख, दुष्ट लोगों ने, उसे उठा लिया था। बाद में वह, निर्ममता से मार डाली गई थी। 

याचिका में, अंत में मैंने लिखा गया कि - 

मेरे पिता से, 50 लाख की राशि, जिसे वह अपनी अय्याशी पर खर्च कर रहा है वापिस ले ली जाए। उस पर शौचालय लोन के दुरूपयोग का प्रकरण चला कर उसे जेल भेजा जाए। मेरी माँ, अपने काम एवं मेरी नौकरी से, स्वाभिमान से, अपना घर खर्च चलाने को इच्छुक हैं। 

मेरे द्वारा, न्यायालय से यह भी प्रार्थना की गई थी कि - 

मेरी मारी गई बहन को, ‘आधा नहीं पूरा न्याय’ दिलावाने के लिए मेरा बाप, पिता होने की योग्यता नहीं रखता है। उसी की तरह के देश में, अन्य और भी बाप बन जाते हैं। ऐसे लोग, पिता होने के लिए अपात्र होते हैं। 

ऐसे लोगों को, आगे से पिता बनने से, रोकने संबंधी व्यवस्था बनाई जाए। जिससे, ऐसे बलात्कारी हो जाने वाले दुष्ट लड़के एवं बलात्कार एवं हत्या से मारी जाने वाली दुर्भाग्यशाली लड़कियाँ, देश में आगे और ना होने पायें। 

न्यायालय ने अभूतपूर्व रूप से अनुकरणीय, मेरी, इस याचिका का स्वीकार कर लिया था। न्यायाधीश ने, प्रशासन को सर्वप्रथम मेरी, सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए त्वरित निर्देश दिए थे।

तब, पूरे देश में, मेरे साहस एवं नैतिकता की, भूरी भूरी प्रशंसा की जा रही थी। मीडिया ने मुझे, अयोग्य पिता की, योग्यतम संतान, निरूपित किया था। 

अब देश भर में सभी की उत्सुकता, इस याचिका पर, न्यायालय के दिए जाने वाले, निर्णय जानने की थी। 

मेरी याचिका को स्पीड कोर्ट ने, सुनवाई में लेते हुए, सातवें दिन ही निर्णय सुनाया था। जिसमें पीड़िता के (मेरे) पिता को, सरकार द्वारा दी गई पचास लाख की राशि, लौटाने के निर्देश दिए गए थे। 

साथ ही घर में शौचालय निर्माण का भी आदेश, मेरे पिता को दिया गया था। माननीय न्यायलय ने, केंद्र सरकार को भी निर्देश दिए थे कि -

सरकार, इस आशय का विधेयक लाकर पारित करवाये, जिससे यह व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके कि - 

“कोई भी नव युगल, विवाह करते हुए, उनकी आगामी संतान जन्मने के पहले, पिता-माता होने के दायित्व समझ सके। उसके उपरांत ही बच्चे जन्म दिया करें। 

न्यायालय के आदेश के परिपालन में, भारत सरकार ने “पालक-अभिभावक होने की पात्रता” संबंधी विधेयक के लिए, अनुशंसायें देने के लिए, ख्यातिलब्ध समाज सेवियों की, एक कमेटी गठित की। इस कमेटी में, आश्चर्यजनक रूप से, पीड़िता की (मैं) याचिका कर्ता बहन को भी, एक सदस्य नियुक्त किया गया। 

एक महीने में इस कमेटी ने, अपनी अनुशंसायें सरकार को सौंप दी। जिसके उपरान्त सरकार ने लोकसभा में विधेयक लाया, जिसमें निम्न प्रावधान, प्रस्तावित किये गए - 

देश के, एक करोड़ रूपये से अधिक, व्यक्तिगत वार्षिक आय वाले व्यक्तियों के लिए, यह अनिवार्य किया गया कि वे देश के, (सभी) जिलों में, एक अपना एनजीओ स्थापित करें। 

ये एनजीओ, 50 हजार से कम सालाना आय वाले, लड़के-लड़कियों के विवाह के समय (विवाह की तिथि से तीन महीने पहले से, तीन महीने बाद अर्थात छह महीने की अवधि में), इन एनजीओ के माध्यम से, पालक पात्रता संबंधी सात दिवसीय प्रक्षिक्षण अनिवार्य रूप से लें। ऐसे प्रशिक्षित होने का प्रमाण पत्र वे, विवाह पंजीयन कार्यालय में अपने विवाह के, चार महीने के अंदर अनिवार्य रूप से जमा करवाएं। 

ऐसा ना किये जाने पर विवाहित युगल को, छह माह के कारावास का प्रावधान भी, प्रस्तावित किया गया। ऐसे दंडित युगल को, तब यह प्रस्तावित प्रशिक्षण, उस जिले में कार्यरत एनजीओ द्वारा, कारावास में दिलाया जाना निर्धारित किया गया। 

प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम में वे विषय, नवयुगलों में चेतना लाने के लिए रखे जाना प्रस्तावित किये गए, जिसका ज्ञान होने से, ऐसे नव युगल, अपने होने वाले, बेटे-बेटी का यथोचित रूप एवं संस्कार सहित, लालन पालन कर सकें। 

ऐसे प्रशिक्षित माता पिता के बेटे, यदि भविष्य में स्त्रियों पर, बलात्कार के दोषी पाए जाते हैं तब उनके माता पिता पर भी आपराधिक प्रकरण दर्ज किया जाए। जिसमें 2 वर्ष तक कारावास के, दंड का प्रावधान भी रहेगा। 

सरकार ने ऐसे प्रशिक्षित, नई पीढ़ी के पालक-अभिभावक हो जाने पर, यह आशा जताई कि - 

आगे के समय में, देश में कन्या भ्रूण हत्या रुक सकेंगी। देश में स्त्री-पुरुष अनुपात में सुधर आ सकेगा। 

बच्चों का दायित्व पूर्ण, लालन पालन बेटे-बेटियों के साथ भेदभाव पूर्ण, व्यवहार की संभावना भी खत्म करेगा। 

आशा जताई गई कि ऐसे लालन-पालन मिले, बड़े हुए, आगे के समय के बेटों के द्वारा, लड़कियों पर बलात्कार किये जाने की घटनायें बंद हो सकेंगीं। 

साथ ही इन जागरूक माँ-पिता के होने से यह आशा भी दर्शाई गई कि - 

वे लड़के-लड़की में भेद किये बिना अपनी संतानों की संख्या, सीमित रखेंगे। जिससे आगे के समय में देश की जनसंख्या वृध्दि दर में, भी कमी आएगी। 

एनजीओ द्वारा इस तरह से समाज सेवा करने के एवज में, उन्हें, एनजीओ संचालन पर 40 लाख रूपये तक की व्यय की गई राशि को, आयकर में छूट वाली, आय बताने की सुविधा दी गई। 

विधेयक पेश करते हुए सरकार ने, सदन में यह आशा दिखाई कि - 

इस तरह से, उच्च आय वर्ग व्दारा, यह सामाजिक दायित्व ग्रहण करने पर, देश के सामाजिक वातावरण में सुखद बदलाव आएगा। 

यह विधेयक, लोकसभा एवं राज्यसभा, दोनों में निर्विरोध पारित हुआ। 

जिस दिन राष्ट्रपति द्व्रारा, इस पर हस्ताक्षर किये गए तब मुझे एक, प्रेस कॉन्फ्रेंस में आमंत्रित किया गया। 

इसमें, मैंने, इसे मेरी पीड़िता बहन के अतिरिक्त, ऐसी अन्य दुर्भाग्यशाली पीड़िताओं को भी, मरणोपरांत मिला ‘पूर्ण न्याय’ मिलना बताया।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Crime