पुरस्कार
पुरस्कार
सर्कस में हवा में कलाबाज़ियाँ कर करतब दिखाने वाली अति सुंदर अनाथ बालिका सुहाना के उभरते यौवन पर फ़िदा सर्कस का मालिक उस पर डोरे डाले हुए था ! कई दिनों से शो ख़ाली जा रहे थे, धंधा मंदा चल रहा था, आय सीमित हो गई थी ! आर्थिक तंगी से बौखलाकर गुस्से से आग बबूला हो मैनेजर से संदेशा भेज सुहाना को बुला भेजा !
सुहाना मालिक के हुक्म की पैरवी कर उसके तंबू पहुँची ! ज्यों ही उसने तंबू में क़दम रखा मालिक ने उसे अपनी बलिष्ठ बाँहों में भींच लिया ! जब तक वह उसकी मंशा समझ पाती उसने ज़ोर-ज़बरदस्ती बल प्रयोग कर सुहाना का यौवन-शोषण कर लिया ! रोती बिलखती सुहाना ने याचना भरी दृष्टि से मालिक को देखा तो वह कहने लगा, "इन दिनों तुम्हारे ख़राब प्रदर्शन से शो ख़ाली जा रहे हैं, मुझे घाटा हो रहा है, यह उसी की सज़ा है ! कान खोल कर सुन लो, तंबू में जो हुआ उसकी भनक भी किसी को लगी तो परिणाम बुरा होगा ! बेहतर होगा तुम अपना मुंह बंद रखो !"
सब कुछ लुटने पर भी सुहाना जी-जान से अपने काम में लगी रही ! कुछ दिनों पश्चात सर्कस का काफ़िला गांव पहुँचा ! गांव में रोज ही शो फ़ुल रहने लगे ! आय भी अच्छी होने लगी ! मालिक ने मैनेजर से सुहाना को संदेश भेजा कि तुम्हारे अच्छे प्रदर्शन से मालिम खुश है तथा तुम्हें पुरस्कार देने हेतु बुला रहे हैं ! सुहाना पुरस्कार की लालच में ख़ुशी-ख़ुशी मालिक के तंबू पहुँची ! अबकी बार मालिक ने उसे अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से फ़ुसलाया, ठंडा-गरम पिलाया और उसके सुकोमल शरीर से खेल अपनी हवस को शांत किया ! सुहाना की याचना भरी प्रश्न करती निगाहों के उत्तर में मालिक ने कहा, “यही तुम्हारा पुरस्कार है !”