पुण्य
पुण्य
“अच्छा सुन...पोछा लगा कर ज़रा सिर में चम्पी कर देना...बहुत दिन हो गए तेरे हाथ से मालिश कराए हुए...” – सुनीता ने महरी से कहा।
महरी को रात की बची सब्जी और रोटी देते हुए वह कह रही थी- “भूखों का पेट अगर भर सकें तो इससे बड़ा पुण्य का काम क्या हो सकता है...”
खैर, जिस प्रकार रोटी सब्जी देना सेवा शर्तों में शामिल न था ठीक वैसे ही चम्पी भी महरी के लिए तय किए काम की सूची से बाहर ही था।
सुनीता द्वारा अक्सर पुण्य की यह परिभाषा दी जाती थी।
महरी को भी इस परिभाषा हेतु मूक असहमति देने की आदत पड़ गई थी।