पुण्य या पाप
पुण्य या पाप
"काली तू यहाँ कुआँ के पास इतनी सुबह सुबह कैसे आ गई तेरी बारी तो हम लोगों के बाद आती हैं.."पंडिताइन काकी, काली से कहती है..।
"हां... हां... पंडिताइन काकी.. मुझे पता है।' काली मटकी में पानी भरती हुई बोलती है।
" हां.... जब पता ही था.. तो... क्यूं आयी पानी भरने को... ।" पंडिताइन, काली को डाटती हुई कहती है।
"क्यूँ... बताऊ आपको..।" काली कहती है।
" ठीक है.. ठीक.. जरा हटके जा.. मुझमें सटना मत.."पंडिताइन काकी, काली से दूर होती हुई कहती है।
"हां... हां... मुझें पता है... और मुझें शौक़ नहीं की आपके बदन में सट के जाउ"काली मायूसी होकर बोलती है।.., "वैसे भी मेरा घड़ा का पानी आपके मन से कई ज़्यादा पवित्र है.. ।"
"अरे...अरे... देख तो कैसे इसकी ज़बान बढ़ गई है.. बोल तो ऐसे रही है जैसे पूरे गाँव की मालिक हो ..। आने दे तेरी अम्मा को तेरी आज शिकायत करती हूं...।" पंडिताइन कालीपर गुस्साते हुए बोलती हैं...।
" हां... हां... कर लेना मेरी शिकायत अम्मा से ।" काली पनघट से जाते हुए बोलती है।
(मंदिर में) राधे कृष्ण गोपाल कृष्ण हरे कृष्ण, हरे मुरारी हे नाथ नारायण हे कृष्ण मुरारी... काली मन्दिर में जैसे ही प्रवेश करने लगी तभी पंडित महेश्वर बोलने लगे.., "अरे.. अरे.. रुक जा काली क्यूँ अपने गंदे पैरों से मन्दिर को नापाक करने आ रही हो..। वही से प्रणाम करो और जाओ ... ।"
" नहीं... पंडित जी आज मैंने सबसे पहले कुआँ से इस घड़ा में पानी भरकर लाई हूं..। और आज अपने कान्हा को बिना स्नान कराये नहीं जाऊंगी
मैं मंदिर से... " काली मंदिर के सीढ़ियों पर चलती हुई पंडित जी से बोलती है।
" घोर कलयुग... घोर कलयुग..ये क्या बोल रही हो..? काली, क्यूं अपने मथे पाप लेना चाहती हो..? ।"
"अरे... काहे को पाप पंडित जी, आप पूजा करो तो पाप...नहीं पुण्य होगा.. और हम मंदिर में प्रवेश कर जाए तो पाप हो जाए..."काली जोर आवाज में बोलती है..।
"तू.... जा काली यहाँ से जा... सुबह सुबह पूजा खण्डित मत कर मेरा.. "पंडित जी काली को भगाते हुए कहते है...।
"नहीं... पंडित जी आज अपनी कृष्णा को स्नान कराए बिना नहीं जाऊंगी....। देखती हूं किसके में दम है जो मुझे रोक ले आज कान्हा को पूजा करने से...।" काली जिद्दी बनते हुए बोलती है।
इस तरह काली कान्हा की श्यामल सुंदर मूर्ति के तरफ बढ़ने लगी और अपने हाथों में जल से भरा घड़ा लिए हुए वो मग्न थी अपने कान्हा के प्रेम में...
लेकिन तभी पंडित महेश्वर जी ने उसके पैरो पर तेल की डब्बा गिरा दी और काली वही गिर पड़ी बीच मंदिर में ही... काली रोते रोते कहने लगी.., "कान्हा के मूर्ति के पास आने से तो रोक दिया मुझे.. लेकिन मेरे दिल में जो कान्हा के लिए प्रेम है...मेरी आँखों में जो कान्हा की अनोखी सुन्दर तस्वीर है उसे कैसे निकाल फेंकोगे..?
भगवान सभी को प्यार करते हैं चाहे वह छोटा जाती का हो या बड़ा जाती का...लेकिन ये कौन समझाए..? अंधे ज्ञानियों को..।" इस तरह काली कान्हा के प्रेम में हँसती हँसती उठ कर वहाँ से चली जाती है..।