पत्र जो लिखा,भेजा नहीं
पत्र जो लिखा,भेजा नहीं
प्रिय
(शायद ऐसा लिखने का अधिकार खो चुकी हूं)
तुम घर कब लौटोगे ?
मेरे प्रेम की कोई कीमत नहीं ?
इन गलियों को तुम भूल पाओगे ?
जिनमें बसती है ,मेरी ,तुम्हारी आंखमिचौली !
इन्हें छोड़ कर तुम जी पाओगे ?
कभी नहीं तुमसे पूछूंगी
बेरुखी का सबब
घर लौट आओ
अब नहीं रोकूंगी ,न टोकूंगी
दाना नहीं चुगता हमारा हीरामन
तुम्हारे पढ़ने की जगह
तुम्हारी बांट जोह रही है।
अब तुम्हारे आने का इंतजार करती
पथरा रही हैं ये दो आंखें
सखी कहती है
बाट जोहना बंद कर दे
जी तू भी अपनी जिंदगी
इत्मीनान से
मगर जीने की चाहत हो ही नहीं
जीने का मकसद हो ही नहीं ..तो ?