पति का बटुआ : नोंक झोंक
पति का बटुआ : नोंक झोंक
"अरे रश्मि ! कहाँ हो भई!"
"और कहाँ! रसोई में हूँ!
"देखो जरा बेल बजी है, दरवाजा खोल दो ! रश्मि हाथ का काम छोड़ रसोई से कुनमुनाती हुई आई और बोली-
"क्या आप भी ! मजे से बैठे टीवी देख रहें हैं ये नहीं कि खुद दरवाजा खोल दें !
"अरे यार ! छुट्टी के दिन मुझे कुछ न कहा करो ! बस मैं और मेरा टीवी!"
"हुँह ! कह तो ऐसे रहें हैं जैसे पूरा हफ्ता आप ही घर संभालते हैं !"
"हहाहा! अब छोड़ो ताना तुनकी और दरवाजा खोलो !" दरवाजे पर चौकीदार दीनदयाल को खड़े देख सुरेन्द्र ने रश्मि को कहा-
"और हाँ अब आ ही गई हो तो मेरी पैंट दरवाजे के पीछे टंगी है, बटुए से पैसे निकाल कर दीनदयाल को देे दो !"
"खुद मत हिलना! बस बैठे बैठे ऑर्डर देते रहना!"
"अरे यार इकलौती बीवी हो तुम मेरी! तुम मेरा काम नहीं करोगी तो कौन करेगा!"
"मक्खनबाज कहीं के !"
मुस्कराते हुए रश्मि ने अंदर कमरे से पैंट लाकर सुरेन्द्र के हाथ में पकड़ा दी ।
"अरे ! तुम्ही दे दो न !"
"आपको पता है न कि मैं कभी भी आपकी जेब में हाथ नहीं डालती! लीजिये खुद दीजिए!"
सुरेन्द्र ने दीनदयाल को पैसे देकर विदा किया और रश्मि से मुखातिब होते हुए पूछा -
"रश्मि एक बात बताओ यार! मेरे सारे दोस्त तो हमेशा यही शिकायत करते हैं कि उनकी बीवियाँ बिन बताये ही उनकी जेब से पैसे निकाल लेती हैं! एक तुम ही हो अनोखी जो मेरी जेब में हाथ तक नहीं डालती ।"
"मेरी माँ को देखा मैंने हमेशा ऐसा करते हुए! उनकी ये आदत हमेशा से मुझे प्रभावित करती थी तो फिर भला मैं कैसे उनसे अलग हो सकती हूँ!" "हां यार! बहुत बढ़िया आदत है ये! मैं भी निश्चिंत रहता हूँ कि जेब में जितने पैसे रखे हैं सेफ हैं!"
"क्या मतलब !" तुनक कर रश्मि ने पूछा ।
"अरे मेरा मतलब ! कई बार यार दोस्तों को पेमेंट करते समय शर्मिंदा होते हुए देखा और ये कहते सुना -
"मेरी जेब में इतने रुपये रखे थे अब नहीं है शायद पत्नी ने निकाल लिये होंगे और मुझे बताना भूल गई होगी । यार आज तू पे कर दे प्लीज!"
"उनका हाल देख कर मुझे तुम पर गर्व होता है कि कम से कम मेरी बीवी तो ऐसी नहीं है ।"
"ओ हो तो आज पता चला कि जनाब को मुझ पर गर्व भी होता है!"
रश्मि खिलखिला कर हँस पड़ी ।
"कितनी अच्छी लगती हो यार तुम यूँ खिलखिलाते हुए! टच वुड !"
"क्या बात है! आज बड़े रोमांटिक मूड में हो!
"उफ्फ! खिलखिलाती सी तुम और ये सुहावना मौसम!"
कहते हुए सुरेन्द्र ने रश्मि का हाथ थाम लिया!
"अच्छा जी !"
रश्मि का चेहरा लाल हो उठा तो सुरेन्द ने तिरछी नजर से रश्मि के चेहरे की ओर देखा और एक आँख दबाते हुए तिरछी मुस्कान फेंकते हुए कहा -
"तो चलो ! हो जाए इस खुशी में चाय पकौड़े! और हाँ प्याज पालक के ज्यादा बनाना ! सोच कर ही मुँह मे पानी आ गया!"
"उफ्फ ! आपका रोमांस तो बस चाय पकौड़े तक ही है! बदमाश कहीं के ! इसके लिये इतना ड्रामा करने की क्या ज़रूरत थी!"
सोफे पर रखा कुशन सुरेन्द की ओर उछालते हुए रश्मि ने कहा और रसोई की ओर चल दी ।
