पर्यावरण
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घास के फूल
मुझे एक नया जीवन मिलने वाला था। मैं बहुत ही खुश था आँखें खुली तो अपने आप को एक घास के ऊपर अंकुरित भाया। एक छोटा सा फूल, नाम नहीं-नहीं ! नाम तो नहीं है। मेरा घर जहां पर लोग मुझे घास का फूल जरूर कहते हैं। यहां मेरी तरह और भी घास के फूल हैं, कुछ सफेद, कुछ पीले जब चांदनी रात होती है तब जमीन पर तारों जैसे टिमटिमाते हैं। अब तो मेरा इस परिवार में घुलना मिलना हो चुका था मैं सबसे छोटा था। उस बगिया में और भी कुछ फूल थे कुछ फूल बड़े थे जैसे गुलाब चंपा तरह तरह के फूल से कुछ बहुत बड़े पेड़ भी हुआ करते थे मैंने सबसे बड़ा पेड़ ताड़ का देखा था। मन करता मैं भी उछल कर सबसे ऊँचे पेड़ पर चला जाऊँ। सबसे ऊपर जाकर पूरी दुनिया को देखूं कैसी लगती है। यह दुनिया कितनी सुंदर होगी, दुनिया भर के बहुत सारे ख्याल आते पर मैं फिर उदास होकर चुपचाप बैठ जाता। पास में गुलाब जूही चंपा के फूल में चिढ़ाया करते कि तुम कितने छोटे हो तुम घास हो, तुम्हें लोग रौद कर चले जाते हैं। हमें देखो लोग हमसे कितना प्यार करते हैं। यह सब सुनकर मेरा मन उदास हो जाता और मैं मां से कहता मां मैं क्यों नहीं बड़ा फूल बनता मां ने कहा सबकी अपनी ख़ूबियाँ होती है तुम दुखी मत हो और मैं मां के साथ हवाओं में खेलने लगता। पूरा दिन तो अच्छा भी था लेकिन जब शाम को बगीचे में चहलकदमी होती तो मुझ को बहुत दुख होता। बच्चे आते और गुलाब के फूलों को छूते खेलते हां कभी-कभी गुलाब के फूलों को तोड़ लिया करते और वह उदास होकर के रोने लगता तो मुझे दुख होता लेकिन इन सब के साथ भी कभी वह फूल हमें अपने साथ अपने बराबर का कभी नहीं समझते। मां समझाती कि खुद में खुश रहो। तुम घास के फूलों के साथ खेलो तुम दूसरे फूलों की तरफ मत देखो और वह बड़ा ताड़ का पेड़ तो बड़ा ही घमंडी था, जब भी मैं उसको बुलाता वह मुझे डांट करके चुप करा देता मन अजीब सा हो जाता कि देखो कितना बड़ा है लेकिन इसका दिल कितना छोटा है।
मन उदासी में बीत रहा था कि एक दिन शाम को अचानक से बहुत तेज़ तूफान आया इतना बड़ा तूफान तो मैंने अपनी जिंदगी में नहीं देखा। मैं डर कर मां से चिपक गया और हम सभी घास के फूल एक दूसरे से चिपक कर हवा में झूमने लगे। मां ने समझाया कि हमें ज़मीन पर लेट जाना चाहिए और हम हवा के डर से ज़मीन पर लेट गए। यह तूफान बढ़ता ही जा रहा था बारिश थी ही रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी और पानी हम लोगों के सिर से ऊपर चला जा रहा था तब तक अचानक बादलों ने बहुत तेज गड़गड़ाहट की और कुछ बहुत तेज तेज से धड़ाम से गिरा इतनी तेज कि शायद हम डर से गए। डर भी बहुत लगा पर माँ ने कहा घबराने की बात नहीं है सब शांत हो जाएगा। तूफान था कि रुक ही नहीं रहा था और उसके बाद एक-एक करते-करते बहुत सारे पेड़ नीचे गिर गए। किसी तरह से रात बीती सुबह हमने आँख खोली तो माँ ने हमें उठाया। रात बीत चुकी थी तूफान शांत था लेकिन पूरा बगीचा जुड़ चुका था।गुलाब के फूल में एक भी पंखुड़ी नहीं बची थी। ताड़ का पेड़ नीचे गिर चुका था जो पेड़ बस भी गए थे उनकी डाले आधी जुड़ चुकी थी या उनका आधा शरीर बुरी तरीके से टूट चुका था। उस बगीचे में सिर्फ रह गए थे तो हम घास के फूल आज पता चला कि सब में कुछ ना कुछ ख़ूबियाँ होती हैं हम छोटे पौधे में हवा के साथ लहरा गए और बच गए। जो पेड़ जितना बड़ा था वह उतनी बुरी तरीके से उखड़ कर टूट चुका था। इसलिए कभी अपने छोटे होने पर दुख नहीं करना चाहिए। आज मैं आसमान की तरफ मुंह करके भगवान को शुक्रिया अदा कर रहा था कि भगवान ने मुझे एक छोटा सा फूल बनाया, घास का फूल।