पर्यावरण
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चिड़िया रानी
आज शाम मैं ऑफिस से जल्दी आ गई मैंने सोचा शाम की चाय पी करके थोड़ा अपने घर के बगीचे में घूमूं काम कम होने की वजह से शरीर में थकान नहीं थी। मैं टहलते टहलते में नीम के पेड़ के नीचे गई तो वहां मैंने देखा एक चिड़िया बार-बार नीचे से ऊपर, ऊपर से नीचे, उड़ रही थी। मुझे वह कुछ परेशान सी लगी। वह मेरे पास आकर चू चू करती और फिर उड़ जाती ।
उसको हैरान परेशान देख कर के मुझे बेचैनी होने लगी। आगे गई तो मैंने देखा वहां पर चिड़िया के अंडे टूटे पड़े हैं, चिड़िया बार-बार अपने घोंसले से नीचे ऊपर चक्कर लगा रही है पहली बार मैंने ऐसे किसी पंछी को परेशान होते नही देखा था। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मैं उसके लिए क्या करूँ, तभी मम्मी ने बताया कि आज इस पेड़ की डाल थोड़ा टूट ही गई थी। उसे काटने के लिए कुछ मज़दूर आए थे सारा माजरा मेरी आंखों के सामने नाच गया मैं समझ च
ुकी थी। उसके घोंसले से अंडे नीचे गिर गए। मानो लग रहा है वह चिड़िया हमसे यह कह रही है मेरा क्या दोष था मेरे बच्चों का क्या दोष था।
मैं उसके लिए कुछ कर तो नहीं पाई पर मैं उसको देखती रही यह तो रोज का सिलसिला हो गया था। चिड़िया उन अंडों के छिलकों के पास ही बैठी रहा करती और एक दिन मुझे चिड़िया की आवाज़ सुनाई नहीं दी तो मैंने जाकर कर देखा। आज चिड़िया एकदम शांत थी। जैसे बोल रही थी रह लो तुम लोग धरती पर, मैं जा रही हूँ अपने बच्चों के पास जिनको मैने दुनिया मे लाने के सपने बुने थे। लो जा रही हूँ यहाँ से फिर कभी वापस न आने के लिए। उसको हाथ मे उठा के मैने पत्तों के नीचे सुला दिया। और मन ही मन बोली तुम को आना ही होगा चिड़िया रानी। यहाँ संगीत बिखेरोगी तुम। तुम और तुम्हारे बच्चे फिर से उड़ेंगे। और हम से जुड़ेंगे। ये सोच के एक नया पेड़ लगा रही हूँ। उस चिड़िया को बुला रही हूँ। वापस आओ धरा पर। गीत गुनगुनाओ।