Akanksha Srivastava

Drama

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Akanksha Srivastava

Drama

स्त्री

स्त्री

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शादी से लौट कर आने के बाद मैं अपने कपड़े और गहने समेट के रख ही थी कि मेरे पति ने कहा तुम औरतें भी ना कितना मेकअप करती है।जब देखो तब लीपा पोती करती रहती हो और हम मर्द ऐसा कुछ नही करते।मैंने सोचा बोलूं कि यह लीपापोती तुम लोग कर भी नहीं सकते इसपे सिर्फ हमारा अधिकार है।

बिना कुछ बोले मैं बस सोचने लगी कि सच ही तो कहते हैं। औरतें बहुत मेकअप करती हैं सच ही तो है क्योंकि हर समय वह किसी न किसी चीज की कमियों पर एक मेकअप करती आ रही है। कभी घर, कभी परिवार, बच्चे, पति, समाज, दोस्त, माता-पिता न जाने किन किन की बातों पर वह लीपा पोती करती आ रही है।

दोस्तों ने गलती की तो उसको छुपाने का मेकअप। बेहतर शिक्षा ना मिली तो उस पर मेकअप, शादी होने पर ससुराल ने ताना मारा तो उस पर मेकअप मायके की कमियों पर मेकअप पति ने बेवफाई की तो उस पर मेकअप रिश्तो की बचाने के लिए मेकअप बच्चों की गलतियों पर मेकअप बुढ़ापे में बच्चों द्वारा किए गए अनादर पर मेकअप नाती पोतों की शरारत छुपाने के लिए मेकअप आखिर में बढ़ती उम्र में परिवार में अस्तित्वहीन हो जाने पर मेकअप एक औरत जन्म से लेकर मृत्यु तक मेकअप ही तो करती रहती है। फिर भी हमेशा उसी को अपमानित होना पड़ता है। इतनी मेकअप के बाद भी वह कुछ नहीं कर पाती खुद के लिए।बह जाते हैं उसकी आंखों से काजल आंसुओं के साथ तभी तो कहते हैं बिना श्रृंगार स्त्री अधूरी है सच हि तो कहते हैं। यही बड़बड़ाते हुए मैं चाय बनाने लगी।


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