सैनिक
सैनिक
प्रीतो
समय की धारा में, उमर बह जानी है
जो घड़ी जी लेंगे, वही रह जानी है
मैं बन जाऊँ साँस आखिरी, तू जीवन बन जा
जीवन से साँसों का रिश्ता, मैं ना भूलूंगी
मैं ना भूलूँगा...
गाने की लाइन सुन के दिल धक्क से कर गया। कितना कुछ याद आता जा रहा है। न चाहते हुए भी मन वही पहुँच रहा है।
कानों में फिर वही आवाज़ गूंज रही है।
'यह विविध भारती है आकाशवाणी का जयमाला कार्यक्रम।'
यह आवाज़ जैसे ही घर मे गूंजती और मैं अपने मर्फी के पुराने रेडियो को सिग्नल पहुँचाने के लकड़ी की सीढ़ियों से छज्जे पर पहुँच जाती।
जैसे ही अपने शहर का नाम सुनती धड़कने तेज़ हो जाती।
'अभी अभी जालन्धर के प्रकाश जी का टेलीग्राम हमे प्राप्त हुआ है ।जिसमे उन्होंने " मैं ना भूलूंगा" गाना सुनाने का अनुरोध किया है। उनकी फ़रमाइश पर पेश है ये गीत।'
गाना खत्म हो गया। पर मैं बैठी रही थी उस रेडियो को सीने से चिपका के ।
कितना रोका था उसको फ़ौजी बनने से। पर उसने मेरी एक न सुनी थी। कहा था पहली तनख्वाह हाथ आते ही तेरा हाथ मागूँगा तेरे बाबा से। मैं शर्म से गुलाबी हुई जा रही थी।
रेडियो पे आती तुम्हारी फ़रमाइश सिर्फ मेरे लिए ही तो थी।
जब मिलते थे हम दोनों तो तुम बस यही कहते थे जल्दी से हम
दोनों एक हो जाय। मेरे लाख मना करने पे भी तुम नही माने मुझे बस यही समझाते रहे कि देश सर्वोपरि है फिर हम तुम। मेरे अंदर भी तुम्हारी बातें बैठने लगी।
पर वो दिन कैसे भूल सकती हूँ जब हमारे देश के बहुत सारे सैनिक शहीद हुए थे। और भगवान से लाखों मिन्नतें की ये खबर झूठी हो। पर तुम तिरंगे में लिपटे आये थे गाँव। मुझे कुछ होश ही नही था। लोग बताते हैं मैं सालों तक बोलना ही भूल गयी थी। सब पगली पगली कह के चिढ़ाने भी लगे थे। कि एक दिन एक बच्चे का छोटा सा तिरंगा दिखा। मैंने उसे सीने से चिपका लिया। उस तिरंगे को आँचल में छुपा के उसी मंदिर के घाट पे गयी जहाँ हम तुम नदी में पैर डाले बैठे रहते थे। पानी मे पैर डालते ही तुम्हारा कंकड़ डालना भी याद आ गया। कंकड़ उठाया पर फेंक नही पायी। वो सात कंकड भी याद आ गए जो तुमने विवाह के सप्तपदी सुना मेरे हाथों को पकड़ के डाले थे।
अब बहुत हल्का महसूस हो रहा था। समय के फेर में देश सेवा मेरा भी उसूल बन गयी। यही स्वास्थ केन्द्र पर अब मैं नर्स बन गयी थी। हर बीमार की सेवा ही जीवन का उद्देश्य बन गया।
जिंदगी की सांझ होने को आयी है। एक अनाथ बच्ची जो अब मेरी बेटी है उसको तुम्हारा ही नाम दिया है "प्रकाश प्रीत।"
अब सांसें उखड़ रही हैं बस ये गीत गुनगुनाते हुए आंखे बंद हो मेरी।