प्रवासी मन
प्रवासी मन
एक लम्बे अरसे बाद फोन आया था आज ।
बोली किस पर लिखे हो,
मैंने असहज भाव से पुछा क्या ?
अरे वही कल जो फेसबुक पर अपलोड किये हो
"न नथिया
न बिंदिया
न लब गुलाब पर घायल हुआ
देख केस विन्यास तुम्हारी
ये मन तुम्हारा कायल हुआ।"
अब छोड़ो भी
यूँ ही टाइम पास के लिए लिखते रहता हूँ- मैंने कहा
नहीं नहीं बता भी दो। अब छुपाने से क्या फायदा।
जो होना था वो हो गया। जबरदस्ती मैं तुम्हारे जीवन में दखल अंदाजी करने थोड़े ही आ रही हूँ।
मेरे टाइम में तो नहीं लिखते थे इतना सुंदर सुंदर
एक बात बोलूँ ,विश्वास करोगी ?
बोलो.... तुम ही पर लिखे हैं। लिखने के सिवाय मेरे जीवन में अब बचा ही क्या ?
एक गहरा सन्नाटा....
फोन रखते हुए रुआंसे होकर सिर्फ इतना ही बोल पायी -तुम तो लिख भी लेते हो और एक हूँ मैं ???