परमात्मा
परमात्मा
"परमात्मा परम सत्ता" :- "निश्चित ही इसमें कोई सन्देह नहीं है कि परमात्मा है और वह प्रकृतिपती है। सम्पूर्ण प्रकृति उसी की ही रचना है। फिर भी योग विज्ञान कहता है कि प्रकृति में रहते हुए ही प्रकृति के सहयोग द्वारा ही चेतना को उर्ध्वगामी करते हुए प्रकृति के परम स्रोत रूप परमात्मा का आनन्द भाव से अनुभव किया जा सकता है। मगर इसमें कठिनाई यह होती है कि उस अनुभव को कहने के लिए शब्द बहुत ओछे पड़ जाते हैं।
परमात्मा मौलिक रूप में हम सबके परम पिता हैं। यह गहरे से गहरा अध्यात्मिक तथ्य है। इतना अवश्य है कि उनके अस्तित्व का होना और उसके कार्यों का होना अपने आप में अत्यन्त सुक्षतम और रहस्यपूर्ण है। हम अपने भाव और विचार जगत में उनकी व्याख्या करते तो हैं। पर फिर भी जो भी हो, आखिरकार कहा यही जाएगा कि उनका होना एक प्रकार से अनुभव गम्य है। उनके यथार्थ स्वरूप को स्वयं के आन्तरिक जगत में अनुभव ही किया जा सकता है। वह जो है जैसा है, उनकी पूरी तरह से सटीक व्याख्या नहीं की जा सकती।