Vikrant Kumar

Inspirational

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Vikrant Kumar

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प्रकृति की स्वतन्त्रता

प्रकृति की स्वतन्त्रता

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आजादी के 74 वर्षों में शायद पहली बार इतनी सादगी से स्वतंत्रता दिवस का आगाज हुआ है। बिना बच्चों व सांस्कृतिक कार्यक्रम के केवल भाव सिंचित तिरंगा लहरा रहा है। हर्षोउल्लास से झूमने नाचने वाले देशभक्त आज महामारी से डरे सहमें घरों में दुबके बैठे है। अधिकांश भूभाग पर जल तांडव कर रहा है। पिछले 6 माह से आमजन आर्थिक सकंट से जूझ रहा है। जीवन ठहरा ठहरा सा प्रतीत हो रहा है।

शायद यह समय रूक कर सोचने का है। क्योंकि मनुष्य दिन ब दिन मशीन होता जा रहा है। उसे समय नहीं है रूक कर सोचने का। उसे समय नहीं है कि वो विचार करे कि सौरमंडल के एक मात्र ग्रह पे यदि जीवन सम्भव है तो उसकी निरन्तरता कैसे बनाई रखी जा सके। अपने इतिहास और भविष्य पर गम्भीरता से विचार करने की बजाय प्रकृति से निरंतर खिलवाड़ किये जा रहा है।

शायद प्रकृति ने मनुष्य के इस असहज व्यवहार से खिन्न हो कर मनुष्य को सचेत किया हो कि निरन्तर नई खोजों से चकाचौन्ध हुए तुम उसी शाखा को काटने में लगे हो जिस शाखा पर बैठे हो। प्रकृति की उसी गोद को छलनी कर रहे हो जिससे ही तुम्हारा अस्तित्व है। ख्याल करो उस धरा का जिसने तुम्हें जीवन दिया है। महत्व समझो उस शुद्ध वायु का जिसके बिना एक सांस भी सम्भव नहीं है, उस शुद्ध जल का जिसकी एक बूंद से नवांकुर प्रस्फुटित होता है। कीमत समझो तुम्हारे आसपास स्थित उस प्राकृतिक वातावरण की जिसके सम्मलित सहयोग से तुम जीवित हो।

मित्रों जीवन तभी सम्भव है जब तक प्रकृति में शुद्धता और सहयोग का भाव है। प्रकृति मूक जरूर है पर उसमें सन्तुलन का भाव निहित है। वह मनुष्य के असन्तुलित व्यवहारों को एक झटके में संतुलित करने की भरपूर क्षमता रखती है। नदी घाटी सभ्यताओं में भी कभी जीवन था। प्रकृति के एक झटके से सब इतिहास में बदल गया। समय रहते बदलाव जरूरी है वरना प्रकृति अपना संतुलन करना जानती है।

इस स्वतंत्रता दिवस को सार्थकता देने के लिए आओ आज प्रण लें प्रकृति के सरंक्षण का।  

प्रण लें प्राकृतिक संसाधनों के अनावश्यक दोहन को रोकने का।  

प्रण लें प्रकृति को पुनः परिपूर्ण बनाने का।

मित्रों, प्रकृति में शुद्धता ही हमारे जीवन का आधार है। आओ आज इसे बचाने का प्रण लें।


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