प्रिय
प्रिय
प्रिय लगाकर बोलूं तो तुम सुन लिया करना,
क्योंकि मुझे अभी तुम्हारा नाम पता नही करना,
मेरी तरह ही तुम भी कुछ सपने बुन लिया करना,
मैं अल्हड़ बेफिक्रा सा तुम समझदार सी लगती हो,
में अनसुलझी कविता हूं, तुम सुलझी सी पहेली हो,
प्रिय तुम्हारा नाम पता नही तुम खोई सी क्यों यू रहती हो,
लगता है तुम भी मुझे आंखों से कुछ कहती हो,
प्रिय तुम रोज सवेरे जब मेरी गली से यूं गुजरती हो,
तब तुमको देखने को मैं काम पर देर से जाता हूँ,
बिना तुम्हारा चेहरा देखे मैं तुमको कुछ यूं चाहता हूँ,
तुम्हारे चेहरे पर जो नकाब है उसको कभी हटाना मत,
तुम अपनी शोभा को कभी भी घटना मत,
प्रिय तुम भी मुझे ढूंढती हो न,
तभी मेरी गली से जाते समय मुझ पर निगाहें रोकती हो न,
में तुमको सिर्फ कविता मे लिखूंगा,
वादा रहा सामने से परेशान नही करूंगा,
तुम मेरी प्रेरणा हो मेरी कविता हो,
प्रिय।
