अजनबी
अजनबी


देर रात में निकल पड़ा अपनी मंज़िल पर मुझे कहीं पहुंचना था। मुझे रास्ते में बहुत डर लग रहा था। पर तब भी मैं नहीं रुका। रास्ता बहुत सुनसान था। मेरा अकेलापन मुझे बेचैन कर रहा था। पर मैंने हिम्मत नहीं हारी। मुझे चलते चलते एक इंसान दिखा पहले तो मैं उससे देखकर डर गया। पर मुझे सफर काटना था। और अकेला रास्ता बहुत लंबा लग रहा था। मैंने सोचा कि मुझे इस पर विश्वास करना चाहिए। जिस तरह जिंदगी में हम दोस्त बनाते है हालांकि होते वो पहले हमारे लिए अनजान है पर विश्वास ही है जो हमे अनजान से मित्र बनता है। धीरे धीरे हमने सफर काटा और वो अजनबी ना जाने कहाँ गायब हो गया। मुझे समझ आया वो मेरा अकेलापन था जिसने मेरा साथ दिया।