Rashmi Sinha

Classics Inspirational

4  

Rashmi Sinha

Classics Inspirational

परिवर्तन एक बयार

परिवर्तन एक बयार

4 mins
160


सात-सात भाइयों की इकलौती बहन थी प्रीति।

एक कुशाग्र बुद्धि की लड़की थी, और इंजीनियरिंग में उसका कैंपस प्लेसमेंट भी हो चुका था। एक अच्छे पैकेज के साथ।

अपनी पढ़ाई के दौरान ही वो विजातीय रोहित को अपने लिए पसंद कर चुकी थी। और दोनों ही परिवारों को इसमें कोई आपत्ति नही थी।

  पुरुष समाज को वो बचपन से ही देखती समझती आई थी। कुछ विचार उसके दिमाग मे पूरी तरह स्पष्ट थे। शादी में दहेज का तो सवाल ही नही था, पर उसने अपने माँ बाप से गहनों के लिए भी मना करते हुए कहा, उसे गहनों का शौक नही है, और जो लेना होगा अपनी ही कमाई से ले लेगी।

   गृहस्थी में भी रोहित के लाख समझाने पर भी, खर्चे का एक डिब्बा बना दिया था, जिसमे दोनों बराबर से पैसे डालते। कोई भी खर्च होने पर उसी से निकाल कर खर्च होता।

काम होने पर फिर दोनों ही उसमे डाल देते।

धीरे-धीरे रोहित को भी यही सही लगने लगा।

    बाकी के पैसों का न वो रोहित से पूछती,

और न ही रोहित उसके बैंक एकाउंट के बारे में।

वो स्वयं समर्थ थी, इंवेस्टमेंट्स की भी बाहर के समाज मे रहते पूरी जानकारी थी।

कभी-कभी रोहित से सलाह जरूर लेती, पर अंतिम निर्णय अपना ही रखती थी।

ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार वो अपने पापा,

चाचा, भाई, किसी भी पुरुष को करते देखते आई थी।

ये नही कि वो कोई गैर जिम्मेदार या बुरे पुरुष थे।

बस बरसो की आदत थी। पर प्रीति इस बदलाव को लाने के लिए कृत संकल्प थी।

धीरे धीरे उनके दो बच्चे भी हुए। एक बेटा व एक बेटी। उनकी पढ़ाई, व रहन सहन के खर्चे में भी प्रीति बराबर की हिस्सेदार थी।

 कभी ये रोहित को बुरा भी लगता, पर कोई भी परिवर्तन यूं ही नही स्वीकार कर लिया जाता,

उसे कुछ प्रारंभिक तकलीफों से गुजरना ही होता है।

और रोहित को भी इस व्यवस्था में सहजता महसूस होने लग गई थी।

पर अभी बहुत से इम्तेहान बाकी थे जो प्रीति को देखने थे। पहले उन्होंने एक फ्लैट लेने का निर्णय लिया। प्रीति को पता था क्या होना है, और वही हुआ। मकान की रजिस्ट्री में रोहित का नाम और नॉमिनी प्रीति।

उसने अपने चेहरे से, हाव भाव से जरा भी जाहिर नही होने दिया कि उसे ये बात खटकी थी।

उत्तर उसे पता था, " मैं किस के लिए मर खट के कमाता हूँ, मेरे बाद सब कुछ तो तुम्ही लोगों का है, आदि आदि---

देखा जाए तो इस संदर्भ में स्त्री से अधिक अधिकार विहीन कोई है ही नही। सब कुछ उसका, और कुछ नही उसका।

खैर! तरक्की के साथ साथ, बढ़ती तनख्वाह के कारण, प्रीति ने एक और फ्लैट बुक कर दिया

क्योंकि अब वो लोन चुकाने में सक्षम हो चुकी थी।

इस बार फ्लैट की रजिस्ट्री प्रीति के नाम थी।

घर जो स्त्री की सबसे बड़ी संपत्ति, वो उसके नाम---, ये विचार ही आनंददायक था।

कई बार वो अपने पिता, भाई आदि को ये धमकी देते सुन चुकी थी, कि निकल जाओ घर से, या जाओ अपने बाप के पास।

पर पिता का घर भी कब-----

एक और बाधा दूर हो चुकी थी, मानसिक रूप से सशक्त होने के कारण व्यवहार भी दोनों ओर से संतुलित ही था।

इस बीच पिता की मृत्यु का समाचार मिला।

पिता कोई वसीयत नही कर गए थे। स्त्री को सम्पति में अधिकार मिल चुका है ये बात सातों भाई भी जानते थे। स्त्रियां इस हक का भरपूर इस्तेमाल कर रही हैं, ये भी।

सो कुछ दिनों बाद ही उसके सामने ये कागज रख दिया गया, कि उसे पिता की संपत्ति में कोई हिस्सा नही चाहिए।

वाकई नही चाहिए था, सो हस्ताक्षर कर दिया

पर ताज्जुब तब हुआ, जब मां से भी इस आशय के कागज पर दस्तखत लिए गए ताकि मकान भाइयों के नाम हो सके।

वाह! क्या त्रासदी थी, जीते जी कुछ नही, और मरने के बाद सब तुम्हारा का दावा करने वाले

आके देखते तो सही, की 24 घंटे खटने वाली स्त्री

पहले पति और फिर किस तरह बेटों के आगे अधिकार विहीन होती रहती है।

उसे अब अगले कदम की तैयारी करनी थी।

बेटे बेटी की शादी कर चुकी थी, अपने बैंक में उसकी लाखों की बचत थी, मकान अपने नाम था ही।

बाकायदा वकील को बुलाकर, अपनी संपत्ति के दो हिस्से कराए, बेटे , बेटी के नाम??

जी नही बहू और बेटी के नाम, चल और अचल संपत्ति के बराबर हिस्से।

उसे महिला होने के नाते इस परिवर्तन की बयार को तो बहाना ही था। पहल वो कर चुकी थी।

और दृढ़ प्रतिज्ञ थी कि वो हर सर्विस करने वाली महिला के दिमाग मे ये बात डाल कर ही रहेगी।

बेटों को तो पिता का मिलना ही है। पर स्त्री की संपत्ति स्त्रियों को ही मिल कर रहेगी। उन्हें इस दिशा में भी सशक्त बनाकर।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Classics