परिपक्व रोमांस

परिपक्व रोमांस

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रचना बहुत सुंदर थी। साथ ही बहुत तेज तर्रार और सख्त बॉस भी। कम उम्र में ही वह एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काफी ऊंचे मुकाम पर पहुँच गयी थी। वह भारत कॉस्मेटिक्स कंपनी की वाइस प्रेसिडेंट थी। लंदन ,सिंगापुर दुबई में काम करने के बाद वह दिल्ली आयी थी। दिल्ली में कंपनी की तरफ से एक तीन बेडरूम वाला फ्लैट मिला था। यात्रा के लिए मर्सिडीज कार उपलब्ध थी। पिछले तीन साल से वह दिल्ली में रह रही थी।

इतनी सुंदर होने के बावजूद भय बस ऑफिस का कोई पुरुष उसकी ओर नज़र उठाने का साहस नहीं करता था। अधिकांश समय उसका ऑफिस में गुज़रता था। अतः उसे अपने सौंदर्य का आत्मबोध शेष न था । वह न कभी हँसती मुस्कराती न किसी से ज्यादा बात करती थी। उसकी उम्र तीस वर्ष हो गयी थी।

पुरुष प्रधान समाज में लड़की अधिक पढ़ लिख जाये तो भी उसके विवाह करने में समस्या होती है। उसके योग्य वर खोजना मुश्किल हो जाता है। कई बार लड़के वाले लड़के से ज्यादा काबिल वधू नहीं चाहते और अगर लड़की नौकरी पेशा है तो कुछ लालची इस बात को पक्की करना चाहते हैं लड़की की आय पर ससुराल वालो का हक होगा मायके वालों का नहीं। जब रचना के माता पिता ने उसके विवाह की कोशिश की तब जो अनुभव हुए उन्होने रचना को हैरान कर दिया। उसने घोषणा कर दी उसे अगले तीन चार साल शादी नहीं करनी है । घर वालों ने भी उसकी शादी की बात उसी पर छोड़ दी थी । उसके लिये उचित वर तलाशना शायद उनके बस में नहीं था । लेकिन रचना को कोई लड़का ऐसा नहीं मिला जिसे देख के उसके मन में जरा भी रोमांस पैदा हुआ हो। वह अपने कैरियर में रम गयी ।फिर उसके जीवन में राजन का प्रवेश हुआ । राजन पहले एक दूसरी कंपनी में काम करता था। वह उसे छोड़ कर इस कंपनी में आया था। वह एक केमिकल इंजीनियर था। रचना से एक पद कनिष्ठ चीफ़ मेनेजर रिसर्च एंड डेवलपमेंट बन के आया था। वह छह फीट लंबा सांवला, सुंदर नाक नख्श ,छरहरे बदन का एक आकर्षक युवक था । यूं तो रचना और राजन के कार्य क्षेत्र पृथक थे । किन्तु फ़ंड और पोलिसी से संबन्धित मसलों पर उसे रचना से सलाह और रचना को उससे सलाह लेना पड़ती थी ।

 राजन के सामने आते ही रचना एक दम बदल जाती थी। उसके चेहरे पर मुस्कान तैरने लगती। मुस्कराते हुए वह और भी सुंदर लगती। रचना को अच्छा लगता कि राजन उसे बेझिझक देखता था और उसकी निगाहों में उसे एक अलग आकर्षण महसूस होता था।

ऑफिस की कोई फाइल लेकर कभी राजन उसके कमरे में आता तो वह उसे बैठने को कह देती । राजन सामने बैठ जाता । वह जब तक फाइल पढ़ती राजन उसे देखता रहता । रचना को ये खयाल कि राजन उसे देख रहा है उसके बदन में एक आनंद दायक ऊष्मा का संचार करता था । कभी बातचीत करते हुए राजन की नज़र उसके चेहरे से फिसल कर उसके बदन को अनायास ही यहाँ वहाँ स्पर्श करती तो वह थोड़ी शर्मा जाती और उसका चेहरा गुलाबी हो जाता । ऑफिस स्टाफ ने भी रचना के व्यवहार में आये इस सुखद परिवर्तन को महसूस किया था ।

रचना बॉस के रूप में सख्त जरूर थी । उसका एक संवेदन शील मानवीय पहलू भी था । कर्मचारियों के कल्याण के लिये किये जाने वाले कार्यों मेँ वह काफी रुचि लेती । बहुत लोगों की आवश्यकता के समय उसने व्यक्तिगत रूप से चुपचाप मदद की थी । इस गुण के कारण लोग उसकी बातों का बुरा नहीं मानते थे और उसकी सख्ती काम के बारे होती थी । अच्छा कार्य करना कंपनी के हित मेँ था जो अप्रत्यक्ष रूप से कर्मचारियों के हित मेँ था क्योंकि उनको बढ़ा हुआ बोनस और अन्य लाभ प्राप्त होते थे ।

राजन को उसके इस पहलू से परिचित होने का भी मौका मिल गया। एक दिन ऑफिस बॉय के हाथ से काँच का एक ग्लास जमीन पर गिर कर टूट गया। लोग उस पर चिल्लाने लगे। घबराकर उसने हाथ से ही काँच बीनने की कोशिश की। काँच का एक टुकड़ा उसके हाथ में चुभ गया और खून बहने लगा। संयोग वश उसी समय रचना वहाँ आ गयीं। लोगो ने सोचा रचना बहुत नाराज होगी। नाराज़ होने की जगह रचना ने ऑफिस के ड्राइवर को बुलाकर कहा, “इसको कार से अस्पताल ले जाकर मरहम पट्टी करा देना और घर छोड़ देना।“

साथ ही उसने घायल लड़के को कुछ रुपए दिये और कहा, “आज तुम आराम करो। ठीक हो तो कल आना। राजन रचना के इस व्यवहार से खासा प्रभावित हुआ। 

राजन कुँवारा था और रचना के व्यक्तित्व से प्रभावित था । कुछ दिनों में ही वो उसे इतना पसंद करने लगा था कि वह सोचने लगा था काश ऐसी लड़की उसे विवाह के लिए मिल जाये। रचना भी कुंवारी थी फिर भी न जाने क्यों वह यह सोचने से बच रहा था कि रचना ही उसे पत्नी के रूप में मिल जाये।

रचना के मन में भी राजन के प्रति कुछ ऐसे ही खयाल उठने लगे थे।

किन्तु दोनों शायद अपने व्यावसायिक स्तर को परे नहीं कर पा रहे थे । साथ ही राजन रचना से एक वर्ष छोटा भी था।

ऑफिस की एक एकाउंटेंट चित्रा रचना के काफी करीब थी। उन्हें परस्पर मित्र समझा जा सकता था। उसने रचना से राजन के बारे में पूछा तो उसने स्वीकार किया राजन उसे अच्छा लगता है। उसने रचना से और गहराई से पूछा, “अगर राजन जैसा लड़का तुझे प्रपोस करे तो ?”

रचना ने हंस कर कहा, “तू जो जवाब सुनना चाहती है वही समझ ले।“ इसी तरह उसने एक दिन राजन से अचानक पूछ लिया, “राजन रचना के बारे में तुम्हारा क्या विचार है?”

राजन ने खुले मन से कहा, “बहुत सुंदर और उतनी ही बुद्धिमान। साथ ही सहृदय भी।”

चित्रा ने मज़ाक के अंदाज़ में पूछा, “मैं तुम्हारी तरफ से प्रस्ताव रखूँ या तुम स्वयं रचना को प्रपोस करोगे।”

राजन ने हँसते हुए कहा, “लगता है आज आपको मज़ाक करने के लिये कोई और नहीं मिला।“

चित्रा ने हँसते हुए कहा, “मज़ाक नहीं। वह भी कुंवारी है और तुम्हारी भी शादी नहीं हुई है। मेरे खयाल से तुम दोनों की जोड़ी बहुत अच्छी जमेगी। तुम तो ये बताओ बात कैसे आगे बढ़ेगी। तुम्हारे परिवार वालों से मिलना होगा या तुम स्वयं निर्णय ले सकते हो ?”

“प्रस्ताव तो मैं स्वयं ही रखना चाहूँगा किन्तु क्या रचना स्वीकार करेगी,” राजन ने कहा । 

चित्रा समझ गयी दोनों को अपने तुलनात्मक आर्थिक सामाजिक स्तर को लेकर संकोच है।

चित्रा ने सोचा, “जब स्त्री पीछे थी तो कमजोर स्थिति में थी। अब किसी स्त्री का उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ जाना भी क्या उसके सुखी जीवन के लिए बाधक होगा ?”

चित्रा ने कुछ उपाय करने का फैसला किया। उसने सोचा इन दोनों को ऑफिस से बाहर कहीं मिलना चाहिये जहाँ वे स्वतंत्र व्यक्तित्व हों। पदाधिकारी नहीं।

चित्रा ने ऑफिस के सभी लोगों को एक पिकनिक पर चलने के लिये तैयार किया। इनमें राजन और रचना भी शामिल थे।

सबने मिलकर इंडिया गेट जाने का कार्यक्रम बनाया। रविवार को सभी एक ए सी ट्रेवलर मेँ बैठ कर इंडिया गेट पहुँच गये। सभी शहर से वाकिफ थे अतः अपने छोटे छोटे समूह बनाकर यहाँ वहाँ घूमते रहे। फिर सभी खाने के लिये एक लॉन मेँ एकत्रित हुए। एक खाने के स्टॉल से खाना मंगाया गया। भोजनोपरांत लोग लॉन मेँ छाया तलाश कर विश्राम करने लगे। कुछ लोग ताश खेलने लगे। कुछ लेटकर विश्राम करने लगे। चित्रा बराबर राजन और रचना को नजदीक रखने का प्रयास करती रही। राजन और रचना जब बातचीत करने लगते वह किसी बहाने से अलग हट जाती। एक अवसर पर विवाह का विषय छेड़ कर वह अलग हट गयी।

रचना ने राजन से पूछ ही लिया, “आपने अभी तक विवाह क्यों नहीं किया ?”

राजन ने कहा, “कोई मनमाफिक लड़की मिली नहीं।”

रचना ने जिज्ञासा बस पूछा, “आपको ऐसी कैसी लड़की चाहिए जो अभी तक मिली नहीं।“

राजन ने कहा, “अब तो मिल गयी है।“

रचना के दिल मेँ हलचल हुई। उसने राजन के चेहरे की ओर देखा और पूछा, “फिर अब क्या देर है ?”

राजन ने कहा, “ अभी तक उससे इस विषय पर बात नहीं हुई। पता नहीं हाँ कहेगी कि न।”

रचना ने कहा, “कह डालिये। तभी तो हाँ या ना का पता चलेगा।”

राजन ने कहा, “आप ठीक कहतीं हैं। शीघ्र ही मैं उससे कहूँगा।”

पिकनिक के दौरान ही चित्रा ने रचना से स्टाफ के मोटिवेशन के लिये अगले दिन एक सेमिनार कराने का प्रस्ताव रखा । रचना ने हाँ कर दी। उसने सेमिनार के लिए प्रोफेसर अरुण पाठक और माला सक्सेना को आमंत्रित किया।

सेमिनार में प्रोफेसर अरुण ने कर्तव्य निर्वाह और पारिवारिक जीवन में संतुलन के तरीको पर बात की ।

प्रोफेसर माला सक्सेना ने कार्य क्षेत्र में स्त्री पुरुष की समानता पर बात की ।

चित्रा ने मालाजी से प्रश्न किया, “मेम विवाह में पुरुष का स्त्री से उम्र और आर्थिक स्तर ऊंचा होना आवश्यक है क्या।”

प्रोफेसर माला ने कहा, “कोई आवश्यक नहीं। अगर दोनों एक दूसरे के साथ सहज हैं और वास्तव में पुरुष और स्त्री एक दूसरे को बराबर का दर्जा देते हों तो ऐसे संबंध भी सफल हो सकते हैं।“

सेमिनार का असर अच्छा हुआ । राजन ने दूसरे दिन ऑफिस में ही रचना को विवाह के लिए प्रपोस किया और रचना ने स्वीकार कर लिया। रचना ने चित्रा को बता दिया। चित्रा ने तुरंत मिठाई मंगाकर पूरे स्टाफ को बांटी और खुशखबरी दी कि राजन और रचना जल्दी ही विवाह करेंगे। सबने उन्हें बधाई दी। सभी बहुत खुश थे । रचना और राजन ने चित्रा को विशेष धन्यवाद दिया । चित्रा ने एक बुजुर्ग की तरह आशीर्वाद दिया, “खुश रहो।” और प्रसन्न चित्त होकर हंस दी। 


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