परिपाटी
परिपाटी


मां के अंतिम संस्कार से निवृत्त हो शैलेंद्र घर के दरवाजे पर कदम रखते ही ठिठक गया। वह असमंजस में था घर में से उसका सामान आउट हाउस के बाहर कैसे आया। ''ये सामान यहां किसने रखा"? वह जोर से चिल्लाया
रोहित बाबा का नाम लेकर नौकर ने एक चिट्ठी उसे पकड़ा दी।
"पापा अपने गुस्से को पी लीजिए। मैंने सोचा, आप थके हारे आएंगे फिर अपना सामान आउटहाउस में रखवाएंगे। उससे अच्छा मैं ही रखवा देता हूं "" आपने जो परिपाटी शुरू की मैं उसी का अनुसरण कर रहा हूं।
पापा, रात रात भर दादी का खाँसते-खाँसते बिस्तर गीला करना, डॉक्टर को बुलाने के लिए गिड़गिड़ाना, आउटहाउस के बदबूदार, बंद कमरे में कैद उनकी लाचार बेबस आंखें ,मुझे रात रात भर सोने नहीं
देती थीं।
मुझे आज भी वह दिन भुलाए नहीं भूलता जब उन्हें खाँसी का दौरा उठा, वह पलंग से गिर गई असहाय सी उठने में असमर्थ
तभी आपको दौड़ते हुए अपने पास आता देखकर, उनकी निगाहों में एक उम्मीद की लहर और आंखों में चमक सी आ गई थी। यह सोच कर कि आखिर भावनात्मक जुड़ाव बेटे को उनके पास खींच ही लाया।
पर आपने क्या किया? तीर की तरह मुझे उनके पास से खींचकर घर में ले आए और उन्हें यह कहकर ""आप तो समझदार हैं "? चारदीवारी में कैद करवा दिया।
हर बार आपके रवैए ने उन्हें जीती जागती लाश में परिवर्तित होने,व जिंदगी को ढोने के लिए मजबूर कर दिया।
पापा,
जो बीज आपने बोया, पेड़ तो उसी का लगेगा ना ?