प्रेम केवल पूजने का सामान है?
प्रेम केवल पूजने का सामान है?
सुबह सुबह जब वीरेन लॉन में आकर बैठा और प्रकृति की अनुपम छटा का आनंद ले रहा था तो उसकी छोटी बहन सारिका चाय लेकर आ गई । दोनों धीरे धीरे चाय सिप करने लगे ।
सारिका के होंठों पर एक मधुर से गीत के बोल थे जिन्हें वह बहुत ही मंद मंद गुनगुना रही थी
"धीरे धीरे मचल ए दिल ए बेकरार , कोई आता है"
वीरेन का ध्यान अचानक सारिका की ओर गया । कितना बदल गई है यह लड़की ! चेहरे पर मुस्कराहट , खिलखिलाहट । आंखें जैसे सब कुछ कह देंगी । जीवन जैसे बह रहा हो उन आंखों में । अधरों पर एक मासूम सी मुस्कान जो किसी को भी बरबस अपनी ओर खींच ले । गालों पर पूर्णिमा के चांद की तरह चमक । भाव भंगिमा ऐसी कि जैसे वह किसी दूसरी दुनिया में रह रही हो ।
वीरेन ने दुनिया देखी है । सारिका वीरेन से पूरे दस साल छोटी है इसलिए वह उसे एक बेटी की तरह प्यार करता है । वह ज्यादा लाड़ में उसे "बेटा" कहकर ही बुलाता है । वीरेन को सारिका के बदले हुए कलेवर को देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ । एकांत पसंद लड़की , कम से कम शब्द बोलने वाली लड़की जिसे संगीत से प्रेम ना हो । बात बात पर चिढ़ जाने वाली, डांट डपट करने वाली लड़की इतनी खुश कैसे है ? बमुश्किल हंसने वाली लड़की के होंठों पर अब हरदम मुस्कान अठखेलियां करतीं हैं । आंखों से जैसे जीवन रूपी झरना बह रहा हो । वीरेन का माथा ठनका । कहीं इसे "वो" तो नहीं हो गया ?
वीरेन एक वकील है जिसका काम ही यही है कि जो बातें कोई बतलाना नहीं चाहे , उन्हें उगलवा कर सबके सामने रख देना । अपनी कला का नमूना दिखाते हुए उसने कहा
"क्या बात है , आजकल आमूल चूल परिवर्तन लग रहा है तुझमें। कौन है वो जिसने एक पत्थर की मूर्ति को बोलती हुई बांसुरी बना दिया है" ?
सारिका अचानक इस प्रश्न से घबरा गई । कुछ कहते नहीं बना तो खामोश ही रही । वीरेन ने आगे कुरेदा "अरे , हमें नहीं मिलवाओगी उस 'कृष्ण कन्हैया' से जिसने अपने प्यार का जादू ऐसा फूंका है कि पत्थर भी मुस्कुराने लगे हैं । पतझड़ में भी बहार आ गई है । सूखी नदी में बाढ़ आ रही है " ।
सारिका अपने बड़े भाई का बहुत आदर करती थी । वह जानती थी कि वह 'भाई' से झूठ नहीं बोल सकती है । इसलिए वह खामोश ही रही । तब वीरेन ने कहा
"सारिका , जिसने एक बेजान पत्थर में जान फूंक दी । एक रोती हुई गुड़िया के होंठों पर कभी न खत्म होने वाली हंसी सजा दी । जिसको संगीत से घृणा थी उसके बोलों में 'सरगम' घोल दिया । ऐसा जादूगर तो कोई निराले व्यक्तित्व का स्वामी ही होगा । अपने भाई को बताओगी नहीं उसके बारे में" ?
सारिका कुछ असमंजस में पड़ गई । बताए या ना बताए ? अपने 'भाई' से उसने आज तक कुछ नहीं छिपाया मगर इस राज में वह उन्हें 'राजदार' बनाना भी नहीं चाहती थी । लेकिन बताना तो पड़ेगा उसे । पर कितना बताएगी यह वह खुद तय करेगी । यह सोचकर उसे थोड़ा संबल मिला । उसने कहना आरंभ किया
"भाई, सच पूछो तो 'वो' इंसान नहीं हैं । ऐसा लगता है कि 'शिव' ही मनुष्य के वेश में धरती पर आ गए हैं । बहुत सम्मोहिनी शक्ति है उनके पास । उनकी हर बात में , हर काम में , हर अदा में एक जादू है । ये उसी जादू का कमाल है जिसने एक 'गूंगी गुड़िया' को बोलना सिखाया है । जिंदगी जीने का रास्ता दिखाया है । हर पल , हर परिस्थिति में कैसे खुश रहना है , ये सिखाया है । बस, ये जो परिवर्तन देख रहे हैं आप , ये उन्हीं की देन है" ।
वीरेन को यह जानकर बहुत अच्छा लगा कि सारिका किसी के साथ 'अफेयर' में है और वह इंसान कोई भी हो मगर ऐसे व्यक्तित्व का धनी है जिसने सारिका का कायाकल्प करके रख दिया है । सारिका कह भी रही है कि वह साक्षात 'शिव' हैं जो भेष बदलकर धरती पर आ गए हैं । इससे अच्छा और क्या हो सकता है उसके लिए , परिवार के लिए । सारिका का जीवन कितना खुशहाल हो जाएगा अगर वह 'पार्वती' बन जाए अपने 'शिव' की ! यह सोचकर वीरेन बोला
"फिर तो जल्दी से मिलवा दो हमें उन 'दैवीय महानुभाव' से जिससे हम उनसे विनती कर सकें कि हमारी पार्वती रूपी बहना के साथ दांपत्य जीवन गुजारें" ।
सारिका खामोश रही । वीरेन के ज्यादा पूछने पर बोली "भाई , हम आपसे झूठ नहीं बोल सकते हैं पर पूरा सत्य भी नहीं बता सकते हैं । बस, इतना जान लीजिए कि हम उन्हें बेहद प्यार करते हैं । अपनी जान से भी ज्यादा । और हमारे लिए इतना ही काफी है । उन्होंने अपने दिल के एक कोने में जरा सी जगह हमें दे दी है और हमारे लिए वह जरा सी जगह पूरी दुनिया से भी ज्यादा बड़ी है । हम उनके बारे में आपको कुछ नहीं बता सकते हैं । वो कौन हैं , क्या करते हैं , कहां रहते हैं ? बस , इतना समझ लीजिए कि वे हमारे 'शिव' हैं । हम उनकी पूजा करते हैं । रही बात दांपत्य जीवन की तो इस जन्म में ये संभव नहीं है । हम रोज हमारे प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि हमें इस योग्य बना दो प्रभु कि हम कम से कम अगले जन्म में तो उन्हें पा सकें । अगर अगले जन्म में भी नहीं पा सके तो हम तब तक जन्म लेते रहेंगे और 'शिवजी' से प्रार्थना करते रहेंगे जब तक कि 'वो' हमें मिल नहीं जाते" ।
इस उत्तर से वीरेन चिंतित हो गया । कौन ऐसा भाई है जो इस तरह की बात सुनकर चिंतित नहीं होगा ? उसने कहा "क्या उसने तुम्हें अपने जाल में फंसाया है " ?
सारिका की जोर से हंसी फूट पड़ी । "भाई , यह बात तुम अच्छी तरह जानते हो कि कोई भी व्यक्ति हमें फंसा नहीं सकते । यूं कहें कि हमने उन्हें फंसाया है उन्होंने नहीं तो ज्यादा मुफीद होगा " ।
"पर बेटा , ये जीवन बहुत बड़ा है । ऐसे कैसे कटेगा ये जीवन ? और फिर ये प्रेम कानूनन व सामाजिक रूप से मान्य नहीं है । तुम सबको क्या बताओगी " ?
सारिका के चेहरे पर दृढ़ता के भाव आ गए । बोली "दुनिया को ज़वाब देना आवश्यक नहीं है । वो जैसा समझना चाहे , समझे । जहां तक परिवार की बात है , मैंने जितना आपको बताया है उसके आधार पर आप मां और पिताजी को बता देना और उन्हें समझा भी देना । और यह भी बता देना कि सारिका को जितना बताना होता है, वह उतना ही बताती है , कम या ज्यादा नहीं । रही बात प्रेम के कानूनन और सामाजिक स्वीकार्यता की तो एक प्रश्न में आपसे पूछना चाहती हूं । बोलो , जवाब दोगे" ?
वीरेन को उससे यह उम्मीद नहीं थी कि वह उसे इस तरह घेर लेगी । अचकचाकर वह बोला "हां हां, क्यों नहीं ? पूछो क्या पूछना है" ?
"राधाकृष्ण के मंदिर में श्रीकृष्ण के साथ किसकी मूर्ति रहती है" ?
"राधा जी की" ?
"क्या राधा जी श्रीकृष्ण जी की पत्नी थीं" ?
वीरेन की बोलती बंद हो गई । वह क्या जवाब दे ? वह खामोश ही रहा । तब सारिका बोली
"प्रेम बड़ा होता है न कि रिश्ता । रुक्मिणी जी पत्नी थीं लेकिन पूजी राधा जी जातीं हैं ।अब आप कहेंगे कि वह बचपन का प्रेम था तो दूसरा उदाहरण देती हूं । मीरा जी की हम लोग पूजा करते हैं कि नहीं " ?
"करते हैं । बिल्कुल करते हैं" ।
"तो मीरा जी तो अपने विवाह के उपरांत भी श्रीकृष्ण को ही अपना पति मानती रहीं । फिर भी हम उनकी पूजा करते हैं । क्यों " ?
वीरेन के पास कोई जवाब नहीं था । तब सारिका बोली "भाई , हम इंसान भी कितना पाखंड करते हैं । एक तरफ तो मंदिर में राधा-कृष्ण की पूजा करके प्रेम की पूजा करते हैं लेकिन असल जिंदगी में जो लोग प्रेम करते हैं , उन्हें हम लोग तरह तरह से प्रताड़ित करते हैं । इसी तरह से हम लोग मीराबाई की भी पूजा करते हैं लेकिन अगर आज कोई औरत मीराबाई बन जाए तो उसे कुलटा , पतित और न जाने क्या क्या कहते हैं । अब मैं आपसे पूछती हूं "क्या प्रेम केवल पूजने का ही सामान है या असल जिंदगी में उसका भी कोई महत्व है " ?
वीरेन निरुत्तर हो गया । अगर आपके पास कोई जवाब हो तो दीजियेगा अवश्य ।