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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Classics Fantasy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Classics Fantasy

एक गलती

एक गलती

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🌺 एक गलती 🌺
🤪 चटपटा, मसालेदार हास्य–व्यंग्य 🤪
✍️ श्री हरि
🗓️ 20.12.2025


कहते हैं, गलती इंसान से होती है।
मैं कहता हूँ—गलती इंसान को ढूँढ़ती है।
उसे पता होता है कि कौन-सा आदमी आज आत्मविश्वास से भरा है, किसके चेहरे पर “आज सब ठीक रहेगा” वाली मासूम मुस्कान है। बस वहीं जाकर गलती पूरे ठाठ से प्रवेश करती है, जूते उतारती है और कहती है—
“चाय मिलेगी?”

मेरे जीवन में जो एक गलती हुई, वह इतनी साधारण थी कि अगर कोई और करता, तो कहानी ही न बनती। पर चूँकि वह गलती मैंने की थी, इसलिए उसका राष्ट्रीय महत्व हो गया।

दिन की शुरुआत ही जोश से हुई।
आईने में खुद को देखा—बाल ठीक, शर्ट प्रेस, आत्मा में आत्मविश्वास।
मैंने मन ही मन कहा—
“आज कुछ गलत नहीं होगा।”

यही वह वाक्य होता है,
जिसके बाद ब्रह्मांड नोटबुक खोलता है।

पहली गलती हुई नाश्ते की मेज़ पर।
पत्नी ने पूछा—
“कैसी लग रही हूँ?”
अब यह प्रश्न प्रश्न नहीं होता,
यह अग्निपरीक्षा होती है।
मुझे अनुभव था,
ज्ञान था,
इतिहास पढ़ा था।
फिर भी मैंने कहा—
“आज तो ठीक लग रही हो।”

बस।
यहीं से कहानी ने रफ्तार पकड़ी।
“ठीक?”
यह शब्द ऐसा होता है,
जैसे मिठाई में नमक पड़ जाए।

पत्नी बोली—
“मतलब और दिनों में खराब लगती हूँ?”
मैंने तुरंत सुधार की कोशिश की—
“नहीं, मेरा मतलब… आज कुछ अलग…”

पर गलती सुधारने की कोशिश
उसी तरह होती है,
जैसे गड्ढे में गिरकर
फावड़ा ढूँढ़ना।

घर से निकलते वक्त माहौल ठंडा था।
इतना ठंडा कि फ्रिज शर्मिंदा हो जाए।

ऑफिस पहुँचा।
सोचा—अब पेशेवर जीवन में शांति मिलेगी।
यही दूसरी गलती थी—
ऑफिस को शांति-स्थल समझना।

मीटिंग चल रही थी।
बॉस बोल रहे थे,
सब सिर हिला रहे थे—
जैसे गाड़ी के डैशबोर्ड पर लगे हुलते खिलौने।
मैं भी सिर हिला रहा था।
अचानक बॉस ने पूछा—
“आप क्या सोचते हैं?”
अब यहाँ तीसरी गलती हुई—
सच बोलना।
मैंने कहा—
“सर, यह योजना ज़मीनी हकीकत से थोड़ी अलग है।”

इतना कहना था कि
मीटिंग का तापमान बढ़ गया।
बॉस मुस्कुराए—
वही मुस्कान,
जो साँप काटने से पहले देता है।

उन्होंने कहा—
“अच्छा, आप बाद में मिलिए।”
“बाद में मिलिए”
कॉर्पोरेट भाषा में
“राम नाम सत्य है” जैसा होता है।

दोपहर तक आत्मविश्वास का सूप बन चुका था।
मैंने सोचा—
अब घर जाकर शांति मिलेगी।

यही चौथी गलती थी।


घर पहुँचा तो सासू माँ आई हुई थीं।
टीवी चल रहा था।
न्यूज़ चैनल चिल्ला रहा था।
मैंने रिमोट उठाया और बोला—
“माँ, ये न्यूज़ चैनल तो बस दिमाग खराब करते हैं।”

बस।
इतिहास में दर्ज हो गया।
सासू माँ ने चश्मा ठीक किया और बोलीं—
“तो तू क्या करता है?”

अब आदमी समझता है
कि उसने
राजनीति, पत्रकारिता और संस्कार—
तीनों पर एक साथ हमला कर दिया है।

शाम को सब्ज़ी बनी।
पत्नी ने पूछा—
“कैसी बनी है?”
आज मैंने तय किया था—
सच नहीं बोलूँगा।
मैंने कहा—
“अलग है।”

गलती फिर हो गई।
“अलग मतलब?”
अब मैंने कूटनीति अपनाई—
“हर बार से बेहतर।”

पत्नी बोली—
“मतलब पहले खराब बनाती थी?”
मैंने अंदर ही अंदर स्वीकार किया—
गलती अब आदत बन चुकी है।

रात को मोबाइल खोला।
सोशल मीडिया पर ज्ञान बाँटने का मन किया।
यह पाँचवीं और सबसे घातक गलती थी।

मैंने स्टेटस डाला—
“कुछ लोग बिना बोले ही बहुत कुछ बोल जाते हैं।”
अब आप समझ ही गए होंगे—
पत्नी ने इसे व्यक्तिगत ले लिया।
उन्होंने कुछ नहीं कहा।
बस मोबाइल रखा और बोलीं—
“ठीक है।”

यह “ठीक है”


दुनिया का सबसे ख़तरनाक वाक्य होता है।

रात में नींद नहीं आई।
मैं सोचता रहा—
एक ही दिन में
इतनी सारी गलतियाँ!

सुबह उठा तो सब सामान्य था।
चाय मिली,
अख़बार मिला,
कोई ताना नहीं।
तभी समझ आया—
गलती जीवन का मसाला है।
कम हो तो जीवन फीका,
ज़्यादा हो तो सीधा अस्पताल।

और सबसे बड़ी सीख यह—
गलती होना बुरा नहीं,
पर यह सोचना कि
“अब और नहीं होगी”—
यही सबसे बड़ी गलती है। 😄


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