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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Tragedy Inspirational Thriller

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Tragedy Inspirational Thriller

वारिस

वारिस

7 mins
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🌺 वारिस 🌺
 ✍️ श्री हरि
 🗓️ 19.12.2025

 ठाकुर राम सिंह की हवेली में उस शाम खुशियों का समंदर उमड़ रहा था। गांव के सबसे अमीर और प्रभावशाली ठाकुर साहब का इकलौता बेटा सदानंद सिंह शादी के बंधन में बंध रहा था। दुल्हन माधवी थी—एक गरीब घर की लड़की, लेकिन इतनी सुंदर कि चांद भी शर्मा जाए। उसके लंबे काले बाल, बड़ी-बड़ी आंखें और गोरा चेहरा देखकर कोई भी मोहित हो जाता। शादी धूमधाम से हुई। बैंड-बाजे की धुनों में, आतिशबाजियों की चमक में, और मेहमानों की दुआओं में। ठाकुर साहब की पत्नी, ठकुराइन, ने माधवी को अपनी बेटी की तरह सजाया था। सदानंद, लंबा-चौड़ा जवान, शेर जैसी आंखों वाला, बारात लेकर आया और माधवी को अपनी दुल्हन बना लिया। रात हो चुकी थी। हवेली की रोशनी से पूरा आंगन जगमगा रहा था। माधवी अपने कमरे में दुल्हन के जोड़े में पलंग पर बैठी थी। लाल जोड़ा, सोने के गहने, और घूंघट से झांकती उसकी आंखें बेचैनी से दरवाजे की ओर देख रही थीं। दिल की धड़कनें तेज थीं—शादी की रस्में पूरी हो चुकी थीं, अब सुहागरात थी। तभी दरवाजा खुला और ठकुराइन अंदर आईं। उनके हाथ में दो गिलास केसर वाला दूध था। "बहू, ये लो। एक गिलास पी लो, और दूसरा सदानंद को पिला देना। शुभ होता है," ठकुराइन ने मुस्कुराते हुए कहा। माधवी ने शर्म से सिर झुका लिया और एक गिलास पी लिया। ठकुराइन ने दूसरा गिलास मेज पर रख दिया और चली गईं। माधवी का इंतजार बढ़ता जा रहा था। आखिरकार, दरवाजा फिर खुला। सदानंद अंदर आया—शेरवानी में और भी आकर्षक लग रहा था। माधवी ने शर्म से आंखें नीची कर लीं। "ये लो, सासू मां का हुक्म है। पीना पड़ेगा," उसने धीरे से कहा और गिलास सदानंद की ओर बढ़ा दिया। सदानंद ने हंसते हुए गिलास लिया और एक घूंट में पी लिया। फिर, वह माधवी के पास बैठा और धीरे से उसका घूंघट उठाया। माधवी का खूबसूरत चेहरा देखकर सदानंद की आंखें चमक उठीं। "तेरी आंखों में समंदर है, जिसमें डूबना चाहता हूं मैं। तेरे होंठों की मिठास से, जीवन की हर कड़वाहट भूल जाऊं मैं," सदानंद ने शायरी सुनाई, उसकी आवाज में प्यार की मिठास थी। माधवी लजा गई, लेकिन उसकी आंखों में भी प्यार उमड़ आया। दोनों एक-दूसरे की बाहों में खो गए। बातें, हंसी, स्पर्श—सब कुछ इतना जादुई था कि कब रात बीती और कब दोनों सो गए, पता ही नहीं चला। सुबह की पहली किरण ने उन्हें जगाया, और माधवी को लगा कि उसका जीवन अब सुखों से भर गया है। दिन गुजरने लगे। हवेली में माधवी अब बहू बनकर रहने लगी। ठाकुर साहब और ठकुराइन उसे बेटी की तरह मानते। सदानंद का प्यार भी कम नहीं था—वह उसे हर पल महसूस कराती। लेकिन एक छाया थी जो माधवी को अक्सर सहमा देती। ठाकुर साहब का नौकर सुरेश—जवान, मजबूत कद-काठी वाला। वह माधवी को अजीब निगाहों से देखता। जैसे उसकी आंखें माधवी के शरीर को छू रही हों। माधवी जब भी अकेली होती, सुरेश की वो नजरें उसे डरातीं। एक दिन वह सहन न कर सकी और सदानंद से शिकायत कर दी। "सदानंद जी, वो सुरेश... वो मुझे अजीब तरीके से देखता है। मैं सहम जाती हूं," माधवी ने कांपते स्वर में कहा। सदानंद का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। वह बाहर निकला और सुरेश को पकड़ लिया। "कमीने, तू मेरी बीवी को ऐसी नजरों से देखता है?" कहकर सदानंद ने सुरेश की पिटाई शुरू कर दी। लातें, घूंसे—सुरेश बुरी तरह पीटा गया। माधवी को देखकर बुरा लगा। "बस करो, उसे छोड़ दो," उसने सदानंद को रोका। सुरेश पिटकर भी शांत रहा, मुस्कुराया और काम पर लग गया। लेकिन अगले दिन फिर वही—उसकी नजरें माधवी पर। माधवी फिर सहम गई, लेकिन इस बार चुप रही। समय बीतता गया। एक महीने बाद खुशखबरी आई—माधवी गर्भवती थी। हवेली में जश्न का माहौल। ठाकुर साहब ने डॉक्टर बुलवाए, ठकुराइन ने माधवी का हर तरह से ख्याल रखा। फल, दूध, आराम—सब कुछ। माधवी खुश थी, सदानंद भी। ठीक समय पर बच्चा हुआ—एक प्यारा सा लड़का। नाम रखा गया गजानंद सिंह। मुन्ना कहकर पुकारते सब। बच्चा बड़ा होने लगा, हवेली में उसकी किलकारियां गूंजने लगीं। माधवी की जिंदगी अब पूरी लग रही थी—पति, बच्चा, सास-ससुर का प्यार। लेकिन एक रात सब बदल गया। माधवी की नींद अचानक खुली। पलंग पर सदानंद नहीं था। दिल घबरा गया। वह उठी और कमरे से बाहर निकली। हवेली की लंबी गलियां, आंगन—सब जगह ढूंढा। उसकी पायल की छन-छन से ठकुराइन जाग गईं। "बहू, क्या हुआ? इतनी रात में किसे ढूंढ रही हो?" ठकुराइन ने पूछा। "सासू मां, सदानंद जी पलंग पर नहीं हैं। कहीं दिखाई नहीं दे रहे," माधवी ने डरते हुए कहा। ठकुराइन ने मुस्कुराकर कहा, "अरे, उसे नींद में चलने की आदत है। कभी-कभी ऐसा करता है। अभी आता होगा।" माधवी थोड़ी राहत महसूस करके कमरे में लौटी। और वहां सदानंद पलंग पर लेटा सो रहा था। "कहां चले गए थे?" माधवी ने पूछा, लेकिन सदानंद सो चुका था। माधवी उससे लिपटकर सो गई, लेकिन मन में एक अजीब सी बेचैनी रह गई। दिनों बाद माधवी उदास बैठी थी। ठकुराइन कमरे में आईं। "क्या बात है बहू? उदास क्यों हो?" माधवी ने मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन वो बनावटी थी। "बताओ बेटी, मुझे नहीं बताओगी?" ठकुराइन ने प्यार से पूछा। माधवी लजाते हुए बोली, "मुझे लगता है कि वो अब मुझे पहले की तरह प्यार नहीं करते।" ठकुराइन चिंतित हो गईं। "क्या रात में वो तुम्हारे साथ..." माधवी की आंखों में आंसू आ गए। "रात में देर से आते हैं, चुपचाप सो जाते हैं। बस यही काम रह गया है उनका।" ठकुराइन गंभीर हो गईं, लेकिन कुछ न बोलीं। एक सप्ताह बाद ठाकुर साहब, ठकुराइन और सदानंद किसी काम से बाहर चले गए। घर पर माधवी और मुन्ना अकेले थे, सुरेश नौकर के रूप में था। रात आधी हो चुकी थी। मुन्ना पालने में सो रहा था। अचानक दरवाजा खुला। सुरेश अंदर घुसा। उसकी आंखों में वहशीपन था। "नहीं... जाओ यहां से!" माधवी चीखी, लेकिन सुरेश ने उसे दबोच लिया। जोर-जबरदस्ती... माधवी विरोध करती रही, लेकिन सुरेश कामयाब हो गया। माधवी टूट गई, उसकी दुनिया उजड़ गई। अगले दिन परिवार लौटा। माधवी रो-रोकर सब बता दिया। "सुरेश ने... रात में... बलात्कार किया।" ठाकुर साहब और सदानंद ने सुरेश को बुरी तरह पीटा और घर से निकाल दिया। ठाकुर साहब बोले, "बहू, इस मामले को यहीं रफा-दफा कर दो। पुलिस में रिपोर्ट से खानदान की बदनामी होगी।" माधवी मान गई, लेकिन अंदर से टूट चुकी थी। इसके बाद ठकुराइन माधवी से परिवार की कहानियां सुनाने लगीं। "हमारे खानदान की औरतें कितनी पवित्र हैं। ठाकुर साहब की बुआ को किसी ने छेड़ा तो ठाकुर साहब ने उसे गोली मारी, लेकिन बुआ ने शर्म से आत्महत्या कर ली।" फिर अपनी मैके की बात। "मेरी भाभी के साथ बलात्कार का प्रयास हुआ, तो उन्होंने आत्महत्या कर ली। ठाकुर खानदान की बेटियां-बहुएं दूषित होकर जी नहीं सकतीं।" माधवी को लगा, वह भी दूषित हो गई है। जीने का क्या फायदा? एक दिन उसने सुसाइड नोट लिखा— "मैं दूषित हो गई हूं। मुन्ना का ख्याल रखना।" और फांसी लगा ली। पुलिस आई, पोस्टमार्टम हुआ। आत्महत्या मानकर मामला बंद। हवेली में शोक छा गया। थोड़े दिन बाद सुरेश वापस आया। ठाकुर साहब, ठकुराइन, सदानंद और सुरेश कमरे में बैठे हंस रहे थे। सदानंद बोला, "बेचारी माधवी, हमारे षड्यंत्र का शिकार हो गई।" ठकुराइन ने कहा, "लेकिन वारिस दे गई, ये अच्छी बात है।" ठाकुर साहब बोले, "इस वारिस के लिए हमने क्या-क्या नहीं किया? अगर तुमने दूध में नींद की दवा न मिलाई होती, तो सदानंद की जगह मैं कैसे लेता? सदानंद तो गे है, उसे लड़कियों में कोई इंटरेस्ट नहीं। वो और सुरेश दोनों गे हैं। खानदान को आगे बढ़ाने के लिए मुझे ही आगे आना पड़ा। शुक्र है, मुन्ना मेरा बेटा है, वरना गोद लेना पड़ता।" सुरेश बोला, "हुक्म, आपने बहू रानी का बलात्कार मुझसे ही क्यों करवाया?" ठकुराइन बोली, "अगर बलात्कार न होता, तो वो आत्महत्या क्यों करती? उसे उकसाने के लिए ही मैंने झूठी कहानियां सुनाईं। सब हो गया, किसी को शक नहीं।" ठाकुर साहब हंसते हुए बोले, "एक वारिस के लिए लोग क्या-क्या जतन करते हैं!" हवेली में अब मुन्ना की किलकारियां गूंजतीं, लेकिन माधवी की आत्मा शायद रो रही होती। वारिस मिल गया था, लेकिन किस कीमत पर?


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