प्रेम का तीसरा आयाम
प्रेम का तीसरा आयाम
" नमस्ते डा॰ साहिबा, मैं अंदर आ जाऊँ ?"
" हाँ जी, तो आप हैं,,, मिसेज मेहरा? आइए, बैठिए! ग्यारह बजे का appointment है आपका?" डाॅ सुषमा टेबल पर खुली हुई फाइल में से पेशेन्ट का नाम पढ़कर बोली।
" जी, पर मिसेज मेहरा मैं पहले थी, अब अंकिता भार्गव हूँ!"
" ओह, अच्छा! तो बताइए मिस भार्गव आप किसलिए एक psychiatrist से मिलना चाहती थी?"
" जी, मैं तो नहीं, परंतु मेरी भतीजी पिया चाहती थी कि मैं आपसे मिलूँ। उसी ने मेरा आपके साथ appointment करवाया है!"
" ठीक है, परंतु आपकी समस्या क्या है ? "
" मैंने अपनी पति की दूसरी शादी करवा दी। वीरेन की शादी का wedding planner भी मैं ही थी! "
" क्क्कया? !!" डाॅ॰ सुषमा अपने कानों पर यकीन न कर पाई!
और आश्चर्य के मारे वह अपनी कुर्सी पर उछलकर खड़ी हो गई!
डाॅ सुषमा को अपने पूरे कैरियर में कई अलग- अलग किस्म के पागलों से पाला पड़ा था। परंतु उन्होंने किसी को ऐसा कहते हुए अथवा करते हुए न देखा था कभी!
क्या कोई भारतीय पत्नी अपने पति की दूसरी शादी करवाकर भी इतनी निर्लिप्त रह सकती हैं?
डाॅक्टर साहिबा को यूँ आश्चर्यचकित देखकर अंकिता बोली,
" मेरी भतीजी भी आपकी तरह ही सोचती है कि मैं बिलकुल नार्मल नहीं हूँ, तभी तो उसने मुझे आपके पास भेजा है!"
डाॅ सुषमा ने टेबल पर रखे काँच के गिलास में से दो घूँट पानी पिया,तब जाकर वे थोड़ा नाॅर्मल महसूस करी! उनके पति सहा ही कहा करते हैं,
"रात- दिन इन पागलों के साथ रहकर तुम भी एकदिन पागला जाओगी!"
" तो अंकिता जी, कृपया पूरी बात बताइए! तभी मैं आपका ट्रीटमेन्ट कर पाऊँगी! अच्छा आपकी उम्र कितनी होगी?"
" जी, 46 वर्ष"
" कोई बाल बच्चा?"
" जी नहीं!"
" फिर कब आपने अपनी पति की शादी करवाई, और क्यों?"
" जी, पिछले महीने! जब मेरे लाए हुए तलाकनामे पर उन्होंने दस्तखत कर दिया था। उसके अगले दिन ही मैंने उन दोनों की कोर्ट मैरिज करवा दी!"
" किससे? और क्यों?!!"
" मेरे पति, वीरेन का, पिछले चार- पाँच महीनों से, सुनंदा नामक एक खूबसूरत लड़की से अफेयर चल रहा था। परंतु वीरेन इसलिए मुझे कह नहीं पा रहे थे कि यह जानकर मुझे बहुत तकलीफ होगी!"
" आपको यह सब फिर कैसे पता चला?"
" मेरी सहेली सुचरिता सुनंदा के दफ्तर में काम करती है। उसी ने मुझसे कहा!"
" ओह, तो क्या आप अपने पति से प्यार नहीं करती थी?"
" जी नहीं, बहुत प्यार करती थी और अब भी करती हूँ। हमारी तो लव मैरिज हुई थी। "
" तो फिर आपने उनसे रिश्ता क्यों तोड़ दिया?"
" मेरे पति मुझसे दो साल बड़े हैं। हमें काॅलेज में एक दूसरे से प्रेम हो गया था! अब हमारी शादी को बीस वर्ष हो चुके थे! मैं अपने पति को बहुत चाहती हूँ। वे ही मेरी समूची दुनिया हैं! उनके अलावा मैं किसी और पुरुष की कल्पना भी नहीं कर सकती!"
"और मेरे पति भी मुझे बहुत पसंद करते थे। परंतु, फिर भी, वे दूसरी बार प्यार कर बैठे। होता है,ऐसा अक्सर! ,बहुत स्वाभाविक है!! इसी को शायद midlife crisis कहते हैं!"
" ऐसा होता है, मानती हूँ ,,, परंतु आपने इसे मान कैसे लिया? आपको कभी यह सोच कर तकलीफ नहीं हुई कि आपके साथ उन्होंने छल किया है!" डाॅ॰ सुषमा बोली!
" एक बार भी नहीं लगा! मैं अपने पति को बहुत अच्छे से जानती हूँ। वे बहुत सज्जन और ईमानदार व्यक्ति हैं। और जहाँ तक इश्क का सवाल है, वह तो हो जाता-- कभी भी, कहीं भी,,, किसी के भी साथ हो सकता है! उनकी जगह पर यदि मुझे हो जाता तो? फिर,,, आप क्या कहते?"
"शुरु में मुझे भी बहुत बुरा लगा!! फिर मैंने जब खुद को उनकी जगह पर रख कर देखा तो सब समझ आ गया!! तभी महसूस कर सकी कि मेरे पति को सच में सुनंदा की जरूरत है! मेरे पति की खुशी से बड़ी कोई भी चीज़ मेरे लिए मायने नहीं रखती!"
" डाॅक्टर आप यकीन कीजिए,, वे दोनों सच में एक दूसरे को बहुत चाहते हैं! और सुनंदा तो उनके बच्चे की माँ बनने वाली है।"
" हमारी कोई औलाद नहीं है। शायद यही एक कमीं हमारे रिश्तें में थी कि मैं उनको अपना वारिस न दे सकीं! इसी कमीं के कारण --- शायद उनको फिर से प्यार हो गया!"
डाॅ॰ सुषमा बड़ी ध्यान से अपनी पेशेन्ट की बातें सुन रही थी। साथ ही उनका चेहरा भी पढ़ने की कोशिश कर रही थी। अंकिता के चेहरे पर दुःख की रेखाएँ उभरते देख कर वे आश्वस्त हुई। साथ ही उसे बहुत हैरानी भी हुई। यह आम केस जैसा न था।
" अब आप क्या करेंगी, अंकिता?"
" जी, मैं एक बच्चों के स्कूल में पढ़ाती हूँ । उससे मेरा काम चल जाता है! मेरे पति ने, मेरे लाख मना करने पर भी, तलाक के समय अपना घर मेरे नाम पर कर दिया है और खुद अपनी दुल्हन को लेकर किराए के घर पर रहने चले गए!"
"मेरी भतीजी आजकल मेरे साथ रहती है!
सो, मुझे आर्थिक या सामाजिक रूप से कोई परेशानी नहीं है!"
थोड़ी देर तक कमरे में सुई पटक सन्नाटा पसर गया था!
फिर अंकिता ने अपने प्रश्न को दोहराया--
" डाॅक्टर क्या आपको भी लगता है, कि मैं abnormal हूँ!"
जवाब में डाॅ सुषमा ने उन्हें एक बड़ी सी स्माइल दी और बोली--
" बिलकुल भी नहीं! बल्कि आप एक सशक्त और स्वतंत्र ख्यालों वाली महिला हैं! आपके जैसा, प्रेम के खातिर यूँ बलिदान, बहुत कम लोग ही कर पाते है। आपके लिए यह मायने नहीं रखता कि आप समाज द्वारा साँचे में फिट होते हैं अथवा नहीं,,, परंतु
इंसानीयत के नाते आपका स्थान बहुत ऊँचा है। आपने प्रेम की सर्वोच्च मिसाल कायम की है!"
" आप को किसी चीज़ की जरूरत नहीं है। कुछ गोलियाँ लिख रही हूँ, यह आपकी तंत्रिकाओं को ज़रा आराम देंगे। उन्हें लेते रहिए और ज्यादा सोचिए मत!
"गुड डे !"
अकेले में डाॅक्टर सुषमा सोचने लगी कि त्याग, तपस्या और समर्पण-- प्रेम के दरअसल यही तीन आयाम तो होते है ! परंतु स्वार्थवश हमारी नज़र हमेशा उसकी प्राप्ति पर होती है!

