सीमा शर्मा पाठक सृजिता

Romance

3.4  

सीमा शर्मा पाठक सृजिता

Romance

परदेशी बाबू

परदेशी बाबू

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395


"कब तक बाट निहारती रहेगी? कह दिया है हमने, नहीं आयेगा वो, शादी की उमर निकली जा रही है, बिना दहेज के अमित शादी करने के लिए तैयार है, अच्छा लड़का है हां कर दे बिटिया। मान भी जा, ऐसे न जाने कितने मुसाफिर मिलते हैं जो सपने दिखा देते हैं मगर कभी पूरे नहीं करने आते।" देवकी ने नैना से कहा।

"मुझसे अच्छा लड़का नहीं मिलेगा तुम्हें नैना, रानी बनाकर रखूंगा अपनी। वैसे तो हजारों लड़कियां मरती है मुझ पर लेकिन मेरा दिल है कि तुझ पर ही आया है। तेरे ये काले नैनों ने कब मुझे तेरा बना दिया पता ही नहीं चला। तू बस एक बार हां कर दे मैं बारात लेकर फौरन तेरे घर आ जाऊंगा। "

अमित ने कहा।


अमित नैना के गांव के पास वाले गांव में रहता था और नैना से शादी करना चाहता था। मगर नैना तो अपने परदेशी बाबू के प्रेम में दीवानी बनी फिर रही थी, उसे अमित फूटी कौडी़ नहीं सुहाता था। अमित की बात सुनकर झल्लाते हुये नैना ने कहा - "तुम अपने काम से काम रखा करो अमित, कह दिया है ना हमें नहीं करनी तुमसे शादी, अभी नहीं कभी नहीं। जाओ तुम यहां से और कर लो उन्हीं लड़कियों में से किसी से शादी जो मरती हैं तुम पर। परदेशी बाबू आये न आये मगर हम किसी से भी शादी नहीं करेंगे। "

नैना की बात सुनकर अमित तो चला गया लेकिन जैसे ही मां उसे समझाने लगी तो नैना आंखें नम करते हुये बोली -

"मां लौट आयेंगे वो जानते हैं हम उनको, बस कुछ समय और दे दो हमें। अमित से मना कर दो, हमें शादी नहीं करनी। कहा था परदेशी बाबू ने वो आयेंगे हमें लेने बस नौकरी लग जाये उनकी।" और कहते हुये ऊपर छत पर चली गई।

रोज शाम को घंटों सड़क पर आने जाने वाली बसों की तरफ देखती रहती। उसे हर दिन लगता आज लौट आयेगा वो परदेशी जो सजाकर गया है बहुत सुन्दर सुन्दर सपने उसकी आंखों में। जिसने सिखाया है उसे मौहब्बत करना, सपने सजाना, दुनिया बहुत अच्छी है इसका उदाहरण बन जाना और उसकी मुसीबत में अनजान होते हुये भी उसका साथ देना।

दो साल पहले बहुत तबीयत खराब हो गई थी बाबा की, नैना बाबा को अकेले ही ले गई थी शहर दवा दिलवाने। कुछ जानती नहीं थी शहर के बारे में मगर अकेली ही निकल पड़ी थी सफर पर, बाबा के इलाज के अलावा कुछ नजर कहां आ रहा था उसे। शहर जाने वाली बस में ही मिला था एक मुसाफिर की तरह। आकाश नाम था उसका। नैना और बाबा से बातें करता रहा। बातों ही बातों में नैना ने बताया कि उसे नहीं पता शहर में कौन सा अस्पताल अच्छा है तो आकाश ने कहा था वह मदद करेगा अच्छे हॉस्पीटल पहुंचाने में। आकाश अनजान होकर भी अपने सफर को छोड़ चल दिया था नैना के बाबा को दवा दिलाने। डा. से मिलकर टैस्ट कराने के बाद पता चला नैना के बाबा की हालत बहुत खराब है उन्हें जल्द ही भर्ती करना पड़ेगा और खून भी चढ़ाना होगा। बड़ी ही निस्वार्थ भावना से बिन कहे ही बाबा को अपना खून तक दे दिया था। आकाश की अच्छाई का असर नैना पर इस कदर हुई कि दिल दे बैठी वह उसे। 3 दिन रहे वो लोग अस्पताल में और आकाश उन्हें एक पल छोड़कर नहीं गया। उन तीन दिनों में दोनों की धड़कनें कब एक हो गई पता ही नहीं चला।

आकाश ने कहा था -पहली नजर में ही उसे प्यार हो गया था उससे और अब उसने फैसला किया है कि वह नैना के अलावा किसी को अपना दिल नहीं देगा और बहुत जल्द उसे अपनी दुल्हन बनाकर ले जायेगा।

नैना और बाबा को बस में बिठाकर , 1 महीने की दवा दिलाकर और वादा करके कि बहुत जल्द लौट आयेगा वह नैना को हमेशा के लिए अपने साथ ले जाने के लिए, विदा किया था आकाश ने। नैना भी चली आई नैनों में हजार सपने लेकर। तब से अब तक नैना इंतजार कर रही थी अपने परदेशी का ताकि वह आये और उसे ले जाये अपनी दुल्हन बनाकर। कई बार शहर बाबा की दवा लेने भी गई मगर उसे आकाश नहीं मिला। ना उसका पता था, नाहीं कोई फोन न. बस एक वादा था जो उसने हाथ थामकर कहा था।

नैना के बाबा भी चले गये उसे हमेशा के लिए छोड़कर अब गांव वाले और मां सब उस पर शादी करने के लिए दबाव बनाने लगे लेकिन नैना का दिल कहता था आकाश आयेगा उसे लेने। जो विश्वास, प्रेम और सच्चाई नैना ने उसकी आंखों में देखी थी उसे पूरा यकीन था वह जरूर आयेगा।

वक्त बीतता गया। एक दिन नैना गांव में नदी किनारे अपनी सहेली के साथ बैठी हुई थी और खोई थी अपने परदेशी के ख्यालों में। तभी एक छोटी लड़की आई और बोली,

"जीजी तुम्हारे घर कोई आया है अम्मा ने कहा है परदेशी बाबू आया है नैना को बुला ला।"

छुटकी की बात सुनकर नैना की धड़कनें तेज हो गई और वह घर की तरफ दौड़ने लगी। घर पहुंची तो देखा, फौजी के कपड़ों में खाट पर बैठा है उसका परदेशी बाबू और अम्मा चाय बना रही है।

आकाश को देखते ही नैना की सांसे रूक गई और आँखों से झर झर आंसू बहने लगे। आकाश की नजर जब नैना पर पड़ी तो उसका दिल भी जोरों से धड़कनें लगा। दोनों ने नजरों ही नजरों में दिल की सब दासतां सुना दी। मां ने देखा तो आवाज लगा दी,

आ गये तेरे परदेशी बाबू, तू सच कहती थी नैना, अब कोने में क्यों खाड़ी है पास आजा।

नैना के घर कोई फौजी आया है ये देखने घर के आसपास भीड़ इकट्ठी होने लगी। काफी देर नैना से निगाहों से बातें करने के बाद आकाश बोला,

"बहुत इंतजार कराया ना तुमसे, माफ कर दो, भारत मां की सेवा में लगा था, छुट्टी ही नहीं मिली। अब आया हूं पूरे एक महीने की छुट्टी पर अब तो तुम्हें दुल्हन बनाकर ही ले जाऊंगा हमेशा के लिए अपने साथ।"

नैना बिन कुछ कहे बस देखती रही अपने परदेशी बाबू को.. जो एक वीर सिपाही भी था। नैना के दिल में आकाश के लिए सम्मान और मुहब्बत और भी ज्यादा बढ़ गई और थाम लिया अपने परदेशी बाबू का हाथ... कभी न छोड़ने के लिए और हो गई हमेशा के लिए उसकी।


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