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सीमा शर्मा पाठक सृजिता

Tragedy

4.4  

सीमा शर्मा पाठक सृजिता

Tragedy

अब कैसे होगा दहेज का इंतजाम

अब कैसे होगा दहेज का इंतजाम

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"लाजो देखना इस बार खेतों में लहराती फसल देखकर दिल कह रहा है बहुत मुनाफा होगा और जो लड़का मैंने देखा था पिछले साल अपनी सोना बिटिया के लिए उसके साथ धूमधाम से विवाह करूंगा अपनी बिटिया का।गेहूँ और आलू बेचकर जो पैसा मिलेगा उससे हो जायेगा हमारी बिटिया के दहेज का इंतजाम।पूरे गांव में सबसे अच्छी फसल है इस बार हमारे खेत में ईश्वर की कृपा से।कल ही बडे़ भैया से बात करता हूँ, चले मेरे साथ उस लड़के के परिवार से मिलने" गणेश ने अपनी पत्नी लाजो से कहा।

लाजो गणेश के लिए खाना लेकर आई थी सुबह से खेत में काम जो कर रहा था भूखा प्यासा।तीन बेटियों का बाप गणेश जरुरत से ज्यादा मेहनत करता ताकि अपनी बडी़ हो रही बेटियों का विवाह अच्छे घर में अच्छे वर के साथ कर सके।छोटी दोनों बेटियाँ तो पढ़ रही हैं अभी लेकिन बडी़ बेटी की पढाई भी पूरी हो गई।बी. ए. फाइनल ईयर के एक्जाम दे रही थी और इसके आगे पढने के लिए  कॉलेज ही नहीं था ना गांव में ना गांव के आस पास।दो साल से गणेश को उसके विवाह की फिकर हो रही थी एक अच्छा लड़का मिल भी गया था जमीन जायदाद भी थी और पास के शहर में नौकरी भी करता था।गणेश उसी घर में अपनी बेटी का विवाह करना चाहता था लेकिन दहेज की व्यवस्था न होने के कारण एक बार मिलने के बाद दोबारा गया ही नहीं था।

इस साल उसे विश्वास था कि उसके खेत में बहुत अच्छी फसल होगी और उस फसल को बेचकर वह कर पायेगा अपनी बेटी की शादी के दहेज का इंतजाम।अपने भाई के साथ उस लड़के के घर जाकर खुशी खुशी शादी की बात कर आया और उधर से भी सोना को देखकर पसंद कर हां हो गई।सोना बहुत ही सुशील और सुन्दर लड़की थी एक ही नजर में भा गई उनको और कर दी गई शादी की तारीख तय।

शादी से एक महीने पहले इतनी बारिश और औले पडे़ कि गणेश सहित सभी किसानों की फसल बरबाद हो गई।जिस रात ओले पड़ रहे थे एक मिनट के लिए आंख ना लगी गणेश की माथे पर चिन्ता की लकीरें और आंखों में आँसू छुपाये पूरी रात बैठा रहा गणेश।अगले दिन सुबह खेतों का नजारा देख अपने आप को बुरी तरह से पराजित हुआ अनुभव कर रहा था गणेश।उसके खेत में पानी में सिर्फ फसल नहीं तैर रही थी बल्कि तैर रहे थे उ

सके सभी अरमान अपनी बिटिया की धूमधाम से शादी कराने के अरमान।गणेश और लाजो बहुत रोये क्योंकि फसलों को बेचकर मिलने वाले पैसे से ही कर सकते थे वो दोनों अपनी बेटी की शादी के दहेज का इंतजाम लेकिन अब तो सब बरबाद हो गया था।गणेश लाजो से कहने लगा -

" लाजो अब कैसे होगा बिटिया के दहेज का इंतजाम शादी की तारीख भी बहुत नजदीक है इतने कम समय में क्या करेगें।हमारी तो सारी उम्मीद इस फसल से थी लेकिन ये तो सब बरबाद हो गई अब तो कुछ समझ नहीं आ रहा मेरा तो दिल बैठे जा रहा है अब क्या होगा।"

अपने पति को ऐसे टूटते और निराश होते हुये देखकर लाजो ने कहा, "सोना के पापा आप दुखी न हो अब ईश्वर ने मुसीबत में डाला है तो निकलने का रास्ता भी वही सुझायेगा।क्यों न हम जमींदार जी से पैसे उधार लेलें अगली फसल पर चुका देगें चलिये आप बात करके आइये अब बिटिया को तो ब्याहना पड़ेगा ऐसे अधर में रिश्ता तोड़ना सही ना होगा और टूटे हुये रिश्ते की बात जानकर कोई तैयार भी ना होगा हमारी बेटी से शादी करने को।आप ईश्वर पर विश्वास करिये और सब उन पर छोड़ दीजिये सब अच्छा होगा।"

लाजो की सकारात्मकता भरी बातें सुनकर गणेश के अन्दर भी आशा जागी और वह गया गांव के जमींदार साहब से पैसे उधार मांगने।जमीदार ने पैसे तो दे दिये लेकिन बदले में उसके खेत के कागजात रखवा लिये।गणेश का मन तो नहीं था कि वह अपनी जमीन के कागज गिरवी रखे क्योंकि वो जमीन ही उसकी जीविका का सहारा थी लेकिन रख आया इस उम्मीद में कि अगली फसल के पैसे से छुड़ा लेगा अपने कागजात।

गणेश और लाजो ने खूब धूमधाम से अपनी बेटी का ब्याह किया लेकिन वो खुशी के भाव नहीं थे उनके चेहरे पर जो होने चाहिए थे बल्कि चिन्ता के भाव नजर आ रहे थे जमीन के गिरवी रखे कागजात छुडाने के लिए चिन्ता के भाव।

दोस्तों जिस बेमौसम बारिश को देख हम शहर के लोग झूमते हैं खुश होते हैं, वहीं बेमौसम बारिश किसानों के लिए अभिशाप होती है।खेतों में लहराती फसल से न जाने कितने सपने न जाने कितनी ही उम्मीदें जुड़ी होती हैं गणेश जैसे गरीब किसानों की।लेकिन ये अनचाहा बादलों से बरसता पानी उनके हर अरमान पर पानी फेर देता है!


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