सीमा शर्मा पाठक सृजिता

Inspirational

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सीमा शर्मा पाठक सृजिता

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मशीन नहीं इन्सान हूं मैं

मशीन नहीं इन्सान हूं मैं

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रोमा आज सुबह से चिड़चिड़ी हो रही थी क्योंकि रात को नींद पूरी न होने के कारण सर में दर्द था। बच्चे की तबीयत खराब थी सो पूरी रात जागना पड़ा ऊपर से पूरे घर की डांट भी खानी पड़ी। चार दिन से सब हल्ला मचा रहे थे कि छोले भटूरे बना दो। मम्मी पापा जी के लिए सादा खाना बनाया और बाकी सबके लिए छोले भटूरे उसका बिल्कुल भी मन नहीं था, फिर भी बना दिये क्योंकि पति रोहित ने कह दिया था "रोमा बच्चे हमारे पास रह रहे हैं, उन दोनों में और आरव में अन्तर मत करना। उनको अपने मम्मी पापा की कमी महसूस नहीं होनी चाहिए, जो मांगे सो दे देना। "

मन तो किया था कह दे "मम्मी पापा जी और घर का काम कम था मेरे पास जो बच्चों को यहां बुला लिया? बच्चों का मन नहीं लग रहा था बस इसलिए भाईसाहब यहां छोड़ गये। अब उन दोनों का मन लग रहा होगा वहां। "

दरअसल रोमा के जेठ जेठानी के दोनों बच्चे उसके घर ही आ गये थे और वहीं रहने की जिद पर अडे़ थे। रोमा को वैसे बच्चों से कोई परेशानी नहीं होती लेकिन जब बच्चे रोज नई नई फरमाइश करते और वह थकी होती तो गुस्सा आ ही जाता। परसों छोले भटूरे बनाये और कल समोसे। बच्चे जिद पर अडे़ कह रहे थे चाची प्लीज बना दो। आरव ने भी दोनों चीजों को भर पेट खा लिया तो उल्टियां हो गई। आरव को उल्टी होते ही पूरा घर रोमा को कोसने लगा कि क्या जरूरत थी ये सब बनाने की और बनाया भी तो ये तो ध्यान रखना चाहिए कि तुम्हारा बच्चा कहीं भूख से ज्यादा तो नहीं खा गया। रोमा को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन अपने बच्चे की तबीयत का ख्याल कर चुप रह गई।

सुबह उठी तो सब चाय के लिए इन्तजार कर रहे थे। किसी ने ये नहीं सोचा कि रात भर सोई नहीं तो कोई चाय ही बना दे।

गुस्सा होती रोमा गई किचन में चाय बनाने। चाय बनाकर अखबार पढ़ते सास ससुर को चाय दी तो सासु माँ ने कहा- 

बच्चे सुबह से भूखे बैठे हैं जल्दी दूध पीने की आदत है उन्हें और तुम हो कि इतनी देर से उठकर आई हो।

रोमा का कल रात से ही दिमाग खराब था सो बोल पड़ी -

"दूध ही तो देना था मम्मी जी, आप ही दे देती। सारे फर्ज चाची के ही नहीं कुछ दादी के भी होते हैं।"

"रोमा ये कैसे बात कर रही हो मां से? " पतिदेव बोले 

बिल्कुल सही बात कर रही हूँ। यहां पर आप सब लोग बैठकर चाय का इन्तजार कर रहे हैं कि मैं उठूं और चाय बनाऊं। आपके भाई के बच्चे भूखे बैठे हैं चाचा या दादी कोई उन्हें दूध और ब्रेड नहीं दे सकता था। सबको पता है आरव की कितनी तबीयत खराब रही, रात भर नहीं सोया। आप तो आ गये हॉल में सोने। मैं तो मां हूं ना कैसे न जागती अपने बच्चे के साथ। सर मैं दर्द है, परेशान हूं। अकेली सारे घर का काम संभालती हूं। मुझे भी थकान होती है, मुझे भी बुरा लगता है। इन्सान हूं मैं मशीन नहीं हूँ।" "आरव की तबीयत खराब हुई क्योंकि तुमने नहीं देखा कि उसने कितना खाना खाया है" रोहित ने कहा।

"मैं किचन में थी, आरव के दादी दादा और पापा यहीं बैठे थे। तीनों बच्चे एक ही थाली में खाना खा रहे थे, क्या पता चलता मुझे? आप सब भी तो देख सकते थे, खाना गरम भी बनाऊं और कौन कितना खा रहा है ये भी मैं देखूं। कोई चीज बच्चों के मन मुताबिक न बनाऊं तो भेदभाव करती हूँ और बना दूं तो क्यों बना दी? आप लोग कभी सन्तुष्ट नहीं हो सकते। मैं जा रही हूँ अपने कमरे में अपने बच्चे के पास, खाना बना लूंगी लेकिन नाश्ता जो आप लोग खाओ बना सकते हो। "

रोमा अपनी चाय लेकर अपने कमरे में चली गई और रोमा की सासु माँ काफी देर तक खामोश रहने के बाद बोली "चलो बच्चों दूध गरम कर दूं और ब्रेड सेंक दूं। "



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