नारी शक्ति
नारी शक्ति


"निमकी क्या हुआ तू आई नहीं कल ? बताकर भी नहीं गयी। मैं इन्तजार करती रही। " नेहा ने अपनी कामबाली निमकी से कहा
निमकी -जीजी कल हमारे मर्द से झगडा़ हो गया था, शराब पीकर गाली गलौच कर रहा था। हम इतनी मशक्कत से पैसा जोड़ते है ताकि बिटिया को पढा़ सके मगर वो है कि फालतू चीजों में पैसा लुटाता है। हमने पैसे नहीं दिये तो हाथ उठाया हम पर।
नेहा -तुने किसी से कहा नहीं अपने सास ससुर या पडो़सी से।
निमकी -अरे जीजी सब तमाशा देखते हैं और पति है सह लो, क्या हुआ, कोई नई बात नहीं, अधिकार है उसका.... भारी भरकम बातें करके बडी़ बडी़ नसीहत और देते हैं।
नेहा - फिर तुने क्या किया।
निमकी -एक बार तो उसने मार लिया लेकिन दूसरी बार हम पर बरदाश नहीं हुआ और दिया जोर का ढक्का उसको। दीवार में जाकर टकराया। सर फूट गया, कल से घर नहीं आया।
नेहा -आकर तुझे मारा तो।
निमकी -मोटा सा डंडा रख लिया है जीजी हमने, अब हम पुलिस य
ा पडो़सियो से कहकर नहीं खुद ही निपटेगें उससे।
नेहा -लेकिन वो तेरा पति है निमकी, पत्नी धर्म का क्या।
निमकी -पति राम हो तो हम औरतों को सीता की तरह पत्नी धर्म निभाना चाहिए मगर रावण जैसे काम करेगा तो मूर्ख नहीं है हम जो सेवा में लगे रहें।
नेहा -छोड़ क्यों नहीं देती उसे।
निमकी -तब भी तो नहीं जीने देगी ये दुनिया जीजी। हम उसको छोडे़गे भी नहीं और उसके जुल्म सहेगें भी नहीं। दो चार बार चंडी का रूप दिखा दो लाइन पर आ जायेगा अपने आप ही। अगर हमें मान सम्मान मिल रहा हो तो हम औरतें सीता है लेकिन हमारा अपमान होगा, हमें अबला समझा जायेगा तो हम अपने अन्दर की नारीशक्ति को बाहर निकाल उस हर इन्सान से लड़ेगें। मां कहती थी हम सबमें होती है वो नारीशक्ति बस कहीं छुपी होती है जरूरत है उसे बाहर निकालने की।
नेहा सोचने लगी अब वह भी ढूंढ़ लेगी अपने अन्दर छुपी नारीशक्ति और आवाज उठायेगी शेखर के हर जुल्म पर।