अपने पाठकों के मन को चोटिल करता हूँ अब आप पाठकगण ही बताये मैं क्या करूं। अपने पाठकों के मन को चोटिल करता हूँ अब आप पाठकगण ही बताये मैं क्या करूं।
मैं बस इतना ही कहना चाहूँगी लड़ो और आगे बढ़ो कभी बिचारी मत बनो। मैं बस इतना ही कहना चाहूँगी लड़ो और आगे बढ़ो कभी बिचारी मत बनो।
उसे प्यार व अपनापन देने से सामने वाले की तकलीफ कम हो जाती है। उसे प्यार व अपनापन देने से सामने वाले की तकलीफ कम हो जाती है।
आज काकी नहीं उठी।दूसरों का तमाशा बनाने वाली आज खुद तमाशा बन रह गई। आज काकी नहीं उठी।दूसरों का तमाशा बनाने वाली आज खुद तमाशा बन रह गई।
बाद में धीरे-धीरे मसला हल हुआ और पता चला ये सब दक्ष की बेरुखी का नतीजा था। बाद में धीरे-धीरे मसला हल हुआ और पता चला ये सब दक्ष की बेरुखी का नतीजा था।
पापा ऐसा मौका बार बार नहीं मिलता। बस 2 साल की तो बात है पापा ऐसा मौका बार बार नहीं मिलता। बस 2 साल की तो बात है