अकेलापन
अकेलापन
"जिंदगी की यही विडम्बना है जिसके लिए पुरी दुनिया से लड़ी आज उसी ने हमें अकेला छोड़ दिया। ये अकेलापन अब सहन नहीं होता।" भावना की बातों में दर्द छलक रहा था।
तभी शांतनु कहता है "छोड़ो भी, बीती बातों में अब कुछ रखा नहीं। गलती हमारी है हम ने कुछ ज्यादा उम्मीद लगाए बैठे थे...भूल गए थे की उसकी भी अपनी जिंदगी है, अपने सपने हैं। तेरी तबीयत ठीक नहीं है तुम आराम करो। अकेली कहाँ हो मैं हूँ ना। अपनी पत्नी भावना को समझते हुए शांतनु कहते हैं।
भावना और शांतनु की एक मात्र संतान उनका बेटा तरुण। शादी के 4 साल के बाद दोनों को संतान का सुख मिला तरूण के रूप में। तरुण बचपन से बहुत होशियार था। उसके सपने बहुत बड़े थे। वो बहुत ही महत्वकांक्षी लड़का था। तरुण अपने सपनों को साकार करने के लिए कुछ भी कर सकता था।एक दिन तरुण को एक विदेशी कंपनी की और से जॉब का आफर आता है और वो इस आफर को स्वीकार भी कर लेता है। जब ये बात भावना और शांतनु जी को पता चलती है तो वो तरूण को कहते हैं कि "बेटा विदेश जाने की क्या जरूरत है?? यहां अच्छी खासी नौकरी है किसी भी चीज की कमी भी नहीं है।"
"पापा ऐसा मौका बार बार नहीं मिलता। बस 2 साल की तो बात है। एक बार मैं चला जाऊं तो फिर आप दोनों को भी साथ लेकर जाऊंगा।" तरूण अपने माता-पिता को कहता है।
"बेटा तेरे सिवा हम दोनों का कोई नहीं है। इस उम्र में तुम हमें अकेले छोड़ कर जा रहे हो।" भावना तरूण को कहती है।
"छोड़ कर कहा जा रहा हूं, बस कुछ साल की बात है" तरूण अपनी मां से कहता है।
बेचारे मां बाप भी अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने के लिए उनकी हां में हां मिला देते हैं। अपने ग़म को छिपा कर। तरुण विदेश चला जाता है। शुरू शुरू में वो हर दिन भावना और शांतनु जी फोन करता। जैसे-जैसे वक्त गुजरता गया फोन की गिनती भी कम होने लगी। देखते देखते 2 से 3 साल गुजर गए। पर तरूण वापस नहीं आया। हर बार आने की बात कहता पर आया आज तक नहीं।
अब तो महीने में एक बार बात हो जाए तो वहीं बहुत है। भावना जी हर पल अपने बेटे के आने की रहा देखती रहती। उसके फोन के आने का इंतजार करती रहती, पर ना फोन आया और ना तरुण आया। अपने बेटे के इंतजार में भावना का इंतजार हमेशा के लिए खत्म हो गया... अपने बेटे से दूर होने के ग़म को भावना सह ना सकी और शांतुन को अकेला छोड़ हमेशा के लिए चली गई। तरुण को अपनी मां की खबर भेजी गई पर तब भी वो नहीं आया। जैसे जैसे तरुण सफलता की सीढ़ी चढ़ता गया है। वैसे वैसे ही अपनों को भी खोता चला गया। शांतनु भी भावना के जाने का ग़म सह ना सके और वो भी चल बसे। रिश्तेदारों ने तरूण को फोन किया पर तरूण तब भी नहीं आया। बहुत ही अभागा है तरुण जिसने अपनी जिंदगी में सफलता को आगे रखा और अपने माता-पिता को पीछे रखा।
अपने बच्चे से दूरी और अकेलापन भावना और शांतनु सह ना सके और दुनिया छोड़ कर चले दिए। ना जाने ऐसे कितने भावना और शांतनु होंगे जो आज भी अपने बच्चों के आने का इंतजार कर रहे होंगे। ऐसी शोहरत और दौलत किस काम की जब मेरे अपने ही मेरे साथ नहीं। हर मां बाप अपने बच्चों की तरक्की चाहते हैं...पर इसका मतलब ये नहीं की उन्हें अकेला छोड़ दें। जैसे मां बाप की जिम्मेदारी अपने बच्चों के सपने पूरे करने की होती है। उसी तरह उससे भी कहीं ज्यादा जिम्मेदारी बच्चों की होती है की वो अपने माता-पिता को ताउम्र उनकी सेवा करें। उन्हें कभी अकेला ना छोड़े।
कुछ गलत लिखा हो तो क्षमा चाहूंगी